आयरनमैन में रूप में पहचाने जाने वाले सरदार वल्लभभाई पटेल देश के पहले उपप्रधानमंत्री और गृहमंत्री थे। वे एकता के प्रतीक माने जाते हैं। वे सभी के लिए एक समान भाव से काम किया करते थे।
भारत के एक छोटे-से गांव नादियाद में 1875 को जन्मे वल्लभभाई बचपन से ही अपने पिता की तरह मेहनती थी। वे अपनी पढ़ाई के साथ-साथ पिता के साथ खेतों में भी हाथ बंटाया करते थे। शुरू में घर की अच्छी हालत नहीं होने के कारण उन्होंने गांव में ही जिला नेता के परीक्षा की तैयारी की और अच्छे मार्क से पास भी हुए।
एकत्रीकरण में उनका योगदान...
सरदार वल्लभभाई पटेल बचपन से ही दूसरों को खुश देखना चाहते थे। किसी की आंखों में आंसू उन्हें पसंद नहीं थे। इसके लिए वे जल्द ही किसी भी चीज से समझौता कर लेते थे। वे हर किसी के काम के लिए हमेशा तैयार रहते थे। वे बिलकुल ही स्वतंत्र विचारों के व्यक्ति थे।
'सरदार' की उपाधि...
1913 में बैरिस्टर बनकर इंग्लैंड से भारत लौटे और अहमदाबाद में उसकी तैयारी शुरू की। वे बहुत ही जल्द आस-पास के माहौल, समस्याओं तथा देश की परिस्थितियों के बारे में अवगत हो गए। 1917 में वे स्वदेशी आंदोलन में शामिल हो गए। उस समय अंग्रेज सरकार किसानों की जमीन हड़पना चाहती थी, तब वल्लभभाई ने अंग्रेजी सरकार का विरोध किया। अंग्रेजों ने किसानों के साथ उन्हें गिरफ्तार कर लिया और उनका नाम 'सरदार' कर दिया।
स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान...
1942 में महात्मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' आंदोलन में शामिल हो गए। इसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर अहमदाबाद जेल में डाल दिया गया। उस समय छोटे-छोटे राजाध्यक्ष जनता के पैसे को खूब बर्बाद करते थे जिसका विरोध सरदार पटेल ने किया।
'आयरनमैन' की उपाधि...
सरदार पटेल की साफ छवि के कारण जनता उनके साथ थी। इसी कारण उन्होंने हैदराबाद और जूनागढ़ के नवाब से संपर्क किया, जो भारत के साथ नहीं जुड़ना चाहते थे। उन्होंने उनकी हर समस्याओं का समाधान कर उन्हें भारत के साथ जुड़ने पर राजी कर दिया। सरदार पटेल की भारत एकत्रीकरण की यह कोशिश रंग लाई। इसी कारण उन्हें 'आयरनमैन' की उपाधि दी गई।
गांधीजी की हत्या के बाद देश को एकत्र करना सबसे बड़ी चुनौती थी। महात्मा गांधी उनके बड़े भाई जैसे थे। वे उनके हर कार्यों से सहमत थे। सरदार वल्लभभाई ने देश के हालात को समझते हुए लोगों को समझाया और उनसे देश की अखंडता को भंग नहीं करने की अपील की।
उन्होंने अपनी शानदार राजनीति और बुद्धिमत्ता का परिचय देते हुए देश को मुश्किल परिस्थितियों से निकाला। 1991 में उनके इस अहम योगदान के लिए उन्हें 'भारतरत्न' से सम्मानित किया गया।