कांग्रेस पार्टी और इसकी चहारदीवारी के भीतर तथा बाहर सोनिया गाँधी को त्याग की देवी के रूप में जाना जाता है। प्रधानमंत्री की कुर्सी ठुकराकर और इस पर मनमोहनसिंह को बैठाकर सोनिया गाँधी ने सिद्ध कर दिया है कि वे अब राजनीतिक रंग में रंग चुकी हैं और उन्होंने बड़ा सोच-समझकर कदम उठाना सीख लिया है।
सोनिया गाँधी उत्तरप्रदेश के रायबरेली संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व करती हैं जिस पर कभी उनकी सास इंदिरा गाँधी और ससुर फीरोज गाँधी ने चुनाव लड़े थे। समय-समय पर विरोधी दलों के नेता उनके विदेशी मूल का मुद्दा उठाते रहे हैं, लेकिन अब भारतीयता में रची-बसी सोनिया गाँधी ने इस हथियार को बेकार साबित कर दिया है।
नौ दिसंबर 1946 को इटली के तूरिन में जन्मीं सोनिया गाँधी की इंग्लैड में पढ़ाई के दिनों में राजीव गाँधी से मुलाकात हुई थी। बाद में विवाह होने के बाद वे भारत में ही रहीं। पति की मौत के बाद वे राजनीति में सक्रिय हुईं और मार्च 1998 से कांग्रेस की अध्यक्ष हैं।
वर्ष 1999 में वे पहली बार लोकसभा चुनाव जीती थीं। 2004 के आम चुनाव में उन्होंने दूसरी बार जीत हासिल की और कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। उन्होंने यूपीए गठबंधन का नेतृत्व किया। अब देखना है कि वे इस बार भी सत्ता की चाबी अपने हाथों में रख पाती हैं या नहीं।