1971 में भारत-पाक युद्ध के हीरो कर्नल तारा की कहानी, जिन्होंने बचाई थी वर्तमान बांग्लादेश PM शेख हसीना की जान

रूना आशीष

बुधवार, 9 दिसंबर 2020 (14:19 IST)
जैसे ही भारत ने बांग्लादेश को आजादी दिलवाई मुझे अगली टास्क मिली कि मैं एयरपोर्ट पर पहुंचूं और वहां पर आने वाले सभी भारतीय वीआईपी की सुरक्षा का इंतजाम देखूं। तभी मुक्तिवाहिनी का एक सदस्य मेरे पास आया और बोला कि ढाका के ही पास में एक जगह पर एक परिवार को बंधक बनाया गया है और यह परिवार बांग्लादेश के राजनीतिज्ञ शेख मुजीबुर्रहमान साहब का है।
 
यह कहानी है भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 में हुए युद्ध की। इस युद्ध पाकिस्तानी सैनिकों से लोहा लेने वाले जांबाज कर्नल अशोक कुमार तारा (तब मेजर) ने वेबदुनिया से खास बातचीत में अपने युद्ध के अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि बाकी अधिकारियों ने इस बात पर बहुत ध्यान नहीं दिया क्योंकि उन्हें लगा कि उस परिवार को बाकी सेना बचा लेगी। लेकिन, पता नहीं क्यों ऐसा लगा कि मुझे वहां खुद जाना चाहिए और देखना चाहिए कि स्थिति क्या है? कर्नल तारा वो बहादुर ऑफिसर हैं, जिन्होंने आज की बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और उनके परिजनों की जान बचाई थी। 
 
तारा बताते हैं कि अपने दो सिपाही ले कर मैं उस जगह पहुंच गया। मैंने देखा कि एक घर है छोटा-सा उसके आसपास लोग घेरा बनाकर खड़े हैं। कुछ दूरी जरूर है, लेकिन आम जनता भी है और मीडियाकर्मी भी हैं। फिर किसी ने मुझे साइड में खड़ी एक कार दिखाई जिसमें एक मीडियाकर्मी की लाश पड़ी थी। मुझे बताया कि यह वही मीडियाकर्मी है जो घर के पास में जाना चाहता था। अंदर से फायरिंग हुई और मीडियाकर्मी को वहीं ढेर कर दिया गया।
 
...और मैं निहत्था ही उस घर की ओर चल पड़ा : मेरे पास दो विकल्प थे या तो मैं वहीं रहकर कोई निर्णय लूं या फिर अपने ऑफिसर के पास जाकर उन्हें सारी स्थिति से अवगत कराऊं और ज्यादा फोर्स की मांग करूं। मुझे यह भी लगा कि मैंने सेना की नई टुकड़ी का इंतजार किया तो शायद स्थिति मेरे हाथ से निकल भी जाए। मैंने अपने साथ में आए दोनों सैनिकों से कहा कि वहीं मेरा इंतजार करें। मैं निहत्था और अकेले उस घर की तरफ बढ़ चला।
 
वो आगे कहते हैं कि मैं घर के एकदम सामने जाकर खड़ा हो गया और जोर से चिल्लाकर पूछा कोई है। दो बार आवाज देने के बाद फिर सामने से आवाज आई। उसके बाद मैंने उनको कहा कि देखो हम चाहते हैं कि तुम सरेंडर कर दो। क्योंकि कोई खून-खराबा या किसी भी तरीके की परेशानी हम यहां खड़ी नहीं करना चाहते। मैं भारतीय सेना का एक अफसर हूं। हमारी बातें पंजाबी में हो रही थीं। वो भी आपस में जो बातें करते वो भी समझ में आ जाती थीं। अंदर से आवाज आई कि ऐसा हो नहीं सकता, आप लोग चले जाएं।
तभी मैंने ऊपर देखा भारतीय सेना का एक हेलीकॉप्टर भी घूम रहा था और उसे ऐसा लगा कि शायद नीचे मुझे किसी जरूरत किसी मदद की जरूरत हो। मैंने हेलीकॉप्टर को अपना संकेत दे दिया और साथ ही में अंदर बैठे पाकिस्तनी सैनिकों से कहा कि देखो आसमान में क्या यह हेलीकॉप्टर तुमने कभी पहले देखा है? यह भारतीय सेना का हेलीकॉप्टर है। तब तक उनकी बात में मुझे थोड़ी सी नरमाहट समझ में आने लगी थी।
 
अब मैं घर की तरफ अंदर बढ़ता जा रहा था। वहां पर 17-18 साल का एक लड़का खड़ा था और उसके बंदूक का बट मुझे लग रहा था। तब मैंने अपने आप को थोड़ा-सा दूर किया यह सोचते हुए कि कभी उसने हमला कर दिया तो मैं बचने की स्थिति में रहूं। तब अंदर से मेरे लिए आवाज आई कि ठीक है कोई भी कदम उठाने से पहले हमारे अफसरों से बात करना चाहते हैं।
 
मैंने उनसे कहा कि देखो! पाकिस्तानी सैनिकों ने समर्पण कर दिया है और अब बांग्लादेश आजाद हो चुका है। भारतीय सैनिक हर जगह हैं या तो तुम अभी निकल जाओ या फिर मेरी पूरी टुकड़ी आ जाएगी और अगर भारतीय सेना की टुकड़ी नहीं आई तो मुक्ति वाहिनी आ जाएगी। आपके पाकिस्तान में आपके घर पर कुछ लोग हैं शायद मां, पिता, पत्नी, बच्चे जो आपका इंतजार कर रहे हैं। अगर अभी आपने समर्पण नहीं किया तो मैं इस बात की कोई गारंटी नहीं लेता कि आपको मौत नसीब नहीं होगी। और मौत नसीब होने के बाद भी आपके साथ क्या किया जाएगा, इसके बारे में आप सोच भी नहीं सकते।
 
पाकिस्तानी सैनिक घबरा गए थे : इस बात को सुनकर पाकिस्तानी सैनिक घबरा गए, लेकिन अभी भी मेरी चिंता का विषय यह था कि उनके हाथ में लोडेड हथियार थे। अंदर बंधक थे और मेरे पास कोई हथियार नहीं था। अब मैंने एक और दांव खेलते हुए उनसे कहा, हाथ में जितने भी इस हथियार रखे हैं उसे वहीं छोड़ कर आना। तभी अंदर से किसी की आवाज है कि देखिए इन पर भरोसा मत कीजिए। यह कुछ भी कर सकते हैं। 
 
तब तक मेरे भी यह बात समझ आ गई थी कि शायद इन्हें आदेश मिला है कि आते समय बंधकों को मार कर आएं। मैंने एक बार फिर से उन्हें डराने की और समझाने की कोशिश की कि वह आत्मसमर्पण कर दें क्योंकि इसके अलावा उनके सामने कोई रास्ता नहीं बचा है। तब सैनिक एक-एक करके अपनी हथियार वहीं पर रखकर नीचे आए और उन्होंने समर्पण कर दिया। 
तुम तो मेरे बेटे जैसे हो : जैसे ही वह लोग बाहर चले गए वैसे ही राजनीतिज्ञ मुजीब उर रहमान साहब की पत्नी मेरे पास आईं और मुझे बोलीं कि तुम्हें तो अल्लाह ने हमारी मदद करने के लिए ही भेजा है, तुम तो मेरे बेटे जैसे हो।
 
और, फिर मैंने देखा घर में मुझे दूर रहमान साहब के बेटे, बेटी शेख हसीना, उनका 3 माह का बच्चा और हसीना की छोटी बहन साथ ही एक और शख्स भी वहां पर था जिनका नाम से खोखा था, ये सभी मुक्त हो गए। उसके बाद मुजीबुर्रहमान साहब की पत्नी ने मेरे हाथ में एक पताका दी और कहा इसे छत पर फहरा कर आओ। यह बांग्लादेश का झंडा है।
 
मैं उसी वक्त छत के ऊपर गया। पाकिस्तान का झंडा नीचे फेंका बांग्लादेश का झंडा लगाया। और वहीं से देखा कि मुजीबुर्रहमान  साहब की जो पत्नी हैं उन्होंने पाकिस्तान के झंडे को अपने पांव से कुचल दिया और जयकारा लगाया जय बांग्ला और आसपास खड़े सभी लोग बोलने लगे। जय बांग्ला। शायद मैं पहला वह शख्स हूं, जिसने बांग्लादेश का झंडा उसकी अपनी जमीन पर फहराया हो।

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