शमशेर की कविता का संगीत रघुवीर सहाय शमशेर की कविता के संगीत के बारे में हिंदी कविता के संदर्भ में ज्यादा कहना मुश्किल है। वह इतना अलग है। वह उनकी कविता में नहीं है। वह उस कविता से पैदा होता है-ऐसा भी नहीं है। जब आप उनकी पंक्तियाँ पढ़ते हैं वह अलग कहीं पैदा होता है, समानांतर, हाँ पर इसी संसार की ध्वनियों और गतियों से। आप उसे इसी संसार के पदार्थों में चलता देख भी सकते हैं, वह कोई चीज है। कई साजों के अनमेल से पैदा एक हाहाकार सी कोई चीज, एक पवित्र हृदय से मुस्कराता और कुछ न माँगता चेहरा- न दया-न देह, यहाँ तक कि प्रशंसा भी नहीं।
शमशेर की प्रधान उपलब्धियाँ गजानन माधव मुक्तिबोध प्रश्न यह है कि शमशेर की प्रधान उपलब्धियाँ कौन-सी हैं? मेरे मत से, प्रणय-जीवन के जितने विविध और कोमल चित्र वे प्रस्तुत करते हैं, उतने चित्र शायद और किसी नए कवि में दिखाई नहीं देते। उसकी भावना अत्यंत स्पर्श कोमल है। प्रणय जीवन में भावप्रसंगों के अभ्यंतर की विधि, सूक्ष्म संवेदनाओं के जो गुणचित्र वे प्रस्तुत करते हैं, वे न केवल अनूठे हैं वरन अपने वास्तविक खरेपन के कारण, प्रभावशाली हो उठे हैं।
सूक्ष्म संवेदनाओं के गुणचित्र उपस्थित करना बड़ा ही दुष्कर कार्य है किंतु शमशेर उसे अपनी सहानुभूति से संपन्न कर जाते हैं। विशिष्ट भावप्रसंगों की मौलिक विशिष्टता के अंतर्गत इन सूक्ष्म, कोमल किंतु महत्वपूर्ण संवेदनाओं के ये वास्तवचित्र कहीं ढूँढने पर भी नहीं मिलेंगे। बाख के संगीत की स्वर-लहरियों द्वारा उत्तेजित संवेदनाओं का चित्रण, जो शमशेर ने किया है, वह उनके अनुपम काव्य-सामर्थ्य तथा वास्तवोन्मुख भावना का एक श्रेष्ठ उदाहरण है। शमशेर ने संवेदनाओं के गुणचित्र उपस्थित करने के क्षेत्र में जो महान सफलताएँ प्राप्त की हैं, वे उस क्षेत्र में अन्यत्र दुर्लभ हैं।
कविता के प्रति सजग और समर्पित अज्ञेय शमशेर बहादुर उन कवियों में रहे जो लगातार अपनी कविता के प्रति सजग और समर्पित भी रहे। राजनीति की दृष्टि से बहुत ज्यादा सक्रिय तो वह नहीं रहे और उनकी कविता में निहित मूल्य-दृष्टि में, और उनकी घोषित राजनीति में, राजनीतिक दृष्टि में, लगातार एक विरोध भी रहा और अभी तक है। वह प्रगतिवादी आंदोलन के साथ रहे लेकिन उनके सिद्धांतों का प्रतिपादन करने वाले कभी नहीं रहे। उन सिद्धांतों में उनका पूरा विश्वास भी कभी नहीं रहा। उन्होंने मान लिया कि हम इस आंदोलन के साथ हैं, और स्वयं उनकी कविता है, उसका जो बुनियादी संवेदन है, वह लगातार उसके बाहर और उसके विरूद्ध भी जाता रहा और अब भी है।
उपधारा के रूप में तो नहीं कह सकता क्योंकि वह शायद एकमात्र ऐसे व्यक्ति है, उनके जीवन का, उनके कवि का, विकास इस तरह से हुआ। पहले वह चित्रकार थे या उन्होंने दीक्षा चित्रकर्म में ली। उसमें भी लगातार उनकी दृष्टि, बिंबवादी दृष्टि रही और काव्य में भी उनका बल इस पक्ष पर रहा। उनके प्रिय कवि भी ऐसे ही रहे हैं। इससे कभी मुक्त होना न उन्होंने चाहा है, न वह हुए हैं। वैसी प्रवृत्ति ही नहीं तो मुक्त होने का सवाल भी नहीं था।
हम चाहें तो उन्हें रूमानी और बिंबवादी कवि भी कह सकते हैं। अभी तक और कभी इसके बाहर वह नहीं गए। लेकिन अगर उनके पूछा जाता कि आप राजनीति में किस दल के साथ हैं तो वह कहते हैं कि मैं प्रगतिवादियों के साथ हूँ। अब इसका आप जो चाहे अर्थ लगा सकते हैं। इसे विभाजित व्यक्तित्व मैं तब कहता जबकि उनकी चेतना में उसका असर होता, उसमें भी दो खंड हो जाते। वैसा शायद नहीं हुआ। उस स्तर पर वह अब भी रूमानी बिंबवादी संवेदन के कवि हैं।