रानी सारंधा और बादशाह औरंगजेब, जानिए वीरता और क्रूरता की कहानी

इतिहास में बादशाह औरंगजेब के बारे में कई बातों का उल्लेख मिलता है। उसमें अच्छी और बुरी सभी तरह की बातों का उल्लेख है। मुगल बादशाहों में औरंगजेब सबसे ज्यादा विवादित बादशह था। उसकी एक कहानी यहां प्रस्तुति है जिसके बारे में इतिहासकारों में मतभेद हैं।
 
 
बादशाह औरंगजेब रानी सारंधा से अपने अपमान का बदला लेना चाहता है। रानी सारंधा के पति ओरछा के राजा चंपतराय थे। बादशाह ने हिन्दू सुबेदार शुभकरण को चंपतराय के विरुद्ध युद्ध अभियान पर भेजा। शुभकरण बचपन में चंपतराय का सहपाठी भी थी। दुर्भाग्यवश चंपतराराय के कई दरबारी भयवश उससे टूटकर औरंगजेब से जा मिले थे। पर राजा चंपतराय और रानी सारंधा ने अपना धैर्य और साहस नहीं छोड़ा। उन्होंने डटकर मुकाबला किया लेकिन बादशाह के सैनिकों की संख्‍या बढ़ती ही जा रही थी। लगातर आक्रमण के चलते राजा और रानी ने ओरछा से निकल जाना ही उचित समझा। ओरछा से निकलकर राजा तीन वर्षों तक बुंदेलखंड के जंगलों में भटकते रहे। महाराणा प्रताप की तरह ऐसे कई राजाओं ने अपने स्वाभिमान के लिए कई वर्षों तक जंगल में बिताने पड़े थे।
 
 
चंपतराय भी जंगलों में घूम रहे थे। साथ में रानी सारंधा भी अपना पत्नी धर्म निभा रही थी। वह भी अपने पति और परिवार के हर सुख दुख में साहसपूर्ण तरीके से साथ देती थी। औरंगजेब ने चंपतराय को बंदी बनाने के अनेक प्रयास किए, लेकिन असफल हुए। अंत में उसने खुद की चंपतराय को ढूंढ निकालने और गिरफ्‍तार करने का फैसला किया। तलाशी अभियान में लगी बादशाही सेना हटा ली गई, जिससे चंपतराय को यह लगा की बादशाह औरंगजेब ने हार मानकर तलाशी अभियान खत्म कर दिया है।
 
 
तब ऐसे में राजा अपने किले ओरछा में लौट आए। औरंगजेब इसी बात कर इंतराज कर रहा था। उसने तत्काल ही ओरछा के किले को घेर लिया। वहां उसने खूब उत्पात मचाया। किले के अंदर लगभग 20 हजार लोग थे। किले की घेराबंदी को तीन सप्ताह हो गए थे। राजा की शक्ति दिन प्रतिदिन क्षीण होती जा रही थी। रसद और खाद्य सामग्री लगभग समाप्त हो रही थी। राजा उसी समय ज्वार से पीढ़ित हो गया। एक दिन ऐसा लगा की शत्रु आज किले में दाखिल हो जाएंगे। तब उन्होंने सारंधा के साथ विचार विमर्ष किया।


सारंधा ने किले से बाहर निकल जाने का प्रस्ताव राजा के समक्ष रखा। राजा इस दशा में अपनी प्रजा को छोड़कर जाने के लिए सहमत नहीं थे। रानी ने भी संकट के समय प्रजा को छोड़कर जाने को बाद में उचित नहीं समझा। तब रानी ने अपने पुत्र छत्रसाल को बादशाह के पास संधि पत्र लेकर भेजा, जिससे निर्दोष लोगों के प्राण बचाए जा सके। अपने देशवासियों की रक्षा के लिए रानी ने अपने प्रिय पुत्र को संकट में डाल दिया।
 
 
जैसा की आशंका थी औरंगजेब ने छत्रसाल को अपने पास रखा लिया और प्रजा से कुछ न कहने का प्रतिज्ञापत्र भिजवाने का सुनिश्चित किया। रानी को यह प्रतिज्ञा पत्र उस वक्त मिला जब वह मंदिर जा रही थी। उसे पढ़कर प्रसन्नता हुई लेकिन पुत्र के खोने का दुख भी। अब सारंधा के समक्ष एक ओर बीमार पति तो दूसरी ओर बंधक पुत्र था। फिर भी उसने साहस से काम लिया और अब चंपतराय को अंधेरे में किले से निकालने की योजना बनाई।


अचेतावस्त्रा में रानी अपने राजा को किले से 10 कोस दूर ले गई। तभी उसने देखा कि पीछे से बादशाह के सैनिक आ रहे हैं। राज को भी जगाया। राजा ने कहा कि मैं बादशाह का बंधक बनसे से अच्‍छा है कि यही वीरगती को प्राप्त होऊ। राजी के साथ कुछ लोग थे जिन्होंने बादशाह के सैनिकों से मुकाबला किया और रानी का अंतिम सैनिक भी जब वीरगती को प्राप्त हो गया तो डोली में बैठे राजा ने रानी से कहा आप मुझे मार दें क्योंकि में बंधक नहीं बनना चाहता। रानी ने भारी मन से ऐसा ही किया। बादशाह के सैनिक रानी के साहस को देखकर दंग रह गए। कुछ ही देर बाद उन्होंनें देखा की रानी ने भी अपनी उसी तलवार से स्वयं की गर्दन उड़ा दी।
 
 
संदर्भ : भारत के 1235 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास भाग-4
इतिहसकार रामसिंह शेखावत की अकबर की लिखी पुस्तक से अंश
 

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