Gorakshanath : वैशाख माह की पूर्णिमा के दिन हठ योग के गुरु गुरुगोरखनाथ का प्रकटोत्सव मनाया जाएगा। इस बार 16 मई 2022 को उनका जन्मोत्सव मनाया जाएगा। आओ जानते हैं गुरु गोरक्षानथ के जन्म और जीवन के संबंध में 10 रहस्यमयी बातें।
1. गोरखनाथ का जन्म समय : गोरक्षनाथ के जन्मकाल पर विद्वानों में मतभेद हैं। राहुल सांकृत्यायन इनका जन्मकाल 845 ई. की 13वीं सदी का मानते हैं। उनका जन्म वैशाख माह की पूर्णिमा के दिन हुआ था। यह भी कहा जाता है कि गुरु गोरखनाथ सभी युगों में रहे हैं। हर युग में जन्म लेकर वे शिव और योग का मार्ग प्रशस्त्र करते हैं।
2. गोरक्षनाथ के जन्म की रोचक कथा: गुरु मत्स्येन्द्रनाथ जहां भिक्षा मांगने गए थे वहां एक नि:संतान महिला को भभूत देकर कहा कि इसका सेवन करने के बाद आपको पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी जो तेजस्वी होगा और जिसकी ख्याति चारों ओर फैलेगी। उस महिला ने भभूत ले ली लेकिन आस-पड़ोस के लोगों द्वाला खिल्ली उड़ाने पर उसे गोबर से भरे गड्डे में फेंक दिया।
भिक्षाटन करते हुए 12 वर्ष बाद जब पुन: मत्स्येन्द्रनाथ वहां आए तो माता ने संकोच संकोच के साथ सब कुछ सच सच बतला दिया। गुरु मत्स्येन्द्रनाथ तो सिद्ध महात्मा थे। उन्होंने अपने ध्यानबल देखा और वे तुरंत ही गोबर के गड्डे के पास गए और उन्होंने बालक को पुकारा। उनके बुलावे पर एक बारह वर्ष का तीखे नाक नक्श, उच्च ललाट एवं आकर्षण की प्रतिमूर्ति स्वस्थ बच्चा गुरु के सामने आ खड़ा हुआ। गुरु मत्स्येन्द्रनाथ बच्चे को लेकर चले गए। यही बच्चा आगे चलकर गुरु गोरखनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। गोरखनाथ के गुरु मत्स्येन्द्रनाथ (मछंदरनाथ) थे।
3. साबर मंत्र के जनक : माना जाता है कि जितने भी देवी-देवताओं के साबर मंत्र है उन सभी के जन्मदाता श्री गोरखनाथ ही है।
4. आदेश कहना उन्होंने की प्रचलन में लाया : नाथ और दसनामी संप्रदाय के लोग जब आपस में मिलते हैं तो एक दूसरे से मिलते वक्त कहते हैं- आदेश और नमो नारायण।
5. नवनाथ की परंपरा : नवनाथ की परंपरा की शुरुआत गुरु गोरखनाथ के कारण ही शुरु हुई थी। कुछ लोग नौ नाथ का क्रम ये बताते हैं:- मत्स्येन्द्र, गोरखनाथ, गहिनीनाथ, जालंधर, कृष्णपाद, भर्तृहरि नाथ, रेवणनाथ, नागनाथ और चर्पट नाथ। मत्स्येंद्रनाथ से ही आगे चलकर नौ नाथ और 84 नाथ सिद्धों की परंपरा शुरू हुई। भारत में नाथ योगियों की परंपरा बहुत ही प्राचीन रही है। नाथ समाज हिन्दू धर्म का एक अभिन्न अंग है। भगवान शंकर को आदिनाथ और दत्तात्रेय को आदिगुरु माना जाता है। इसी परंपरा में आगे चलकर कबीर, गजानन महाराज, रामदेवरा, तेजाजी महाराज, शिरडी के साई आदि संत हुए।
।।मच्छिंद्र गोरक्ष जालीन्दराच्छ।। कनीफ श्री चर्पट नागनाथ:।।
श्री भर्तरी रेवण गैनिनामान।। नमामि सर्वात नवनाथ सिद्धान।।
6. तप स्थल और समाधी स्थल : गोरखनाथजी ने नेपाल और भारत की सीमा पर प्रसिद्ध शक्तिपीठ देवीपातन में तपस्या की थी। उसी स्थल पर पाटेश्वरी शक्तिपीठ की स्थापना हुई। नेपाल के गोरखा नामक जिला में एक गुफा है जिसके बारे में कहा जाता है की गुरु गोरखनाथ ने यहाँ तपस्या की थी आज भी उस गुफा में गुरु गोरखनाथ के पगचिन्ह मौजूद है साथ ही उनकी एक मूर्ति भी है। इसके अलावा माता ज्वालादेवी के स्थान पर तपस्या करके उन्होंने माता को प्रसंन्न कर लिया था। गुरु गोरखनाथ ने घोर तपस्या करके माता से वरदान और आशीर्वाद प्राप्त किया था। आज भी ज्वालादेवी मंदिर के पास गोरकनाथ का तप स्थल है। कहते हैं कि गोरखनाथ का समाधी स्थल गोरखपुर में है। यहां दुनियाभर के नाथ संप्रदाय और गोरखनाथजी के भक्त उनकी समाधि पर माथा टेकने आते हैं। इस समाधि मंदिर के ही महंत अर्थात प्रमुख साधु है महंत आदित्यनाथ योगी।
7. गोरखनाथ का दर्शन : गोरखनाथ का मानना था कि सिद्धियों के पार जाकर शून्य समाधि में स्थित होना ही योगी का परम लक्ष्य होना चाहिए। शून्य समाधि अर्थात समाधि से मुक्त हो जाना और उस परम शिव के समान स्वयं को स्थापित कर ब्रह्मलीन हो जाना, जहाँ पर परम शक्ति का अनुभव होता है। हठयोगी कुदरत को चुनौती देकर कुदरत के सारे नियमों से मुक्त हो जाता है और जो अदृश्य कुदरत है, उसे भी लाँघकर परम शुद्ध प्रकाश हो जाता है। गोरखपरंपरा के साथु एकेश्वरवाद पर बल देते हैं, ब्रह्मवादी हैं तथा ईश्वर के साकार रूप के सिवाय शिव के अतिरिक्त कुछ भी सत्य नहीं मानते हैं।
8. हठ योगी : गुरु गोरखनाथ हठयोग के प्रवर्तन माने जाते हैं। गोरखनाथ शरीर और मन के साथ नए-नए प्रयोग करते थे। उन्होंने योग के कई नए आसन विकसित किए थे। जनश्रुति अनुसार उन्होंने कई कठिन (आड़े-तिरछे) आसनों का आविष्कार भी किया। उनके अजूबे आसनों को देख लोग अचम्भित हो जाते थे। आगे चलकर कई कहावतें प्रचलन में आईं। जब भी कोई उल्टे-सीधे कार्य करता है तो कहा जाता है कि 'यह क्या गोरखधंधा लगा रखा है।'
9. संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप में हैं गोरखपंथी : नाथ संप्रदाय के प्रवर्तक गोरक्षनाथजी के बारे में लिखित उल्लेख हमारे पुराणों में भी मिलते हैं। विभिन्न पुराणों में इससे संबंधित कथाएं मिलती हैं। इसके साथ ही साथ बहुत-सी पारंपरिक कथाएं और किंवदंतियां भी समाज में प्रसारित हैं। उत्तरप्रदेश, उत्तरांचल, बंगाल, पश्चिमी भारत, सिन्ध तथा पंजाब में और भारत के बाहर नेपाल में भी ये कथाएं प्रचलित हैं। काबुल, गांधार, सिन्ध, बलोचिस्तान, कच्छ और अन्य देशों तथा प्रांतों में यहां तक कि मक्का-मदीना तक श्री गोरक्षनाथ ने दीक्षा दी थी और नाथ परंपरा को विस्तार दिया था। इस पंथ के साधक लोगों को योगी, अवधूत, सिद्ध, औघड़ कहा जाता है। कहा यह भी जाता है कि सिद्धमत और नाथमत एक ही हैं। गुरु और शिष्य दोनों ही को 84 सिद्धों में प्रमुख माना जाता है। दोनों गुरु और शिष्य को तिब्बती बौद्ध धर्म में महासिद्धों के रुप में जाना जाता है।
10. गोरखनाथ का साहित्य : गोरखनाथ नाथ साहित्य के आरम्भकर्ता माने जाते हैं। गोरखनाथ ने अपनी रचनाओं तथा साधना में योग के अंग क्रिया-योग अर्थात तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणीधान को अधिक महत्व दिया है। इनके माध्यम से ही उन्होंने हठयोग का उपदेश दिया।