Maharishi Mahesh Yogi: महर्षि महेश योगी की पुण्यतिथि, जानें उनका जीवन

WD Feature Desk
Mahesh Yogi 
 

HIGHLIGHTS
 
* महर्षि महेश योगी का निधन 5 फरवरी 2008 को हुआ था।
* उन्होंने स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती के सानिध्य में शिक्षा ग्रहण की थी।
* दुनिया में उनका भावातीत ध्यान लोकप्रिय हुआ।
 
Yogi Nirvana Day : प्रत्येक वर्ष 12 जनवरी को महर्षि योगी की जयंती के रूप में मनाया जाता है। तथा 5 फरवरी को उनका निर्वाण दिवस मनाया जाता है। महेश योगी का जन्म 12 जनवरी 1918 को छत्तीसगढ़ के राजिम शहर के पास ही स्थित पांडुका गांव में हुआ। दिव्य विभूति कहे जाने वाले महर्षि योगी ने वैदिक ज्ञान से संपूर्ण विश्व को आलौकित किया और सरस प्रवचनों ने हिन्दुस्तान के लेकर हॉलैंड तक कई शहरों के श्रोताओं को सम्मोहित किेया। 
 
उनका वास्तवित नाम महेश प्रसाद श्रीवास्तव था। उनके पिता का नाम रामप्रसाद श्रीवास्तव था और वे राजस्व विभाग में कार्यरत थे। उनका नौकरी के सिलसिले में तबादला जबलपुर हो गया। अत: योगी का प्रारंभिक बचपन यहीं बीता। उन्हें यहां की प्रकृति बहुत पसंद थी।  यहां के हितकारिणी स्कूल से मैट्रिक उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीएससी की उपाधि के साथ ही गन कैरिज फैक्टरी में उच्च श्रेणी लिपिक के पद पर उनकी नियुक्ति मिल गई। 
 
फैक्टरी की छोटी-सी नौकरी से लेकर विश्वविख्यात महर्षि बनने तक की यात्रा में कई रोचक पड़ाव भी आए। उनके जीवन के एक रोचक प्रसंग के अनुसार जब एक दिन वे साइकिल से बड़े भाई के घर की तरफ जा रहे थे, तभी उनके कानों में सुमधुर प्रवचन सुनाई पड़े। सम्मोहक बोल सुनते ही वे साइकिल को एक तरफ पटक कर वहां खिंचे चले गए। जैसे ही उन्होंने स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती को देखा और सुना तो अपनी सुध-बुध खो बैठे। उसी क्षण उनके मन में वैराग्य जागृत हो गया। उसके बाद योगी फिर कभी घर नहीं गए। उनके लिए पूरा विश्व एक परिवार की तरह हो गया।
 
अपने गुरु स्वामी ब्रहानंद सरस्वती से आध्यात्म साधना ग्रहण कर भावातीत ध्यान की अलख जगाने के लिए महर्षि विश्व भ्रमण पर निकल पड़े। इस दौरान उन्होंने करीब सौ से अधिक देशों की यात्रा की। 1953 में ब्रह्मलीन हुए शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानंद को जब वाराणसी के दशमेश घाट पर जल समाधि देने लगे तब शोकाकुल गुरुभक्त महेश ने भी गंगा में छलांग लगा दी। फिर काफी मशक्कत के बाद गोताखोरों ने उन्हें किसी तरह बाहर निकाला। 
 
5 फरवरी 2008 को महाशून्य में निलय हुए महर्षि महेश योगी ने कहा- 'मेरे न होने से कुछ नुकसान नहीं होगा। मैं नहीं होकर और भी ज्यादा प्रगाढ़ हो जाऊंगा...' उनके इन शब्दों से महर्षि पहले से अधिक प्रासंगिक और ज्यादा प्रगाढ़ हो गए थे। महर्षि योगी ने भावातीत ध्यान के माध्यम से पूरी दुनिया को वैदिक वांग्मय की संपन्नता की सहज अनुभूति कराई। 
 
नालंदा व तक्षशिला के अकादमिक वैभव को साकार करते हुए विद्यालय, महाविद्यालय व विश्वविद्यालय की सु-परंपरा को गति दी। महर्षि द्वारा प्रणीत भावातीत ध्यान एक विशिष्ठ व अनोखी शैली है, जो चेतना के निरंतर विकास को प्राप्त करने का मार्ग दिखाती है। योगी ने भारतीय संस्कृति के संदेशवाहक, आध्यात्मिक महापुरुष, विश्व बंधुत्व और आधुनिकता व संसार के महान समन्वयक होने का गौरव हासिल किया। नर्मदा के तट पर बसी ऋषि जाबालि की पवित्र नगरी जबलपुर से भावातीत उड़ान भरने वाली इस दिव्य विभूति ने अपने वैदिक ज्ञान से संपूर्ण विश्व को आलौकित किया। योगी का व्यक्तित्व अजर-अमर है। महेश प्रसाद ने महर्षि महेश योगी बनकर संपूर्ण दुनिया को शांति और सदाचार की शिक्षा दी और विश्व भर में भारत का नाम रोशन किया।
 
योग और ध्यान के आध्यात्मिक गुरु रहे महर्षि महेश योगी का 5 फरवरी 2008 को नीदरलैंड्स स्थित अपने घर में 91 वर्ष की उम्र में निधन हो गया था। अत: 5 फरवरी को उनका निर्वाण दिवस मनाया जाता है। 

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