बायोसाइंस के छात्रों ने जनक पलटा मगिलिगन से सस्टेनेबल जीवन शैली सीखी

WD Feature Desk

शुक्रवार, 26 सितम्बर 2025 (12:36 IST)
सॉफ्टविजन कॉलेज के बायोसाइंस विभाग के छात्रों का समूह सनावदिया गांव, स्थित जिम्मी मगिलिगन सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट की निदेशिका पद्मश्री से सम्मानित डॉ. श्रीमती जनक पलटा मगिलिगन से सस्टेनेबल जीवन शैली सीखने आए। वरिष्ठ समाजसेवी के साथ रहकर और चर्चा कर सस्टेनेबल जीवन शैली का अनुभव लिया। 
 
छात्रों ने देखा 77 वर्षीय जनक दीदी जीवन शैली और सामुदायिक सशक्तिकरण को नई दिशा दे रही हैं। वह पिछले 4 दशकों से पर्यावरण संरक्षण, ग्रामीण महिलाओं के उत्थान और सिद्धांतों को व्यवहार यह कार्य कर रही हैं उनकी जीवन यात्रा व्यक्तिगत संघर्षों और सामाजिक प्रतिबद्धता दोनों पर आधारित है। 
 
जब 16 वर्ष की आयु में हुई एक गंभीर हृदय चिकित्सा ने उन्हें जीवन के प्रति गहरी आस्था दी और तभी उन्होंने पहले संकल्प लिया कि- ईश्वर ने मुझे नया जीवन दिया है और अब मैं यह जीवन आपका आभार व्यक्त करते हुए जिऊंगी और इसके बाद 1992 में रिया डी जेनेरियो में आयोजित पहली अर्थ समिट में भाग लेने के दौरान उन्हें वैश्विक पर्यावरणीय चुनौतियों का बोध हुआ और उन्होंने दूसरा संकल्प लिया मैं जो भी करूंगी उससे भूमि, जल और आकाश में प्रदूषण नहीं होगा। उन्होंने 1985 में बरली डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट फॉर वुमेन की स्थापना की। जहां हजारों आदिवासी और ग्रामीण महिलाओं को सौर खान-पान, जैविक खेती और अन्य कौशलों का प्रशिक्षण दिया। 
 
बरली से सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने अपना पूरा ध्यान जिम्मी मगिलिगन सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट पर केंद्रित किया। केंद्र पूरी तरह सौर ऊर्जा और पवन चक्की से संचालित होता है जिससे आसपास के घरों को भी बिजली आपूर्ति होती है यहां शून्य कचरा, शून्य प्लास्टिक के सिद्धांत पर आधारित जीवन पद्धति अपनाई है।

यहां भारत के प्राचीन देसी रासायनमुक्त बीज, जैविक भोजन, पानी का कुशल उपयोग, जल संरक्षण, पानी और भोजन पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधन और पर्यावरण का उपयोग विवेक से करना तथा कृषि मिट्टी, जल, वायु और जलवायु बहाई सिद्धांत से जैव विविधता को बहाल करना स्वस्थ, सस्टेनेबल जीवन तथा अपने जीवन को ऐसे तरीके से संचालित करना है। 
 
इसका उद्देश्य संतुलित और एक सम्मानजनक ऐसी जीवन शैली है जो किसी व्यक्ति या समाज के पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों और व्यक्तिगत संसाधनों के उपयोग को कम करने का प्रयास करती है। घरेलू प्राकृतिक उत्पाद बनाता है और सौर खाना पकाने का उपयोग करता है।

पुराने अखबारों को ईंधन के ब्रिकेट में बदलता है, वर्षों से यहां पर हजारों लोग, आदिवासी महिलाएं, किसान, छात्र सौर खाना पकाना, वर्षा जल संचयन, जैविक खेती आदि टिकाऊ पद्धतियों का प्रशिक्षण ले चुके हैं। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर केंद्र अनोखा कार्यक्रम आयोजित किया जाता है, जिसमें पुरुषों ने सौर ऊर्जा से भोजन तैयार कर महिलाओं को परोसा जाता है।

यह लैंगिक समानता और खान-पान के महत्व का प्रतीक था। वही विश्व पर्यावरण दिवस पर एक सप्ताह तक चलने वाले पर्यावरणीय संवाद में युवाओं, किसानों शिक्षण संस्थानों को शामिल किया जाता है। कार्यक्रम उद्देश्य केवल जागरूकता नहीं बल्कि ठोस कदम उठाना था जैसे वृक्षारोपण प्लास्टिक का कम उपयोग जैविक खेती को प्रोत्साहन और कॉलेज परिसरों में शून्य कचरा बनाना। 
 
आज जब पूरी दुनिया जलवायु संकट का सामना कर रही है, डॉ. श्रीमती जनक पलटा मगिलिगन का कार्य हमें याद दिलाता है कि सतत विकास कोई कल्पना आदर्श नहीं बल्कि यह संभव वास्तविकता है जिसे संकल्पित व्यक्ति और समुदाय साकार कर सकते हैं उनका जीवन और जिम्मी मगिलिगन सेंटर का मिशन हम सभी के सामने यह चुनौती को और प्रेरणा रखता है कि हम अपने जीवन जीने के तरीके अपनी जरूरत और पृथ्वी पर अपने कदमों के निशान सभी को और अधिक जिम्मेदारी और संसाधन संवेदनशीलता के साथ पुनः विचार करें।
 
छात्रों ने कहा किसी पुस्तक या पाठ्‍यक्रम को पढ़ कर कभी ये सब कभी न समझ पाते! आप जैसी मां से मिलकर हमे जीवनभर के लिए अपने कर्तव्य की समझ आई है हम धन्य हो गए, आपके जीवन को देख कर और स्पष्ट समझ मिली है आपको हम नतमस्तक है। हम अवश्य ही आपके बताए और दिखाए इस मार्ग पर चलेंगे। इस अवसर पर बायोसाइंस विभाग प्रमुख डॉ. ऋचा पाठक ने हार्दिक आभार प्रेषित किया।ALSO READ: इंदौर के सबसे प्रतिष्ठित देवी स्थल श्री वैष्णवधाम पर नवरात्रि गरबा महोत्सव चतुर्थ वर्ष

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