सस्टेनेबल डेवलपमेंट सप्ताह मनाकर याद करेंगे जिम्मी सर को
सुविख्यात पर्यावरणविद कर्मयोगी स्व. श्री जेम्स (जिम्मी) मगिलिगन की सातवीं पुण्यतिथि जिम्मी मगिलिगन सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट ,सनावादिया द्वारा प्रतिवर्षानुसार विशेष रूप से सप्ताह भर मनाई जा रही है।
ज्ञातव्य है कि जिम्मी मगिलिगन OBE यानी 'ऑर्डर आफ ब्रिटिश एम्पायर' से विभूषित बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उनकी स्मृति को समर्पित पूरा एक हफ्ता विशेष अंदाज में मनाया जा रहा है। जिम्मी मगिलिगन सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट ,सनावादिया द्वारा आयोजित यह सस्टेनेबल डेवलपमेंट सप्ताह 15 से 21 अप्रैल 2018 तक आयोजित होगा।
प्रथम दिवस सोलर फ़ूड फेस्टिवल के साथ अप्रैल 15 ,2018 से यह कार्यक्रम आरंभ होगा बाद में सप्ताह के अन्य दिनों में सस्टेनेबल डेवलपमेंट से संबंधित अन्य शिक्षाप्रद आयोजन संपन्न होंगे।
सप्ताह के दौरान समस्त कार्यक्रम सस्टेनेबल डेवलपमेंट में आम और खास लोगों की अधिकतम सहभागिता बढ़ाने के लिए आयोजित किए जा रहे हैं।
असाधारण व्यक्तित्व के धनी जिम्मी मगिलिगन
जिम्मी एक बहाई पायोनियर थे जो एक सर्द देश ब्रिटेन में अपना घर-बार-व्यवसाय छोड़कर यहां भारत की गर्मी में आकर रहे और समाजसेवा के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान दिया।
अपने जीवन के बेशकीमती 25 साल की सेवा उन्होंने अपनी पत्नी समाजसेवी डॉ. जनक पलटा मगिलिगन के नाम कर दी। एक अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण हादसे में सड़क दुर्घटना के शिकार हो अप्रैल 21, 2011 को जिम्मी चल बसे लेकिन उनके सद्कर्मो की खुशबू आदिवासी अंचलों में इस तरह बिखरी हुई है कि आज भी ग्राम्यबालाएं उन्हें अपना जीजाजी मानती है और उनके मार्गदर्शन को याद कर भावुक हो उठती हैं।
मध्यप्रदेश के 500 से ज्यादा गांव के लोगों ने उन्हें आज भी प्रेम से जीजा जी मानकर दिलों में संजोकर रखा है, इसकी एक बहुत बड़ी वजह यह है कि उन सभी ने उन्हें और पत्नी जनक को निस्वार्थ भाव से समाजसेवा और अथक कर्म करते देखा है।
बरली ग्रामीण महिला विकास संस्थान इन्दौर के प्रबंधक सोलर कुकिंग के पायोनियर जिम्मी ने उसी संस्थान की निदेशक पत्नी जनक के साथ 6000 से ज्यादा आदिवासी और ग्रामीण महिलाओं को जीवन की ऐसी दिशा दी कि वे और उनकी आने वाली पीढ़ी बरसों तक उन्हें नहीं भूल सकती।
उन्होंने सस्टेनेबल डेवलपमेंट की दिशा में आदिवासियों को सशक्त क रने का जो बीड़ा उठाया उसे आज भी जनक अपने गांव-गांव जाकर पूरी निष्ठा से निभा रही हैं और उनके विकास में पूरे विनम्र भाव से योगदान दे रही हैं।
जिम्मी ने अपने अथक परिश्रम व लगन से बरली ग्रामीण महिला विेकास संस्थान को खड़ा कर दुनिया के सामने सस्टेनेबल डेवलपमेंट का माडल प्रस्तुत किया। आज उसकी पहचान सोलर कुकिंग,बागवानी,सौर ऊर्जा, जल सरंक्षण और पर्यावरण के लिए विश्व स्तर पर जानी जाती है। बरली परिसर में प्रवेश करते ही हरे-भरे सुनहरे खेत, खलिहान, बड़े-बड़े वृक्ष लहराते नजर आते हैं तो दूसरी तरफ सोलर कुकर सजे नजर आते हैं।
इन दोनों ही प्रकार के नजारों की खास बात यह है कि जहां यह सारी हरियाली जिम्मी सर के हाथों की सजाई गई हैं वहीं समस्त सोलर कुकर भी उन्हीं की तकनीकी दक्षता का सुपरिणाम है। उनके हाथों में ऐसा खास जादू था कि उनके लगाए पौधे बड़े वृक्ष बनकर मुस्कुरा रहे हैं वहीं उनके द्वारा रचित सोलर कुकर आज भी बड़े-बड़े इंजीनियरों को विस्मित कर देते हैं।
इसी संस्थान में 1998 में उन्होंने मध्यप्रदेश का पहला सोलर शेफ्लर किचन बनाया, जिससे 1 सिलेण्डर गैस रोज बचती है और एक महीने में 900 किलो लकड़ी की बचत होती हैं। इसके बाद उन्होंने झाबुआ ,धार व इंदौर जिलों के आदिवासी व ज़रूरतमंद बच्चों के छात्रावासों में बिना कोई पैसे लिए वहां रहकर 5 सोलर शेफ्लर किचन बनाए।
इन्हीं पर वहां निवास करने वाली सभी महिलाएं सोलर कुकिंग सीखने लगी व अपनी आजीविका के लिए सोलर कुकर को एक साधन बनाया, आगे चलकर यही सोलर कुकर उनके लिए वरदान साबित हुआ। जिसमें स्टाफ तथा प्रशिक्षणार्थियों का तीन वक्त का भोजन, नाश्ता, चाय, गरम पानी, डिस्टिल वाटर, मोबाइल चार्जिंग, ब्रैड, बिस्किट, केक बनाना, प्रेस और सब्जियों को सुखाना प्रत्येक कार्यं सोलर ऊर्जां से ही संपन्न होने लगे और आज
भी यह क्रम जारी है।
आदिवासी ग्रामीण महिलाओं में जागरूकता लाने के लिए सौर ऊर्जां से चलने वाले तमाम सोलर उपकरणों के उपयोग, उनका रख-रखाव, फायदे तथा सावधानियों का निशुल्क व कुशलतम प्रशिक्षण दिया जाता है। उनके कार्यकाल में भारत के अनेक गांव में महिलाएं 500 सोलर कुकर लेकर गई व अपने गांव में आज भी सोलर कुकिंग करती है। उससे स्वादिष्ट देशी व्यंजन बनाकर बेचकर कई स्वयं सहायता समूह आर्थिक लाभ कमा रहे हैं।
प्राकृतिक स्त्रोत सूर्यं की किरणों से निकलने वाली धूप का जितना भरपूर उपयोग बरली संस्थान द्वारा किया जा रहा हैं उतना शायद किसी संस्थान ने किया हो। जिम्मी सर मानते थे कि ग्रामीण स्त्रियों से धूल और धुएं में काम करवाना एक प्रकार की हिंसा है उसके स्थान पर धूप को अपना साथी बनाकर उसके माध्यम से खाना पका कर महिलाएं कई प्रकार की परेशानियों से बच सकती है।
जिम्मी, कचरामुक्त जीवन शैली में भी सबसे आगे थे। जब कोई एक पुरानी बिल्डिंग गिराई गई थी तब उसी के मलबे से सारा रोड़ बना कर सबको चकित कर दिया।। कहीं अगर ऐंगल पड़े थे तो उसका आकर्षक टेबल बना दिया। 'बेस्ट आउट ऑफ वेस्ट' में वे मास्टर थे। कोई भी चीज़ नई लाने से पहले वे यह सोचते थे कि पुरानी और जो काम में नहीं आ रहीहै उन चीज़ों को कैसे काम में लेना है। इसके दो लाभ हैं एक तो पैसे बचते हैं और दूसरा हम कम चीजों का इस्तेमाल कर पर्यावरण को बचाते हैं।
अन्य प्रशिक्षणार्थी भी उनसे यह सब सीख कर जाते थे। विदेशो से आने वाले बहुत से लोग उनसे सीखकर अपने क्षेत्र में विशिष्ट योगदान दे रहे हैं। उनकी उल्लेखनीय उपल्बधियों के कारण वर्षं 2009 में भारत सरकार के राष्ट्रीय महिला कोष ने बरली संस्थान को सौर ऊर्जा का राष्ट्रीय प्रशिक्षण केन्द्र घोषित किया। उन्होंने यहां पर कई सौर इंजीनियर तैयार किए।
जिम्मी ने 2010 में इंदौर से 20 किमी दूर सनावदिया गांव में लगभग दस हजार वर्ग फीट जमीन खरीदी। एक हिस्से पर अपने सेवानिवृत होने के
बाद रहने के लिए मकान बनाया और दूसरी तरफ 50 आदिवासी परिवारों को बिजली देने के लिए सोलर व विंड मिल पॉवर स्टेशन बनाया, अपने हाथों से खंभे बनाए, वायरिंग की जिससे 19 स्ट्रीट लाइट बस्ती में घरों के आगे लगाई गई।
पिछले 7 साल से इस गांव में लगी स्ट्रीट लाइट इसी से चल रही हैं। हर रोज दो किलोवाट बिजली निशुल्क दी जाती है। उनके निधन के बाद उनकी पत्नी जनक पलटा मगिलिगन ने यहां रहकर अबतक लगभग 65000 लोगों को सस्टेनेबल डेवलपमेंट में योगदान के लिए निशुल्क प्रशिक्षण दिया है। जनक दीदी के साथ आज उनकी एक कर्मठ आत्मीय टीम है जो समाज के अलग-अलग क्षेत्रों के दिग्गजों से बनी है। इनमें सेना के सेवानिवृत्त अधिकारी से लेकर जानेमाने चिकित्सक और इंजीनियर से लेकर पत्रकार, चित्रकार, कलाकार, संगीतज्ञ, पर्यावरणविद्, इतिहासकार, नाट्यकर्मी, राजनेता और वरिष्ठ उद्यमी सभी शामिल हैं।
डॉ. जनक ने अपने सभी सेवा कार्यो को अपने पति को समर्पित किया है और 2011 से जिम्मी मगिलिगन सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट नाम देकर अपने सेवा कार्यों को सतत जारी रखा है। सबसे विशेष बात यह है कि अपने किसी भी शुभ समाज कार्यों के लिए वे किसी से भी किसी भी प्रकार का आर्थिक सहयोग नहीं लेती हैं। भारत को अपनी कर्मस्थली बनाते हुए आदिवासियों के उत्थान के लिए गांवों में काम करने वाले ऐसे विराट शख्सियत के बारे में शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है। जिम्मी, एक ऐसे ही व्यक्तित्व का नाम था जिन्होंने शुद्ध और पवित्र मन से सिर्फ और सिर्फ समाज का भला सोचा। यही वजह है कि आज भी उनके शुभ कर्मों से कई हजार लोगों के मन में उनका नाम चमक रहा है।
15 अप्रैल से 21 अप्रैल के बीच होने वाले समस्त कार्यक्रम उनकी स्मृति को समर्पित हैं।
सप्ताहभर के इन कार्यक्रमों का उद्देश्य है कि पर्यावरण संरक्षण में जनसाधारण की अधिकतम सहभागिता निर्धारित हो सके; कार्यक्रमों का विवरण निम्नलिखित हैः-
दिनांक समयगतिविधि / कार्यक्रमप्रशिक्षक / संपर्कसंयोजक / स्थान
15.04.2018/ 9:00 - 1:0 बजे तक/ सामूहिक सोलर फ़ूड फेस्टिवल/डॉ जनक पलटा मगिलिगन,
श्री अनुराग शुक्ला/ जिम्मी मगिलिगन सेंटर, सनावादिया
16.04.2018/9:00 - 1:0 बजे तक / प्राकृतिक एवं जैविक खाद,कीटनाशक, फफूंदनाशक निर्माण कार्यशाला/श्री प्रेम जोशी, श्री राजेन्द्र चौहान ,श्रीमती नन्दा चौहान , श्री राजेन्द्र चौहान,डॉ. जनक पलटा मगिलिगन/ जिम्मी मगिलिगन सेंटर, सनावादिया
17.04.2018 / 9:00 -1:0 बजे तक/ कुकिंग / बेकिंग प्रशिक्षण/ श्रीमती अनिता मंत्री/ जिम्मी मगिलिगन सेंटर, सनावादिया
18.04.2018/ 9:00 - 1:0 बजे तक / सोलर ड्रायर व सोलर फ़ूड प्रोसेसिंग/डॉ. जनक पलटा मगिलिगन, श्री वरुण
रहेजा/ जिम्मी मगिलिगन सेंटर, सनावादिया
19.04.2018/ 9:00 - 1:0 बजे तक / गाय-केंद्रित सस्टेनेबल डेवलेपमेंट, बायोगैस बाटलिंग, पावर व कुकिंग/ श्री गौरव केडिया (बायोगैस एसोसिएशन ऑफ़ इन्डिया के अध्यक्ष ) / जिम्मी मगिलिगन सेंटर, सनावादिया