इतिहासकार डॉ. ईश्वरी प्रसाद के अनुसार 1928 में स्वतंत्रता सेनानी आसफ अली से शादी करने के बाद अरुणा भी स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लेने लगीं। शादी के बाद उनका नाम अरुणा आसफ अली हो गया। सन 1931 में गांधी इरविन समझौते के तहत सभी राजनीतिक बंदियों को छोड़ दिया गया लेकिन अरुणा आसफ अली को नहीं छोड़ा गया। इस पर महिला कैदियों ने उनकी रिहाई न होने तक जेल परिसर छोड़ने से इंकार कर दिया। माहौल बिगड़ते देख अंग्रेजों को अरुणा को भी रिहा करना पड़ा।
सन 1932 में उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया और दिल्ली की तिहाड़ जेल में रखा गया। वहां उन्होंने राजनीतिक कैदियों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार के खिलाफ भूख हड़ताल की जिसके चलते गोरी हुकूमत को जेल के हालात सुधारने को मजबूर होना पड़ा। रिहाई के बाद राजनीतिक रूप से अरुणा ज्यादा सक्रिय नहीं रहीं लेकिन 1942 में जब भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ तो वह आजादी की लड़ाई में एक नायिका के रूप में उभर कर सामने आईं।