स्त्री द्वारा किए गए कार्य इतिहास ही रचते हैं, क्योंकि समाज द्वारा लगाए गए बेरिकेड्स को तोड़कर उस मुकाम पर पहुंचा जाता है। 20 साल पहले 27 अगस्त को सोनाली बनर्जी देश की पहली महिला मरीन इंजीनियर बनी थीं। आज कई सारी महिलाएं इस क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रही हैं। समस्त महिलाओं के लिए सोनाली बनर्जी एक आदर्श है। 20 पहले किसी महिला के लिए इतना बड़ा सपना देखना अपने आप में बड़ी बात है। लेकिन सभी किंतु-परंतु को दरकिनार करते हुए अपना परचम लहराया।
जानिए किससे मिली प्रेरणा
सोनाली का बचपन से ही समुद्र और जहाज से नाता रहा है। हालांकि इस क्षेत्र में आगे बढ़ने की प्रेरणा सोनाली बनर्जी को अपने अंकल से मिली। सोनाली के चाचा नौसाना में थे। जिन्हें देखकर वह प्रेरित होती थी और हमेशा जहाजों पर रहकर काम करना चाहती थी। अपने इस सपने को पूरा करने के लिए सेानाली ने मरीन इंजीनियरिंग में प्रवेश लिया।
1500 कैडेट्स में अकेली महिला थीं
सोनाली के लिए मरीन इंजीनियर बनना आसान नहीं था। 1995 में आईआईटी परीक्षा पास कर लीं। और मरीन इंजीनियरिंग कोर्स में एडमिशन मिल गया। मरीज इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट से यह कोर्स पूरा किया। लेकिन जब सोनाली प्रवेश पाकर कॉलेज पहुंची तब सभी के सामने एक समस्या थी कि वह अकेली लड़की थी। उन्हें कहां-कैसे रखा जाएगा? 1500 कैडेट में अकेली महिला कैडेट थीं। 27 अगस्त, 1999 को वह भारत की पहली महिला मरीन इंजीनियर बनकर निकली। मात्र 22 साल की उम्र में वह मरीन इंजीनियर बन गई थी।
ट्रेनिंग के लिए सोनाली का "मोबिल शिपिंग को" चयन हुआ। 6 महीने के प्री-सी कोर्स के दौरान वह सिंगापुर, थाईलैंड, श्रीलंका, हॉंगकॉग, फिजी और ऑस्ट्रेलिया में अपनी ट्रेनिंग पूरी की। कई सारी समस्या को पार करते हुए अपना सपना साकार किया।