मदर टेरेसा भारत क्यों आई थीं? कैसे हुई मिशनरीज ऑफ चैरिटी की शुरुआत
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'एक जीवन जो दूसरों के लिए नहीं जीया गया वह जीवन नहीं है।' यह सुविचार नोबेल पुरस्कार जीतने वाली मदर टेरेसा का है। मदर टेरेसा को आज भी उनके नेक कामों के लिए याद किया जाता है। दुनिया का शायद ही ऐसा कोई प्रतिष्ठित अवॉर्ड होगा, जो मदर टेरेसा को न मिला हो। आपको बता दें कि भारत सरकार उन्हें भारत रत्न से भी सम्मानित कर चुकी हैं। अमेरिका और रूस ने भी अपने देश के सर्वोच्च सम्मान व अवॉर्ड से उन्हें नवाजा है। मदर टेरेसा के बारे में कई तथ्य और जानकारी मौजूद हैं पर कई लोगों का सवाल होता है कि मदर टेरेसा भारत क्यों आई थीं?
मदर टेरेसा के पास थी भारतीय नागरिकता
मदर टेरेसा 6 जनवरी 1929 में भारत आई थीं और उनका जन्म उनका जन्म यूगोस्लाविया के स्कॉप्जे में 26 अगस्त 1910 को हुआ था। उनका असली नाम एग्नेस गोंझा बोयाजिजू ही था, जो बाद में 'मदर टेरेसा' बनीं। मदर टेरसा रोमन कैथोलिक नन थीं जिनके पास भारतीय नागरिकता थी। फिर वे भारत आकर ईसाई ननों की तरह अध्यापन से जुड़ गईं। कोलकाता के सेंट मैरीज हाईस्कूल में पढ़ाने के दौरान एक दिन कॉन्वेंट की दीवारों के बाहर फैली दरिद्रता देख वे विचलित हो गईं। वह पीड़ा उनसे बर्दाश्त नहीं हुई और कच्ची बस्तियों में जाकर सेवा कार्य करने लगीं।
मिशनरीज ऑफ चैरिटी की हुई शुरुआत
इस दौरान 1948 में उन्होंने वहां के बच्चों को पढ़ाने के लिए एक स्कूल खोला और तत्पश्चात 'मिशनरीज ऑफ चैरिटी' की स्थापना की। 'सच्ची लगन और मेहनत से किया गया काम कभी निष्फल नहीं होता', यह कहावत मदर टेरेसा के साथ सच साबित हुई। काम इतना बढ़ता गया कि सन् 1996 तक उनकी संस्था ने करीब 125 देशों में 755 निराश्रित गृह खोले जिससे करीब 5 लाख लोगों की भूख मिटने लगी।
मदर टेरेसा के 6 महान काम
1.18 वर्ष की उम्र में मदर टेरेसा ने अपना घर त्याग दिया था। वह फादर फ्रेंजो जेमरिक से काफी प्रभावित हुई थी। लोगों की सेवा के लिए उन्होंने अपने सभी सुख-सुविधाओं को त्याग दिया था। गरीबों की सेवा करने के लिए नन बनने की दिशा में कदम उठाया। 24 मई 1937 को मदर टेरेसा ने अंतिम प्रतिज्ञा ली। नन की प्रतिज्ञा लेने के बाद उन्हें मदर की उपाधि दी गई। इसके बाद से वह पूरे विश्व में मदर टेरेसा के नाम से प्रसिद्ध हुई।
2.1947 में भारत पाकिस्तान के बंटवारे के दौरान कई लोगों की मदद की थी। बंटवारे के दौरान अपने परिवार से बिछड़ गए बच्चों को पनाह दी। उन सभी बच्चों को एक जगह इकट्ठा कर सभी के लिए प्रबंध किया। इसके बाद से ही मदर टेरेसा ने नीले बॉर्डर वाली साड़ी पहनना भी शुरू किया। बाद में उन्होंने 6 महीने की बेसिक मेडिकल ट्रेनिंग भी लीं। ताकि जरूरतमंद को समय पर उपचार मिल सकें।
3.1948 के दौर में भारत की स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। ऐसे में मदर टेरेसा ने बेसहारा लोगों को सहारा दिया था। स्लम क्षेत्र में रहकर वह खतरनाक बीमारियों से जूझ रहे लोगों की सेवा की। वह चाहते तो वापस कॉन्वेंट जा सकती थीं। लेकिन वहीं रहकर लोगों की सेवा की। स्लम क्षेत्र में गंदगी के बीच रहना आसान नहीं था।
4.1970 में मदर टेरेसा को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। पुरस्कार के साथ उन्हें 1,90,000 डॉलर का चेक भी दिया गया। जिसकी भारतीय मु्द्रा में 1 करोड़ 41 लाख रुपए की राशि होती है। इतनी बड़ी रकम को उन्होंने गरीबों की सेवा में लगा दिया।
5.7 अक्टूबर 1950 को मदर टेरेसा ने वेटिकन से -मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की थी। इस चैरिटी को स्थापित करने का मुख्य उद्देश्य था, निर्वस्त्र, भूखों, बेघर, विकलांग सहित अन्य बेसहारा लोगों का सहारा बनना। इस चैरिटी की स्थापना मात्र 13 लोगों के साथ की थी। मदर टेरेसा के निधन (1997) के वक्त यह संख्या 4000 के करीब थी। वर्तमान में 4000 से अधिक सिस्टर्स असहाय लोगों की सेवा कर रही हैं।
6.मिशनरीज ऑफ चैरिटी की कलकत्ता में स्थापना की थी। आज 120 से अधिक देशों में मानवीय कार्य के लिए जाना जाती है चैरिटी। मिशनरी संपूर्ण जगत में गरीब, बीमार, असहाय, वंचित लोगों की सेवा और सहायता में अपना योगदान देते हैं। इतना ही वह एड्स पीड़ित लोगों की सहायता भी करते हैं।