himachal polyandry marriage: हाल ही में हिमाचल प्रदेश में हट्टी समाज के दो भाइयों ने एक ही युवती संग शादी रचाई है। इस परंपरा को लेकर सोशल मीडिया पर तमाम चर्चाएं हो रही हैं। हालांकि, यह शादी हिमाचल की प्राचीन बहुपति प्रथा के तहत की गई है, जिसे समाज के लोगों ने भी स्वीकार किया है। हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के ट्रांस-गिरी क्षेत्र में निवास करने वाली हट्टी जनजाति अपनी सदियों पुरानी बहुपति परंपरा (Polyandry) के लिए जानी जाती है, जहां एक महिला दो या दो से अधिक सगे भाइयों से विवाह करती है। यह प्रथा आधुनिक समाज में भले ही असामान्य लगे, लेकिन यह उन क्षेत्रों की विशेष सामाजिक, आर्थिक और भौगोलिक परिस्थितियों में विकसित हुई है। यह सिर्फ शादी का एक तरीका नहीं है, बल्कि एक जटिल सामाजिक व्यवस्था का हिस्सा है, जो परिवार की संपत्ति को एकजुट रखने और संसाधनों के बेहतर प्रबंधन में मदद करती है। आइए, हिमाचल प्रदेश के हटती समाज की इस अनूठी बहुपति परंपरा के बारे में विस्तार से जानते हैं।
बहुपति प्रथा का इतिहास और उत्पत्ति
हट्टी जनजाति में बहुपति प्रथा का इतिहास काफी पुराना है। कुछ पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस प्रथा की जड़ें महाभारत काल से जुड़ी हैं, जब पांडव अपने अज्ञातवास के दौरान हिमाचल प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में रहे थे। ऐसा माना जाता है कि द्रौपदी के पांच पतियों की अवधारणा ने इस क्षेत्र की संस्कृति पर गहरा प्रभाव डाला, जिससे यह प्रथा विकसित हुई। हालांकि, यह एक लोककथा है और इसका कोई ठोस ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है।
अधिकतर विद्वान और स्थानीय बुजुर्ग इस प्रथा के पीछे के व्यावहारिक कारणों को प्रमुख मानते हैं। यह सदियों से चली आ रही एक परंपरा है, जिसे हट्टी समुदाय ने अपनी विशिष्ट परिस्थितियों के अनुकूल ढाल लिया था। हाल ही में, हट्टी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा भी मिला है, जो उनकी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान को और मजबूत करता है।
बहुपति प्रथा क्यों प्रचलित है? सामाजिक, आर्थिक और भौगोलिक पक्ष
हट्टी जनजाति में बहुपति प्रथा के प्रचलन के पीछे कई जटिल कारण हैं, जो एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं: 1. आर्थिक कारण: भूमि का विखंडन रोकना यह बहुपति प्रथा का सबसे प्रमुख और महत्वपूर्ण कारण माना जाता है। हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों में कृषि योग्य भूमि सीमित है। यदि परिवार के सभी भाइयों की अलग-अलग शादियां होतीं, तो पैतृक संपत्ति (जमीन) छोटे-छोटे टुकड़ों में बँट जाती, जिससे खेती करना मुश्किल हो जाता और परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर पड़ जाती। एक ही महिला से सभी भाइयों का विवाह होने से भूमि का बंटवारा रुक जाता है और परिवार की संपत्ति एकजुट बनी रहती है। यह संसाधनों के बेहतर प्रबंधन में मदद करता है और परिवार को आर्थिक रूप से स्थिर रखता है।
2. सामाजिक कारण: पारिवारिक एकता और श्रम का प्रबंधन यह प्रथा परिवार के भीतर एकता और सामंजस्य बनाए रखने में मदद करती है। जब सभी भाई एक ही पत्नी साझा करते हैं, तो उनके बीच संपत्ति या अन्य घरेलू मामलों को लेकर होने वाले झगड़े कम हो जाते हैं। यह सामूहिक श्रम को बढ़ावा देता है, क्योंकि सभी भाई मिलकर खेती और अन्य पारिवारिक कार्यों में सहयोग करते हैं। यह एक बड़े और संयुक्त परिवार की संरचना को बनाए रखने में भी सहायक होता है, जहां सभी सदस्य एक-दूसरे का समर्थन करते हैं। कुछ बुजुर्गों का यह भी मानना है कि यह भाइयों के बीच दरार को रोकने और उन्हें एकजुट रखने का एक तरीका है।
3. भौगोलिक कारण: कठिन जीवनशैली और सीमित संसाधन हिमाचल प्रदेश का पहाड़ी इलाका, खासकर ट्रांस-गिरी क्षेत्र, भौगोलिक रूप से काफी दुर्गम है। यहां जीवनयापन करना और खेती करना चुनौतीपूर्ण होता है। सीमित कृषि योग्य भूमि, कठोर जलवायु और संसाधनों की कमी ने समुदाय को ऐसी प्रथाएं विकसित करने पर मजबूर किया, जो उनके अस्तित्व को सुनिश्चित कर सकें। बहुपति प्रथा इस कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में जनसंख्या नियंत्रण और संसाधनों के कुशल उपयोग में भी सहायक सिद्ध हुई है।
आधुनिक समाज में स्थिति और चुनौतियां
आधुनिक समाज में, बहुपति प्रथा को लेकर अक्सर बहस और नैतिक सवाल उठते हैं। भारतीय कानून, विशेषकर हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत, बहुविवाह (जिसमें बहुपति और बहुपत्नी दोनों शामिल हैं) अवैध है। हालाँकि, जनजातीय समुदायों में उनकी विशिष्ट परंपराओं को कुछ हद तक मान्यता दी जाती है। हाल के कुछ मामलों में, जहां हट्टी जनजाति में बहुपति विवाह हुए हैं, संबंधित पक्षों ने इसे अपनी सहमति से लिया गया निर्णय बताया है। यह दर्शाता है कि यह प्रथा अभी भी कुछ क्षेत्रों में जीवित है, लेकिन यह आधुनिक शिक्षा और जागरूकता के साथ बदल रही है। महिलाओं में बढ़ती साक्षरता और आर्थिक उत्थान के कारण, इस प्रथा के मामलों में कमी भी देखी गई है।
हिमाचल प्रदेश की हट्टी जनजाति में बहुपति परंपरा एक जटिल सामाजिक-आर्थिक-भौगोलिक अनुकूलन का परिणाम है। यह केवल एक विवाह पद्धति नहीं, बल्कि एक समुदाय की सदियों पुरानी जीवनशैली, चुनौतियों और अस्तित्व की कहानी है। यह प्रथा भूमि के विखंडन को रोकने, पारिवारिक एकता बनाए रखने और सीमित संसाधनों का बेहतर प्रबंधन करने में सहायक रही है। हालांकि, आधुनिकता के साथ इसके नैतिक और कानूनी पहलुओं पर विचार करना महत्वपूर्ण है, लेकिन इस प्रथा का अध्ययन हमें भारतीय समाज की अद्वितीय विविधता और उसके अनुकूलन क्षमता को समझने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है।