उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक दिए इस्तीफे को लेकर सियासत गर्मा गई है। संसद के मानसून सत्र के पहले दिन ही जिस तरह से जगदीप धनखड़ ने इस्तीफा दिया उससे कई सवाल उठा रहे है। विपक्ष उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक दिए इस्तीफे को लेकर सरकार पर हमलावर है वहीं सत्ता पक्ष इस पर बैकफुट पर दिख रही है। पीएम मोदी ने सोशल मीडिया पर पोस्ट करके लिखा कि जगदीश धनखड़ को देश की सेवा का अवसर मिला और मैं उनके उत्तम स्वास्थ्य की कामना करता हूं। वहीं राष्ट्रपति ने जगदीप धनखड़ का इस्तीफा स्वीकार कर लिय़ा है।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने इस्तीफे में स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया है लेकिन इस पर भी सियासी गलियारों में सवाल उठ रहे है। संसद के मानसून सत्र के पहले दिन जिस तरह जगदीप धनखड़ जिस अंदाज में सक्रिय थे और राज्यसभा के सभापति की हैसियत से राज्यसभा की कार्यवाही का संचालन किया और कई बैठकें और मुलाकातें की, उससे एक बात पूरी तरह साफ है कि उनका स्वास्थ्य एकदम सही थी और इस्तीफे का स्वास्थ्य कारण तत्काल कोई कराण नहीं लगता था।
क्या सरकार से नाराज थे जगदीप धनखड़?- उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे की वजह क्या सरकार से उनकी नाराजगी थी, यह सवाल इसलिए खड़ा हो रहा है कि सोमवार को दो ऐसे घटनाक्रम हुए जो कई सवाल खड़े हुए है। दरअसल राज्यसभा की कार्यवाही के दौरान जब राज्यसभा मे विपक्ष के नेता औऱ कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे बोल रहे तब जेपी नड्डा ने उन्हें टोकते हुए कहा कि यह रिकॉर्ड पर नहीं जाएगा, जबकि यह अधिकार और व्यवस्था देना सदन के सभापति का है। इसके बाद शा को राज्यसभा की बिजनेस एडवाइजरी कमेटी में भी जेपी नड्डा और संसदीय कार्यक्रमंत्री किरेन रिजिजू नहीं पहुंचे थे। इन दो घटनाक्रम से साफ है कि सरकार और उपराष्ट्रपति के बीच सब कुछ सामान्य नहीं था।
इस बीच जेपी नड्डा ने पूरे मामले पर सफाई देते हुए कहा कि मैंने और किरेन रिजिजू ने उपराष्ट्रपति की ओर से 4.30 बजे बुलाई गई बैठक में हिस्सा नहीं लिया था। ऐसा इसलिए क्योंकि हम किसी दूसरे महत्वपूर्ण संसदीय कार्य में व्यस्त हो गए थे। इसकी पहले से ही सूचना उपराष्ट्रपति कार्यालय को दे दी गई थी। वहीं बैठक में सरकार की ओर से नड्डा और किरेन रिजिजू के नहीं आने से बैठक मंगलवार तक टाल दी गई थी।
जस्टिस यशवंत वर्मा के महाभियोग पर टकराव?- उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ लाए जाने वाले महाभियोग प्रस्ताव से भी जोड़कर देखा जा रहा है। संसद के मानसून सत्र के पहले दिन राज्यसभा में विपक्षी दलों के 63 सांसदों ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग पर दस्तखत करके सभापति जगदीप धनखड़ को सौंप दिया था, इस प्रस्ताव पर सत्ता पक्ष के किसी सांसद के हस्ताक्षर नहीं थे और दूसरी ओर जगदीप धनखड़ ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ विपक्षी दलों का ये प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। वहीं सोमवार को हुए लोकसभा में सत्ता पक्ष और विपक्ष के 145 सांसदों ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव पेश किया था।
ऐसे में माना जा रहा है कि सरकार महाभियोग प्रस्ताव को लोकसभा में लेकर आना चाह रही थी, जब उपराष्ट्रपति धनखड़ ने सदन में प्रस्ताव पढ़ते हुए कहा कि 50 से अधिक सदस्यों के हस्ताक्षर की संख्या शर्त पूरी है, उन्होंने कहा कि यदि प्रस्ताव दो अलग-अलग दिनों में पेश हुआ हो तो जो प्रस्ताव पहले पेश हुआ उसी पर विचार होगा. यानी राज्यसभा में पेश विपक्ष का प्रस्ताव प्रभावी होगा। इस दौरान धनखड़ ने कहा कि सदन को उच्चतम मानक स्थापित करने चाहिए. यदि हम लोगों की उपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे तो इसका मतलब है कि हम मुद्दों को दबा रहे हैं। ऐसे में अब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे को महाभियोग प्रस्ताव से जुड़े पूरे घटनाक्रम से जोड़कर देखा जा रहा है, कयास लगाए जा रहे हैं कि विपक्ष के प्रस्ताव को स्वीकार किए जाने की वजह से सरकार नाराज थी।