इस तरह हुई इंदौर में पहले राजनीतिक दल की शुरुआत

कमलेश सेन
राज्य प्रजामंडल और प्रजा परिषद के गठन साथ ही नगर में राजनीतिक हलचल आरंभ हो गई थी। दिसंबर 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हो चुकी थी। नगर में देशप्रेम और आजादी की दीवानगी युवा वर्ग में जोश के साथ थी। उस दौर में कांग्रेस एकमात्र दल था, जो आजादी के आंदोलन में प्रमुखता से नेतृत्व कर रहा था और सभी प्रमुख नेता भी कांग्रेस के झंडे तले राजनीतिक गतिविधियां संचालित कर रहे थे।
 
कांग्रेस के जन्म के 35 वर्ष बाद यानी 1920 में इंदौर में कांग्रेस की स्थापना हुई। कांग्रेस की स्थापना उस वक्त इंदौर में न होकर छावनी क्षेत्र में की गई थी। आखिर इंदौर में कांग्रेस का गठन न होने की भी रोचक कहानी है। 1818 में मंदसौर संधि के बाद इंदौर को राजधानी बनाया गया। राज्य में होने वाली गतिविधियों और महाराजा से संपर्क के लिए ब्रिटिश अधिकारी का पद कायम किया गया जिसे रेजिडेंट या ए.जी.जी. नाम दिया गया। साथ ही मंदसौर संधि में यह शर्त रखी गई थी कि अंग्रेज अधिकारियों के ऑफिस और निवास के लिए एक पृथक क्षेत्र दिया जाए। इसके तहत 1.35 वर्गमील का क्षेत्र, जो आज के छावनी एरिया में है, वह रेसीडेंसी एरिया कहलाएगा। इस क्षेत्र में होलकर सरकार के नियम प्रभावशील नहीं रहेंगे। जाहिर है इस क्षेत्र की सत्ता के राजा अंग्रेज अधिकारी थे।
 
कांग्रेस के गठन के वक्त यह शर्त थी कि कांग्रेस देशी राज्यों में राजनीतिक गतिविधियां संचालित नहीं करेगी। इसी योजना के तहत 1 जून 1920 को छावनी क्षेत्र में कांग्रेस कमेटी की स्थापना की गई। इस तरह पहले राजनीतिक दल का नगर के आभामंडल में उदय हुआ। कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सेठ बद्रीलाल, उपाध्यक्ष छोटेलाल गुप्ता और ओंकारदत्त शर्मा मंत्री बनाए गए। प्रमुख नेताओं में सूर्यनारायण जोशी, बंशीधर उपाध्याय थे। चूंकि इंदौर में कांग्रेस का कोई अस्तित्व नहीं था और छावनी में कांग्रेस थी, यह विवाद का विषय बना रहा कि छावनी को इंदौर का हिस्सा माना जाए या अंग्रेजी राज्य की एक पृथक इकाई। यह विवाद कई सालों तक बना रहा। 1928 में गांधीजी ने इस विवाद को खत्म किया कि कांग्रेस की छावनी इकाई एक पृथक संस्था है।
 
कांग्रेस कार्यकर्ताओं की बैठक छावनी के अलावा कड़ावघाट में मांडलियाजी की धर्मशाला में हुआ करती थी जिसमें स्थानीय नेता अपने विचार व्यक्त करने के लिए एकत्र होते रहते थे। यह धर्मशाला राष्ट्रीय हलचल का केंद्र बन गई थी।
 
छावनी की कांग्रेस से इंदौर नगर के नेता संतुष्ट नहीं थे और छावनी कांग्रेस का कार्य व्यवस्थित नहीं था। इंदौर में कांग्रेस को पुनर्गठित करने का निर्णय लिया गया। 1929 में इंदौर में लोहारपट्टी के समीप एक मंदिर में नागरिकों की बैठक हुई। इसमें श्री हरिभाऊ उपाध्याय, अजमेर, मेहरवाड़ा उपस्थित थे। मिश्रीलाल जी गंगवाल ने राष्ट्रीय गीत गाया।
 
इस पुनर्गठित कांग्रेस कमेटी में पूनमचंद रब्बावाला, बड़े भालेराव वकील, वैद्य ख्यालीरामजी द्विवेदी, कन्हैयालाल ताम्बी, स्वामी ज्ञानद, रामनिवास खंडेलवाल, मन्नालालजी सुनार, रामनारायण पहलवान आर्य, छोटेलाल गुप्ता थे। इस बैठक में आर्यदत्त जुगडान अध्यक्ष एवं रतनलाल उपाध्याय मंत्री बनाए गए।
 
छावनी से कांग्रेस कार्यालय का सामान कई युवा नेता सिर पर रखकर ऑफिस में लाए। इस कार्य में कई कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने सहयोग दिया था। मोतीमहल इतवारिया बाजार में कांग्रेस कमेटी का कार्यालय स्थापित किया गया। साथ ही इस कमेटी को जिला कांग्रेस का दर्जा दिया गया और मध्य भारतीय रियासतों में उसका कार्यक्षेत्र निर्धारित किया गया। इस तरह इंदौर नगर में प्रथम राजनीतिक दल का आगमन हुआ था।

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