होलकरों के समय में मोहर्रम के अवसर पर सरकारी ताजिया बड़ी धूमधाम से निकाला जाता था। इंदौर में राजबाड़ा बन जाने के बाद नए इमामबाड़े से सरकारी ताजिया निकलने लगा। यह ताजिया देश की आजादी के पूर्व तक 7 खंडों (मंजिल) का होता था और इसकी ऊंचाई 55 फीट होती थी। खासगी ट्रस्ट से इसके निर्माण का खर्च मिलता था। इसे लगभग 100 व्यक्ति उठाते थे।
इतने बड़े ताजिए को साधने और संभालने के लिए रस्सियां बांधी जाती थीं। महाराजा स्वयं आते थे, सैली पहनते थे तथा फातिहा पढ़वाते थे। वे हाथी पर बैठकर करबला तक जाते थे। ताजिए के साथ अखाड़े और दूसरे सरकारी ओेहदेदार जाते थे। पहले इस ताजिए को ख्वाजाबख्श बनाते थे। उसके बाद उनके पुत्र श्री यासीन बाबा। सरकारी ताजिए का प्रतीकात्मक रूप से निर्माण अब भी इमामबाड़े के निकट होता है।
निजी रास्तों से ताजिए निकलते थे। उन्हें धोकर साफ किया जाता था। इन मार्गों पर सबीलें (प्याऊ) भी लगती थीं। जुलूस में सभी उम्र, वर्ग और समुदाय के लोग शामिल होते थे। कई महिलाएं अपने बच्चों को ताजियों के नीचे से निकालकर दुआएं मांगती थीं और आज भी ऐसा करती हैं। उल्लेखनीय है कि इनमें से अधिकांश ताजिए आदि अभी भी उठाए जाते हैं।