जब जे.आर.डी. 'डाकिए' बनकर आते थे

जितेन्द्र मुछाल
किस्सा है 1937 का तब 10 हजार करोड़ रुपए से अधिक का कारोबार करने वाले समूह के प्रमुख जे.आर.डी. टाटा हवाई जहाज से चिटि्‌ठयां लेकर इंदौर आते थे। टाटा एयर लाइंस ने उन दिनों दिल्ली से ग्वालियर-भोपाल और इंदौर होते हुए बंबई के लिए हवाई डाक सेवा शुरू की थी। चूंकि टाटा एयरवेज में सिर्फ 3 ही पायलट थे, इसलिए जे.आर.डी. को भी विमान उड़ाना पड़ता था।
 
दिसंबर 7, 1937। विमान प्रकार- वेंको सी-6। इंजन प्रकार- जाकोबो, एच.डी.-225। बंबई से इंदौर- उड़ान समय 2 घंटे 20 मिनट। वापसी दिसंबर 8, इंदौर से बंबई, समय 2 घंटे 15 मिनट। सहचालक नेविल विन्टसेंट के साथ। आधा उड़ान समय दर्ज।
 
ऊपर लिखे इस वर्णन को पहली बार पढ़ने पर भी शायद आपको कुछ ज्यादा समझ नहीं आएगा, लेकिन अगर यह बताया जाए कि यह 'पायलट लॉग-बुक' (किसी भी विमान चालक द्वारा उड़ान के गंतव्य, प्रस्थान व आगमन के समय आदि के विवरण को दर्ज करने की पुस्तिका) का एक पन्ना है, तो शायद स्थिति स्पष्ट हो जाएगी। यह विवरण भारत में उड्डयन के प्रणेता, भारतरत्न जे.आर.डी. (जहांगीर रतनजी दादाभाई) टाटा की ऐतिहासिक लॉग बुक से है।
 
भारत में हवाई डाक सेवा का शुभारंभ 15 अक्टूबर 1932 को हुआ था, जब कराची (विभाजन से पूर्व भारत में) से अहमदाबाद होते हुए बंबई की उड़ान भरकर जे.आर.डी. टाटा ने इतिहास रचा था। उस उड़ान के कुछ ही समय पहले जे.आर.डी. और नेविल विन्टसेंट के संयुक्त प्रयासों के बाद टाटा एयर लाइंस का जन्म हुआ था। वह उद्‌घाटन उड़ान टाटा एयर लाइंस के ही विमान 'डी. हैवीलैंड पस सोथ' से पायलट के रूप में जे.आर.डी. टाटा ने 6 घंटे 50 मिनट में पूरी की थी।
 
वैसे मूलभूत योजना कुछ इस प्रकार थी कि तत्कालीन इंपीरियल एयरवेज लंदन से कराची तक हवाई डाकसेवा का संचालन कर रही थी। उसी सेवा से पूरे भारत को जोड़ने के लिए कराची से अहमदाबाद होते हुए बंबई और फिर बंबई से बेलारी होते हुए मद्रास विमान से डाक और थोड़े ही समय बाद यात्रियों को ले जाने का सिलसिला प्रारंभ हुआ। धीरे-धीरे देश के अन्य हिस्से भी विमान सेवा के जरिए जुड़ने लगे।
 
इसी तारतम्य में इंदौर से भी हवाई पट्टी निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ हुई। 1934 को होलकर स्टेट एडमिनिस्ट्रेशन रिपोर्ट जिसके प्रमुख अंश इंदौर गजेटियर में उद्‌धृत हैं, के अनुसार-
 
'मेसर्स टाटा एंड संस, विमान विभाग (टाटा एयर लाइंस का प्रारंभिक स्वरूप) के मिस्टर विन्टसेंट से परामर्श करने के बाद विमानतल के निर्माण के लिए बिजासनी स्थल को चुना गया। संपूर्ण योजना मंजूर कर दी गई। लागत का अनुमान 1,84,092 रुपए था। प्रथमावस्था में 14,500 रुपए की अनुमानित लागत से एक विमान-शाला (हेंगर) के लिए भी व्यवस्था की गई।
 
'दि इंडियन नेशनल एयरवेज' ने प्रस्तावित विमानतल पर रात्रि में विमानों के उतरने से संबंधित सुविधाओं की व्यवस्था करने के लिए शासन से निवेदन किया। 1 फरवरी, 1935 को कमांडर वॉट, विमानतल अधिकारी, कराची ने स्थल का निरीक्षण किया और अपने सुझावों सहित प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जिस पर तत्कालीन सरकार ने स्वीकृति प्रदान कर 2,20,488 रुपए की राशि मंजूर कर दी। कमांडर वॉट के प्रतिवेदन में भी रात्रि अवतरण-क्षेत्र का जिक्र था।
 
वहीं दूसरी ओर 1936 में टाटा एयर लाइंस में नए अमेरिकी 'वाको वाय.क्यू.सी.-6' विमान का आगमन हो गया। ब्रिटिश 'पस मोथ' के 120 हॉर्स पॉवर वाले इंजन के मुकाबले 'वेको' का इंजन 225 हॉर्स पॉवर का था। यह 'पस मोथ' से एक और मायने में बेहतर था। 'पस मोथ' के इंजन को स्वयं चालक को हाथ से घुमाकर शुरू करना पड़ता था, जबकि 'वेको' में यह व्यवस्था स्वचालित थी।
 
इसी 'वेको' के आगमन के पश्चात टाटा एयर लाइंस ने दिल्ली से ग्वालियर, भोपाल और इंदौर होते हुए बंबई के लिए हवाई डाकसेवा प्रारंभ करने का विचार बनाया। चूंकि उस वक्त टाटा एयरलाइंस में सिर्फ 3 ही पायलट थे (जे.आर.डी., विन्टसेंट और होमी भरुचा), इसलिए जे.आर.डी. को भी विमान चालन का काफी भार उठाना पड़ा था।
8 नवंबर 1937 को दिल्ली से बंबई की उद्‌घाटन उड़ान को विदा करने के लिए दिल्ली की वेलिंगटन हवाई पट्टी पर खासी भीड़ जमा थी।
 
टाटा एयरलाइंस के 2 विमानों से उस सेवा की शुरुआत हुई जिसमें से एक नेविल विन्टसेंट उड़ा रहे थे। उस विमान में 3,500 चिटि्‌ठयां और एक यात्री बैठा था। दूसरे विमान में 3 पत्रकार थे। रेशम की 4 नीली-सुनहरी थैलियों में तत्कालीन वाइसराय द्वारा तीनों रियासतों के प्रमुखों और बंबई के गवर्नर के लिए शुभकामना संदेश थे। पूरे समारोह की रपट रेडियो से प्रसारित की गई थी। उद्‌घाटन सेवा में कुल उड़ान समय 6 घंटे 15 मिनट का रहा। यानी तब 10,000 करोड़ रुपए से भी अधिक कारोबार वाले समूह का प्रमुख इंदौर सिर्फ 'डाकिए' के रूप में आता था। हां, इसमें उसकी पूर्ण स्वेच्छा थी, कोई मजबूरी नहीं।
 
उपरोक्त संदर्भ के साथ उल्लेखनीय है कि इंदौर में नियमित हवाईसेवा 26 जुलाई, 1948 को प्रारंभ हुई। यहां यह भी विचारणीय है कि जिस रात्रि विमान सेवा हेतु विमानतल को सुसज्जित करने का प्रावधान 1935 में बन गया था और जिसे शासन की मंजूरी भी मिल गई थी, उसे नागरिक विमानन सेवा में लागू होते-होते 53 साल लग गए, जब 20 अप्रैल 1988 को इंदौर हवाई अड्‌डे पर रात्रि विमान सेवा की अंतिम रिहर्सल की गई।

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