पेशाब, फुलवारी और जलवायु परिवर्तन

शुक्रवार, 13 नवंबर 2009 (22:13 IST)
खुले आसमान के नीचे मूत्रत्याग करना भले ही अच्छा नहीं माना जाता हो लेकिन ब्रिटेन का एक गैर सरकारी संगठन इसे जलवायु परिवर्तन से जोड़कर इस दावे के साथ खुले में मूत्रत्याग के विचार को बढ़ावा दे रहा है कि इससे मूत्रालय की सफाई में जाया होने वाले जल और उर्जा दोनों की बचत होती है।

जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में प्रचार कार्यों में सक्रिय भूमिका निभा रहे गैर सरकारी संगठन ‘नेशनल ट्रस्ट’ ने ब्रिटेन के मर्दों से कहा है कि वे बाग-बगीचों को हरा-भरा बनाने और मूत्रालय की सफाई में जाया होने वाले जल एंव उर्जा को बचाने के लिए कूड़ा-करकट के ढेर पर मूत्रत्याग करें।

ट्रस्ट के ‘कम्पोस्ट डाक्टर’ टी फिलिप्स का कहना है कि एक दफा मूत्रत्याग करने के बाद मूत्रालय में उसकी सफाई पर औसतन साढ़े चार से नौ लीटर तक पानी इस्तेमाल होता है। लेकिन जो बात लोगों को शायद समझ में नहीं आती, वह यह है कि यह पानी उस पानी के समान होता है, जिसका पेयजल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है और इसे बर्बाद नहीं किया जाना चाहिए।

‘टेलीग्रॉफ’ की खबर के मुताबिक कूड़े-कचड़े के ढेर पर मूत्रत्याग करने से कचरे के खाद में बदलने की प्रक्रिया में तेजी आती है। इसमें कहा गया है कि पुरुष का मूत्र स्त्री के मूत्र के मुकाबले कम अम्लीय होता है, जो खाद बनाने में कारगर भूमिका निभा सकता है।

ट्रस्ट ने अपने इस विचार को बढ़ावा देने के लिए अपने कर्मचारियों के लिए अपने परिसर में कुछ निर्दिष्ट स्थानों पर खुले में पेशाब करने की व्यवस्था भी की है। (भाषा)

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