फ्रांस में आतंकी हमले का शिकार बने ये चार कार्टूनिस्ट...

गुरुवार, 8 जनवरी 2015 (16:31 IST)
साप्ताहिक व्यंग्य पत्रिका शार्ली हेब्दो के कार्यालय पर हुए आतंकवादी हमले में जो चार कार्टूनिस्ट्स मारे गए हैं, वे देश की संस्कृति की उस महत्वपूर्ण, उग्र सुधारवादी और मार्मिक संरचना का प्रतिनिधित्व करते थे जो कि पत्रिका की आदर्श थी। यह बात इन काटूर्निस्ट्‍स को जानने वाले और उनके काम पर निगाह रखने वाले जानकारों का कहना है। 
 
समाचार पत्र पर बुधवार को हुए आतंकवादी हमले में जो चार व्यंग्य चित्रकार मारे गए उनमें स्टीफन शार्बोनिए, जॉर्जेज वॉलिंस्की, ज्यां काबू और बर्नाड वर्लहाक शामिल हैं। यह समाचार पत्र निरंतर रूप से उन कार्टून्स को प्रकाशित करता रहा जो कि पैगंबर मोहम्मद का मजाक उड़ाने वाले समझे जाते रहे हैं, लेकिन इस्लामी कानूनों की व्याख्या के अनुसार ये प्रतिबंधित समझे जाते थे। फ्रांस के अधिकारियों का कहना है कि इसी कारण से पत्रिका के कार्यालय पर हमला किया गया। 
एक फिल्मकार डैनियल लेकां इन कार्टूनिस्ट्‍स पर एक डॉक्यूमेंट्री बना रहे थे। उनका कहना है कि ये सभी किसी महत्वपूर्ण पत्रिका के स्तम्भकार जैसे थे। उनका कहना है कि 'वास्तव में जब आप कार्टून बनाते हैं तब आपको बहुत ही सरल और अपने रवैए में बहुत ही उग्र सुधारवादी होना पड़ता है और इस तरह से ये लोग इस्लामवादियों के खिलाफ लड़ाई लड़ने वालों की अगली पंक्ति में थे क्योंकि अपनी लड़ाई के लिए वे हंसी या मजाक पर निर्भर करते थे।''
 
शार्ली हेब्दो का अगस्त 2014 का कवर ज्यां काबू ने बनाया था और यह फ्रांस की अर्थव्यवस्था पर आधारित था। उन्होंने इसका शीर्षक 'जीरो ग्रोथ' दिया था और इसमें फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रास्वां ओलां को एक लाइफगार्ड टी शर्ट पहने दिखाया गया था और इसमें डूबते हुए लोगों से कहा गया था कि 'कोई भी अपनी ओर से प्रयास नहीं करे।' न्यूयॉर्कर की आर्ट डायरेक्टर फ्रांस्वां मोली का कहना है कि शार्ली हेब्दो में स्टाफ बहुत अधिक सहयोगी और मिल जुलकर काम करने वाला है। विदित हो कि वे फ्रांस में पैदा हुईं और वे इसी पत्रिका को पढ़कर बड़ी हुई हैं। विदित हो कि ज्यादातर समाचार पत्रों में कार्टूनिस्ट्‍स अगल-थलग होकर काम करते हैं पर यहां ऐसा नहीं था।

मोली कहती हैं कि यहां ऐसा नहीं था कि आप अकेले ही अपना काम सम्पादक को दिखाएं। वरन यहां पर कार्टूनिस्ट्‍स एक दूसरे के साथ हंसने और प्रोत्साहित करने के लिए जाने जाते हैं। इस अर्थ में वे सच्चे अर्थों में कार्टूस्ट्‍सि थे और वे मात्र अपनी ड्राइंग्स के ही पीछे ‍छिपे नहीं रहते थे। इसके साथ ही, वे अपने खतरों से भी वाकिफ थे क्योंकि वहां पर फायरबम और धमकियां आती रही हैं। वास्तव में, वे उग्रवादियों की धमकियों की अवहेलना करते रहे थे।
 
अस्सी वर्षीय जॉर्जेस वॉलिंस्की ट्यूनीशिया में एक फ्रांसीसी-इतालवी मां और पोलैंड के एक यहूदी पिता के घर पैदा हुए थे। लेकां का कहना है कि वे जीवन, अल्कोहल और महिलाओं को प्यार करते थे। वे एक स्वतंत्र आदमी थे और मैं उन्हें प्यार करता था। वे बहुत अधिक ऊर्जावान और काम करने वाले थे। सुश्री मोली का कहना है कि वे निषेधात्मक वस्तुओं का मजाक बनाने और विस्तृत हास्य चित्र बनाने के अगुवा थे। उनका कहना था कि वॉलिंस्की के लिए कुछ भी पवित्र नहीं था। ना तो नारीवादी आंदोलन और न ही धर्म उन्हें रोक पाते थे। वे सीमाओं से पार जाकर भी व्यंग्य करते थे और इस कारण से वे दूसरे लोगों को भी प्रेरित करते थे।
 
सुश्री मोली का कहना था कि निश्चित रूप से वे खराब रसज्ञान (टेस्ट) से भी आगे निकल गए थे। उनकी ड्राइंग शैली जानबूझकर बहुत तेज और ‍अप्रिय होती थी, लेकिन उनका सारा जोर विचारों पर होता था और इस बात को उन्होंने अपना ट्रेडमार्क बना लिया था।
 
स्टीफन शार्बोनिए (47) को लोग शार्ब के नाम से भी जानते थे और वे शार्ली हेब्दो के सम्पादकीय निदेशक थे और समाचार पत्र के अडिग रुख का चेहरा भी थे। वे पैगंबर मोहम्मद को दर्शाने वाले कार्टूनों के मामले में भी नरम रुख नहीं रखते थे। शार्ब वामपंथियों के परिवार में पले बढ़े थे और एक कट्‍टर वामपंथी कार्यकर्ता थे। लेकां कहना है कि उन्हें जो शिक्षा मिली थी और जो उनकी संस्कृति में शामिल था, वही सब उनके व्यक्तित्व का हिस्सा था। इतना ही नहीं, इन सभी बातों के अलावा वे एक उग्र सुधारवादी भी थे। पैगंबर पर कार्टूनों को प्रकाशित करने के मामले में वे किसी धार्मिक विचारों से प्रभावित नहीं थे वरन वे 'स्वतंत्रता और अधिकार' के पक्षधर थे। वे एक स्वतंत्र आदमी थे और वे अपने विचारों पर किसी किस्म की रोकटोक पसंद नहीं करते थे। वे अभिव्यक्ति की आजादी और बोलने की आजादी चाहते थे।
 
ज्यां काबू को काबू के नाम से जाना जाता था। उनका जन्म 1938 में हुआ था और उन्होंने पेरिस में कला की पढ़ाई की थी। अल्जीरिया में सेना की सेवा में काम करने के बाद वे शार्ली हेब्दो में हाराकिरी के पक्षधर थे। लेकां का कहना है कि वे एक कलाकार, एक कवि, एक मृदुभाषी आदमी और महान पत्रकार थे। वे हमेशा ही ड्राइंग बनाया करते थे और कभी तो उन स्थानों पर भी जहां से वे गुजरते थे। सुश्री मोली का कहना है कि उनकी शैली राजनीतिक थी और उनकी यह स्टाइल बहुत हद तक सॉल स्टीनबर्ग की तरह थी जो कि अमेरिकी श्रोताओं और दर्शकों को बांधे रखती है।
 
वह अक्सर ही राजनीतिज्ञों के हास्य चित्र बनाया करते थे और उनका प्रसिद्ध चरित्र ले ग्रां डूडसे है जो कि एक विचित्र सा ‍‍किशोर है। सुश्री मोली उनके काम की तुलना अमेरिकी कार्टूनिस्ट जू्ल्स फीफर से करती हैं। मोली मानती हैं कि उनकी राजनीतिक ड्राइंग्स के बावजूद उन्होंने खुद को मोहम्मद को ड्रा करने से नहीं रोका क्योंकि उनके लिए यह सब प्रतिदिन का काम था।
 
इस टीम में एक कार्टूनिस्ट बर्नार्ड वर्लाक भी थे जिन्हें टिग्नस के नाम से जाना जाता था। उल्लेखनीय है कि शार्ली हेब्दो में काम करने बाले ज्यादातर कार्टूनिस्ट्‍स अपने उपनाम से जाने जाते हैं। वे वर्ष 1957 में पैदा हुए थे और उन्होंने बहुत सारे प्रकाशनों में अपना योगदान किया था। उनके बारे में फ्रांसीसी अखबार ले मांद कहता है कि वे इस टीम में शामिल होने वाले आखिरी व्यक्ति थे। लेकां कहते हैं कि यह गुट शार्ली हेब्दो की रचनात्मक उत्पादन की जान था। वे एक तरह से काफी शर्मीले आदमी थे लेकिन जब ड्रा करने की बात आती थी तब नहीं। उनके हास्य चित्रों में गजब की गतिशीलता थी। (न्यूयॉर्क टाइम्स से साभार) 

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