अब अंतरिक्ष में भी लड़ने को तैयार चीन, अदृश्य रहकर शत्रु पर करेगा हमला

China preparing for war in space: चीन का कहना है कि उसने दिखावटी (डमी) हथियार के साथ अपनी एक अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल प्रशांत महासागर में दागी है। यह मिसाइल 25 सितंबर को चीन के स्थानीय समयानुसार सुबह 8:44 बजे परीक्षण के लिए दक्षिणी प्रशांत महासागर में, यानी ऑस्ट्रलिया की दिशा में दागी गई।
 
अस्त्र-शस्त्र विशेषज्ञ और चीन के प्रति सशंकित सरकारें चीन के इस अघोषित आकस्मिक परीक्षण पर आश्चर्य चकित हैं। लेकिन चीनी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने इसे यह कहते हुए पूरी तरह 'नियमित' परीक्षण बताया कि वह 'अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार है और किसी विशिष्ट देश के खिलाफ निर्दिष्ट नहीं है।
 
'नियमित' परीक्षण वाली बात इसलिए गले नहीं उतरती कि चीन ने प्रशांत महासागर के ऊपर अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल का आखिरी परीक्षण 44 साल पहले किया था, उसके बाद से नहीं। इसलिए यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि ठीक इस समय इस शक्ति-प्रदर्शन से चीन भला क्या हासिल करना चाहता है?
 
दुनिया आश्चर्य चकित : चीन के इस परीक्षण से सबको आश्चर्य इसलिए भी हो रहा है कि हर छोटी-बड़ी बात को छिपाने के लिए कुख्यात, अपारदर्शी चीन ने अपने आकस्मिक मिसाइल परीक्षण को सार्वजनिक क्यों किया? क्या वह बाहरी दुनिया पर अपनी ताक़त का रोब जमाना चाहता है? हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों को धमकाना चाहता है? परीक्षण भले ही किसी या किन्हीं देशों के विरुद्ध न रहा हो, तब भी कोई भी देश उसे शांति या प्रेम संदेश के तौर पर तो नहीं ही देखेगा।
 
ब्रिटिश दैनिक 'फाइनेंशियल टाइम्स' ने ताइवान के प्रोफेसर लिन यिंग-यू के हवाले से लिखा कि इस कथित परीक्षण द्वारा चीनी नेता 'संकेत दे रहे हैं कि चीन परमाणु हथियारों से अमेरिकी क्षेत्र पर हमला करने के सक्षम है।' वे शायद सोच रहे हैं कि सेवानिवृत्त होने जा रहे अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अंतिम टेलीफोन वार्ता से पहले, मिसाइल परीक्षण कर लेने से चीन की स्थिति और अधिक मज़बूत बनेगी।
 
चीन की मंशा : यह भी हो सकता है कि अमेरिका को अपना बाहुबल दिखाने के साथ-साथ, चीन लगे हाथ अपने पड़ोसियों को, यानी दक्षिण कोरिया, जापान, भारत, भूटान, वियतनाम, ताइवान और फिलीपींस को यह संदेश देना चाहता है कि अपनी खैरियत चाहते हो तो हमारी सुनो, किसी और की नहीं। चीन को लगता है कि रूस और उत्तर कोरिया के साथ अपने विवादों को तो उसने फिलहाल सुलझा लिया है, बचे हैं यही छुटभैये पड़ोसी, जो उसके जैसे महान देश के आगे झुक नहीं रहे।
 
चीनी सेना इन दिनों न केवल दक्षिणी चीन सागर में और हवा में नियमित अभ्यास कर रही है, अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल के कथित परीक्षण वाले 25 सितंबर के दिन, चीन ने पहली बार अपने तीन विमान वाहक पोत भी एक ही समय में समुद्र में उतारे। तीन दशकों से अधिक समय से चीन अपने सैन्य बजट में कम से कम छह प्रतिशत की वर्षिक बढ़ोतरी कर रहा है। 232 अरब डॉलर के बराबर का उसका वर्तमान सैन्य बजाट भले ही अमेरिकी बजट का एक अंश मात्र है, तब भी रूस सहित दुनिया के हर देश के रक्षा-बजट से वह कहीं अधिक ही है। 
 
चीन अपने कई सैन्य खर्चों को छिपाता है, इसलिए आधिकारिक आंकड़ों में वे दिखाई नहीं पड़ते। चीन के सर्वेसर्वा शी जिनपिन ने 'सैन्य-नागरिक संलयन' की एक ऐसी रणनीति को आगे बढ़ाया है, जो सेना को विश्वविद्यालयों के सभी शोध परिणामों और सरकारी स्वामित्व वाली सभी कंपनियों की तकनीकी उपलब्धियों तक पहुंचने और उनका भरपूर लाभ उठाने का अधिकार देता है।
 
परमाणु रणनीति में परिवर्तन : अंतरराष्ट्रीय समुदाय को चीन की परमाणु अस्त्र नीति को लेकर कहीं अधिक चिंतित होना चाहिए। पिछले तीन वर्षों में, अमेरिकी शोधकर्ताओं ने अंतरिक्ष आधारित उपग्रहों की सहायत से, चीन के उत्तर-पश्चिमी रेगिस्तान में परमाणु मिसाइलों को छिपा कर रखने के कई नये साइलों का पता लगाया है। अमेरिकी अनुमानों के अनुसार, चीन के पास पहले से ही 500 परमाणु अस्त्र (बम) हैं और वह अगले दशक के भीतर ही रूस और अमेरिका की बराबरी कर सकता है।
 
अमेरिका के किसी पहले हमले से बचने और अपना जवाबी हमला शुरू करने के लिए चीन के पास अभी से पर्याप्त परमाणु हथियार हैं। तब भी वह अपने परमाणु शस्त्रागार में यदि निरंतर वृद्धि कर रहा है, तो इसीलिए कि वह अमेरिका से आगे बढ़ जाना और दुनिया पर उसी तरह अपनी धाक जमाना चाहता है, जिस तरह अमेरिका ने अब तक अपनी धाक जमा रखी थी।
 
युद्ध-क्षमता का अंतरिक्ष तक विस्तार : पिछले कुछ ही दशकों में चीन ने जिस तेज़ी से आर्थिक और तकनीकी प्रगति की है, उसने उसे बहुत घमंडी और महत्वाकांक्षी बना दिया है। अब वह जमीन पर ही नहीं, सागरों और अंतरिक्ष में भी अपनी युद्ध-क्षमता बढ़ाने में जुट गया है। चीनी सेना ने, जिसे वहां 'जनमुक्ति सेना (पीपल्स लिबरेशन आर्मी)' कहा जाता है, हाल ही में एक अध्ययन के आधार पर कुछ चौंकाने वाली बातें कही हैं। उसका कहना है कि देश, उच्च शक्तिमान लेज़र-किरणपुंज (Laser Beam) वाले उपकरणों से लैस पनडुब्बियों का उपयोग करके, अंतरिक्ष में 'स्टारलिंक नेटवर्क' जैसे उपग्रहों को 'पंगु', अर्थात बेकार बनाने में सक्षम होने के रास्ते पर है। यह नवाचार चीन को सीधे प्रतिशोध के लिए –अपनी सेनाओं को उजागर किए बिना– अपने हितों की रक्षा करने का एक सशक्त विकल्प प्रदान करेगा।
 
चीनी सेना के इस अध्ययन में ऐसी पनडुब्बी का वर्णन किया गया है, जिसमें उपग्रहों को निष्क्रिय बना सकने में सक्षम शक्तिशाली लेज़र-बीम उत्पन्न करने की व्यवस्था होगी। अंतरिक्ष में घूम रहे उपग्रहों पर निशाना साधने के लिए अपना ऑप्टोइलेक्ट्रॉनिक मस्तूल तैनात करते समय पनडुब्बी पानी के नीचे ही छिपी रह सकती है।
 
अदृश्य रहकर हमला : किसी लेज़र-गन या तोप जैसा यह हथियार, अदृश्य रह कर शत्रु पर हमला करना और समुद्र या ज़मीन पर से हवा में मार करने वाली इस समय की मिसाइलों से जुड़े जोखिमों से बचना, चीनी सेना के लिए संभव बना देगा। मिसाइलों के साथ जोखिम यह रहता है कि उन्हें दागने पर उनके द्वारा उत्पन्न आग और धुएं का किसी लंबी पूंछ जैसा दिखता गुबार, उनकी पहचान और दागने का स्थान बता देता है।
 
उपग्रह-विरोधी मिशनों की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है, खुद अदृश्य रहना। मिसाइल हमले हालांकि आम हैं, पर वे ऐसे दृश्यमान निशान छोड़ जाते हैं जो मिसाइल दागने वाले की अवस्थिति को प्रकट कर देते हैं। दूसरी ओर, लेज़र किरणों वाली 'बीम' के प्रसंग में निशाना साधने वाला छिपा रहता है। स्टारलिंक उपग्रहों की संख्या और अतिरेकता, उन्हें निष्क्रिय बनाने या नष्ट करने की पारंपरिक विधियों को अक्षम बना देती है। पारंपरिक विधियों से भले ही कई उपग्रह नष्ट हो जाएं, पर कई दूसरे उनकी जगह ले लेते हैं, जिससे मनचाहा काम लंबा खिंचता है और दुष्कर हो जाता है। 
 
लेजर हमले की प्रक्रिया : चीनी सेना की अध्ययन टीम द्वारा प्रकाशित दस्तावेज़ में लेज़र हमले की प्रक्रिया का संक्षिप्त वर्णन भी हैः एक या अधिक पनडुब्बियों को एक विशिष्ट समुद्री क्षेत्र में तैनात किया जाएगा। वहां उन्हें इंतजार करना होगा कि अंतरिक्ष में घूम रहे जिन उपग्रहों पर निशान साधना है, वे उनके निशाने के दायरे में आएं। सफलता की अधिकतम संभावना के लिए लेजर उपकरण को सबसे उचित समय पर सक्रिय किया जाए। उपकरण से निकली लेजर-बीम केवल तभी निशाने पर लिए गए उपग्रह को बेकार या ध्वस्त करेगी।
 
समुद्र के भीतर किसी पनडुब्बी में बैठ कर, लेजर-बीम द्वारा अंतरिक्ष में उपग्रहों पर निशाना साधना और उन्हें नष्ट कर सकना दिखाता है कि चीन ने भविष्य की अंतरिक्ष युद्ध रणनीति अभी से तैयार कर ली है। इस नई चीनी क्षमता का अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा नियमों एवं तैयारियों पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता हैः विशेषकर अंतरिक्ष में शक्ति-संतुलन बनाए रखना दूभर हो जाएगा। संचार और टोही उपग्रह, सैन्य अभियानों के लिए बहुत तेज़ी से महत्वपूर्ण होते जाएंगे। स्वयं अदृश्य रहते हुए अंतरीक्ष में घूम रहे उपग्रहों को नष्ट या निष्क्रिय कर देने की क्षमता जमीनी लड़ाइयों की गतिशीलता का रूप-रंग भी बदल सकती है।
 
चीन के पास सबसे अधिक युद्धपोत : चीनी जलसेना के पास अभी से दुनिया में सबसे अधिक युद्धपोत हैं – 370 से अधिक, यानी अमेरिका से भी अधिक। चीन ने परमाणु पनडुब्बियों की एक नई पीढ़ी का निर्माण करना भी शुरू कर दिया है। अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागॉन की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, उस समय चीन के पास 6 ऐसी परमाणु पनडुब्बियां थीं, जो बैलिस्टिक मिसाइलों से लैस थीं। 6 और परमाणु पनडुब्बियां सामान्य समुद्री युद्धों के लिए थीं और 48 पनडुब्बियां डीज़ल इंजन वाली थीँ। अमेरिका का अनुमान है कि चीनी पनडुब्बियों की कुल संख्या 2025 तक 65 और 2035 तक 80 हो जाएगी। 
 
कहने की आवश्यकता नहीं कि चीन जिस तेज़ी हर तरह के अस्त्र-शस्त्र जुटा रहा है, जल, थल और आकाश ही नहीं, अंतरिक्ष में भी युद्ध लड़ने के लिए अभी से कमर कस रहा है – यह सब पूरी दुनिया के लिए शुभ संकेत नहीं है। चीन का इतिहास युद्ध, दमन और विस्तारवाद की घटनाओं से भरा पड़ा है। उसका कोई ऐसा पड़ोसी नहीं है, जिसकी कुछ न कुछ ज़मीन पर उसने कभी दावा न किया हो और देर-सवेर हड़प न लिया हो। उइगुरों के देश शिन्जियांग और तब्बतियों के देश तिब्बत को तो चीन साबूत डकार गया, दुनिया उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकी। इस समय वह ताइवान को निगलने के लिए बुरी तरह मचल रहा है। इसके बावजूद भारत में और अन्य देशों में भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो चीन का रात-दिन गुणगान करते थकते नहीं। 
 

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