अंतरिक्ष में तैनात करने के लिए रूसतैयार कर रहा परमाणु अस्त्र
अमेरिकी संचार, निगरानी और सैन्य उपग्रहों को नष्ट कर सकते हैं ये अस्त्र
क्या बढ़ता जा रहा है अंतरिक्ष युद्ध का खतरा?
Nuclear Weapons in Space : अमेरिका द्वारा जापान के दो शहरों, हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए जाने की अपूर्व विभीषिका को आगामी 2025 में 80 वर्ष हो जाएंगे। मानो 80 वर्ष पूर्व का ज़मीनी नाश-विनाश पर्याप्त न रहा हो, अब बात हो रही है अंतरिक्ष में भी परमाणु अस्त्र तैनात करने की।
अमेरिकी टेलीविज़न चैनल ABC और दैनिक 'न्यूयॉर्क टाइम्स' ने इन्हीं दिनों ख़बर दी कि राष्ट्रपति भवन 'व्हाइट हाउस' ने कांग्रेस, यानी अमेरिकी संसद के दोनों सदनों– सेनेट और प्रतिनिध सभा– को उस संभावित परमाणु ख़तरे से अवगत कराया है, जो अंतरिक्ष में रूसी तैयारियों से पैदा हो सकता है।
अमेरिकी सांसदों को बताया गया कि रूस, अंतरिक्ष में तैनात करने के लिए ऐसे परमाणु अस्त्र विकसित कर रहा है, जो अंतरिक्ष में अमेरिकी संचार, निगरानी और सैन्य उपग्रहों को नष्ट कर सकते हैं।
सैटेलाइट किलर : समझा जाता है कि यह रूसी ''सैटेलाइट किलर'' (उपग्रह मारक) अभी अंतरिक्ष में नहीं पहुंचा है। न्यूयॉर्क टाइम्स का कहना है कि यदि वह वहां होता, तो इस समय अमेरिका के पास ऐसा कोई उपाय नहीं है कि वह ऐसे किसी हमले से अपने उपग्रहों को बचा सके। जर्मनी के म्यूनिक शहर में 6 से 8 फ़रवरी तक चले इस बार के 60वें वार्षिक अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा सम्मेलन में भी पश्चिमी देशों के नेताओं और रक्षा विशेषज्ञों के बीच रूस की इस कथित तैयारी को लेकर चर्चा और चिंता देखने में आई।
किंतु, पक्के तौर अभी कोई नहीं जानता कि रूस ने अंतरिक्ष में तैनात करने लायक वैसा कोई परमाणु अस्त्र बना भी लिया है या नहीं, जिसकी बात हो रही है। यदि रूस ने ऐसा कर लिया है, तो इसके नाटकीय परिणाम होंगे। परमाणु महाशक्तियों के बीच एक बार फिर, एक से बढ़ कर एक नए परमाणु अस्त्र बनाने और इस बार उन्हें अंतरिक्ष में तैनात करने की होड़ लग जाएगी।
तब संयुक्त राषट्र संघ के तत्वावधान में हुई अंतरिक्ष के उपयोग संबंधी 1967 की उस अंतरराष्ट्रीय संधि की भी अर्थी उठ जाएगी, जिसे अब तक 114 देश अपना चुके हैं। इस संधि में कहा गया है 'ऐसी कोई भी चीज़, जिसमें परमाणु अस्त्र या व्यापक संहार के अस्त्र हों, पृथ्वी की परिक्रमा कक्षा में पहुंचाना या अंतरिक्षीय पिंडों पर तैनात करना निषिद्ध है।'
विनाशकारी परिणामः म्यूनिक सुरक्षा सम्मेलन के दौरान कई विशेषज्ञों ने कहा कि पृथ्वी की परिक्रमा कक्षा में परमाणु हथियारों के होने से पृथ्वी-वासियों के लिए अप्रत्याशित विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं। इस सम्मेलन से कुछ समय पहले, अंतरिक्ष में शस्त्रीकरण की होड़ के अगले चरण के बारे में अमेरिकी गुप्तचर सेवाओं की एक चेतावनी रिपोर्ट भी सामने आई थी। उसमें अटकल लगाई गई है कि रूस ऐसे परमाणु हथियार बनाने पर काम कर रहा है, जो अंतरिक्ष में तैनात उपग्रहों को अपना निशाना बना सकते हैं।
यह स्पष्ट नहीं है कि रूस की योजना में अंतरिक्ष में परमाणु बम विस्फोट करना भी शामिल है या नहीं। पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे कृत्रिम उपग्रह (सैटेलाइट) जिस ऊंचाई पर अंतरिक्ष में काम करते हैं, उस ऊंचाई पर वायुमंडल इतना विरल और उसका दबाव इतना कम होता है कि किसी परमाणु बम के विस्फोट से वहां हवा की प्रघाती दबाव तरंगें उत्पन्न नहीं होंगी।
इलेक्ट्रॉनिक उपकरण ठप हो जाएंगेः उत्पन्न होगा बहुत ही ख़तरनाक रेडियोधर्मी गामा विकिरण और एक ऐसा विद्युत चुम्बकीय स्पंद (इलेक्ट्रो मैग्नेटिक पल्स), जो दुनिया के सारे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को ठप कर सकता है। वे बिल्कुल नहीं या ठीक से काम नहीं करेंगे। उदाहरण के लिए, हमारे टेलीफोन, कंप्यूटर, नेविगेशन सिस्टम, टेलीविजन प्रसारण, बिजली आपूर्ति तंत्र इत्यादी अस्तव्यस्त हो जाएंगे।
यह डर भी बना रहेगा कि परमाणु विस्फोट से पैदा हुए उच्च-ऊर्जावान कण लंबे समय तक पृथ्वी की परिक्रमा करते रहेंगे। रूस ने, हालांकि अंतरिक्ष में उसकी इन कथित नई परमाणु क्षमताओं के बारे में अमेरिकी चेतावनी को एक दुर्भावनापूर्ण झूठ बता कर ठुकरा दिया है। किंतु समस्या यह है कि रूसी राष्ट्रपति, यूक्रेन पर हमले जैसे अपने कई कार्यों से दुनिया में अपनी विश्वसनीयता खो बैठे हैं।
अमेरिका भी बेदाग़ नहीं : दूसरी ओर, जो लोग अंतरिक्ष में रूसी परमाणु अस्त्रों की कथित तैनाती को लेकर अमेरिकी आशंकाओं से सहमत नहीं हैं, उनका तर्क है कि इस समय भी अंतरिक्ष में दशकों से ऐसे अनेक उपग्रह मौजूद हैं, जिनमें बिजली प्रदान करने के लिए परमाणु रिएक्टर काम कर रहे हैं। अमेरिका द्वारा ही 1977 में प्रक्षेपित 'वोयजर-1' मानव निर्मित पहली ऐसी वस्तु है, जो हमारी आकाशगंगा में पृथ्वी से सबसे दूर पहुंच गई है। वोयजर-1 अपने परमाणु रिएक्टर से मिल रही बिजली के बल पर ही आज भी डेटा भेजता रहता है।
इसी तरह, शीत युद्ध वाले दिनों में अमेरिका ने 1962 में 'ऑपरेशन डोमिनिक' के अंतर्गत कुल मिलाकर 10 लाख टन TNT विस्फटक शक्ति के बराबर 31 परमाणु बमों का परीक्षण किया था। अमेरिकी रॉकेटों ने प्रशांत महासागर के तीन द्वीपों के ऊपर 30 से 80 किलोमीटर की ऊंचाई पर से ये बम गिराए थे।
रूसी पराकाष्ठाः अमेरिकी परीक्षण से पहले, 1961 में उस समय के सोवियत संघ में भी, नोवाया ज़ेमल्या नाम के उसके एक निर्जन द्वीप के ऊपर, 5 करोड़ टन TNT विस्फटक शक्ति वाले हाइड्रोजन बम का हवाई जहाज़ से गिराकर परीक्षण हुआ था। उसके विस्फोट से धूल, धुंए और गैस का मशरूम जैसा बादल 67 किलोमीटर की ऊँचाई तक पहुंचा था। उसे एक हज़ार किलोमीटर दूर से भी देखा जा सकता था। विस्फोट के धमाके से सैकड़ों किलोमीटर दूर के फिनलैंड में घरों की खिड़कियों के शीशे तक टूट गए।
उस समय अंतरिक्ष में लगभग दो दर्जन उपग्रह ही थे, जिनमें से 8 नष्ट हो गए थे। आज लगभग 7,000 उपग्रह हैं। वे मुख्य रूप से अमेरिकी उद्यमी एलोन मस्क के 'स्टारलिंक' संचार उपग्रह हैं। तथ्य यह भी है कि जो कोई अंतरिक्ष में परमाणु अस्त्र प्रणाली स्थापित करना चाहता है और वहां परमाणु विस्फोट करता है, उसे पता होना चाहिए कि ऐसे विस्फोट उसकी अपनी अंतरिक्ष क्षमताओं को भी भारी नुकसान पहुंचाएंगे। उसके अपने उपग्रह भी नष्ट-भ्रष्ट होंगे।
युद्धक्षेत्र बन सकता है अंतरिक्ष : अंतरिक्ष में रूसी परमाणु हथियारों की कथित तैनाती को लेकर इस समय हो रही चर्चा एक उदाहरण है कि अब तक तो पृथ्वी पर ही जहां-तहां युद्ध हुआ करते थे, भविष्य में अंतरिक्ष भी युद्धक्षेत्र बन सकता है। पृथ्वी पर होने वाले युद्धों से अब तक अधिकतर उन्हीं देशों को हर प्रकार की क्षति होती थी, जो आपस में लड़ते थे।
हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए अमेरिकी परमाणु बमों से हुए संहार की मार जापान को ही झेलनी पड़ी थी। किंतु अंतरिक्ष में होने वाले भावी परमाणु युद्धों की मार तो लगभग पूरी दुनिया को एकसाथ सहनी पड़ेगी। पृथ्वी पर तो देशों की अपनी-अपनी सीमाएं हैं, पर अंतरिक्ष में कोई सीमाएं नहीं हैं।
अंतरिक्ष में किसी परमाणु बम के विस्फोट से उपजी रेडियो धर्मिता, विद्युतचुंबकीय व्यवधान, जलवायु परिवर्तन और वायुप्रदूष पूरे भूमंडल को अपनी चपेटे में लेगा। अंतरिक्ष में स्थापित अस्त्र यदि वहां घूम रहे दूरसंचार, नेविगेशन (मार्गदर्शन) या अन्य कार्यों के उपग्रहों को ही निशाना बनाते हैं, तब भी पृथ्वी पर की वे गतिविधियां ठप पड़ जाएंगी, जो इन उपग्रहों पर निर्भर हैं। इसलिए भी दुनिया के सभी देशों को ऐसे प्रयासों का विरोध करना होगा, जिनका उद्देश्य अंतरिक्ष का शस्त्रीकरण है।