उन्होंने कहा कि सिर्फ जलवायु परिवर्तन से निबटने भर से पर्यावरण की समस्या खत्म नहीं होती। उन्होंने इस संदर्भ में भारत का उदाहरण पेश करते हुए कहा कि वहां कोयला संयंत्रों के प्रदूषण से हर साल 70 हजार लोगों की असमय मृत्य हो जाती है क्योंकि पर्यावरण की समस्या आर्थिक और सामाजिक कारकों से भी गहरे जुड़ी हुई है, इसलिए पर्यावरण से जुड़ी समस्या का हल निकालने के प्रयासों में आर्थिक और सामाजिक समस्याओं के निराकरण के उपाय भी समाहित होने चाहिए।
सुश्री लेगार्ड ने कहा कि आईएमएफ कोई पर्यावरण संस्था नहीं है, लेकिन इसके बावजूद 'हम प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध देाहन की वजह से होने वाली अथाह मानवीय पीड़ा को नजरअंदाज नहीं कर सकते। प्राकृतिक संसाधनों का अतार्किक इस्तेमाल पूरी मानव सभ्यता को विनाश के रास्ते पर ले जा रहा है। धरती का तापमान बहुत तेजी से बढ़ रहा है जिसके परिणाम घातक हो सकते हैं। दुनिया के कई मुल्कों में गरीबों और अमीरों के बीच का अंतर गहराता जा रहा है, जिससे सामाजिक तनाव की अजीब स्थिति पैदा हो रही है।
उन्होंने विश्व समुदाय से रियो में हुए पृथ्वी सम्मेलन की घोषणाओं का अनुसरण करने का अनुरोध करते हुए कहा कि रियो घोषणा में धरती को बचाने के लिए जिन प्रयासों के प्रति सबने मिलकर प्रतिबद्धता जताई थी, उस पर अमल करने का समय आ गया है। अब देरी करना ठीक नहीं होगा। (वार्ता)