मुस्लिम छात्र जर्मन स्कूलों में चाहते हैं शरिया नियम

राम यादव

शनिवार, 20 जनवरी 2024 (14:57 IST)
Demand for Sharia in German Schools : जर्मनी के स्कूलों में इस्लामी धार्मिक नियमों के पालन की मांग कोई नई बात नहीं है। किंतु इस समय चल रहा हमास-इसराइली युद्ध मानो आग में घी डालने का काम कर रहा है। अतीत में तो अधिकतर मुस्लिम माता-पिता ही इस्लामी नियमों के पालन की मांग किया करते थे, अब उनके स्कूली बच्चे भी यही मांग करने लगे हैं।
 
जनसंख्या की दृष्टि से 1 करोड़ 80 लाख की जनसंख्या वाला नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया (NRW) जर्मनी का सबसे बड़ा राज्य है। देश की क़रीब एक-चौथाई जनता इसी राज्य में रहती है। स्वाभाविक है सबसे अधिक इस्लामधर्मी भी इसी राज्य में मिलते हैं। इस राज्य की राजधानी ड्युसलडोर्फ़ का एक पड़ोसी शहर है नोएस। जनसंख्या है 1.50 लाख से कुछ अधिक। हाल ही में ज्ञात हुआ कि नोएस के एक हाईस्कूल के मुस्लिम छात्र अपने स्कूल में 'शरिया' के कठोर इस्लामी नियम लागू करने की मांग कर रहे हैं।
 
छात्र क्या चाहते हैं?: इन छात्रों का कहना है कि इस्लामी नियमों के अनुसार लड़कों और लड़कियों को कक्षा में अलग-अलग बिठाया जाए। स्कूल में छात्राओं और शिक्षिकाओं सहित सभी महिलाओं को शरिया के नियमों के अनुसार अपने शरीर को पूरी तरह ढंकने के लिए कहा जाए। तैराकी सिखाने वाले शिक्षकों पर भी लिंग भेद लागू होना चाहिए। मुस्लिम छात्रों को शुक्रवार की नमाज पढ़नी होती है इसलिए उन्हें बाक़ी छात्रों से पहले स्कूल से छुट्टी दी जाए ताकि वे सही समय पर नमाज़ अदा कर सकें।
 
स्कूल ने उनके सामने प्रस्ताव रखा कि उन्हें आपसी 'मेलजोल और सहिष्णुता' के लिए अलग से जगह दी जा सकती है, पर नमाज़ के लिए जगह या समय से पहले छुट्टी नहीं दी जा सकती। स्कूल की प्राथमिकता छात्रों की पढ़ाई है, न कि उनका धर्म।
 
सहपाठियों पर दबाव डाला : बताया जाता है कि अपने स्कूल में शरिया लागू करवाने का यह विचार सबसे पहले नोएस के इस हाईस्कूल के 4 छात्रों के मन में आया, लेकिन केवल 4 छात्रों के कहने से ऐसा हो नहीं सकता था। अत: उन्होंने अपने उन सहपाठियों पर भी दबाव डालकर इस मांग को मनवाने के लिए राज़ी किया, जो उनकी नज़र में 'अच्छे मुसलमान नहीं थे।' चारों यह भी कहा करते थे कि उन्हें 'लोकतंत्र स्वीकार नहीं है।'
 
ये बातें एक पुलिस रिपोर्ट में भी कही गई हैं। पुलिस की रिपोर्ट के आधार पर ही कुछ समाचार-पत्रों ने भी इस घटना को लेकर टीका-टिप्पणियां की है। पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल मार्च और दिसंबर में कई घटनाएं हुईं। इसके बाद स्कूल ने पुलिस से संपर्क किया। लेकिन पुलिस को कम से कम मार्च की घटनाओं में कोई 'आपराधिक प्रासंगिकता' नहीं मिली। सरकारी अभियोजक का कार्यालय अभी भी जांच कर रहा है कि गत दिसंबर में क्या हुआ था?
 
पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार चारों छात्रों के माता-पिता से भी पूछताछ की गई: 'ऐसी किसी बात का सबूत नहीं मिला, जो राज्य की सुरक्षा लिए प्रासंगिक हो।' जांचकर्ताओं ने यह जानकारी नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया राज्य के आपराधिक पुलिस कार्यालय को भी इस अनुरोध के साथ भेजी है कि इसे राज्य के गृह मंत्रालय और देश की आंतरिक गुप्तचर सेवा 'संविधान रक्षा कार्यालय' को भी भेजा जाए।
 
गृहमंत्री ने मामले को गंभीर बताया : इस बीच नॉर्थ राइन-वेस्टफेलिया राज्य के सभी संबंधित अधिकारियों को नोएस के स्कूल में हुई घटनाओं के बारे में सूचित कर दिया गया है। इस राज्य के गृहमंत्री ने मामले को गंभीर बताते हुए राज्य के सभी अभिभावकों, शिक्षक-शिक्षिकाओं और युवजनों के बीच काम करने वालों से इस्लामी कट्टरपंथ के खिलाफ सतर्क रहने का आह्वान किया है।
 
राज्य की शिक्षामंत्री डोरोथे फ़ेलर का कहना था कि 'उग्रवाद और अतिवाद के लिए हमारे स्कूलों में कोई जगह नहीं है। हमारे स्कूलों में किसी को भी किसी ख़ास तरीके से अपने धर्म के पालन के लिए विवश नहीं किया जा सकता। इस प्रसंग में हमें एक स्पष्ट सीमारेखा खींचनी होगी और युवजनों को अतिवाद से बचाना होगा।'
 
मीडिया से छिपाया जाता है : ऐसा लगता है कि नोएस शहर के स्कूल जैसे मामले जर्मनी में केवल वहीं नहीं, बल्कि दूसरी जगहों पर भी अक्सर होते रहते हैं, पर उन्हें मीडिया से छिपाया जाता है। नॉर्थ राइन-वेस्टफेलिया की राज्य सरकार ने तो स्कूलों में इस्लामी नियमों की मांग करने वाले छात्रों को समझा-बुझाकर सही रास्ते पर लाने का एक विशेष कार्यक्रम भी बना रखा है। उसे 'वेगवाइज़र' (मार्गदर्शन) नाम दिया गया है। नोएस शहर के इस स्कूल ने अपने शिक्षक-शिक्षिकाओं को इस मार्गदर्शन कार्यक्रम से अवगत कराने के लिए उससे जुड़े एक विशेषज्ञ की सेवाएं भी लीं, पर अब तक के सभी प्रयासों का कोई वांछित परिणाम निकलता नहीं दिख रहा है।
 
ऐसा भी नहीं है कि कुछ थोड़े-से मुस्लिम छात्रों ने केवल नोएस के एक स्कूल में ही इस्लामी शरिया के नियमों को लागू करने की मांग की है। ऐसे मामले जर्मनी के अन्य राज्यों और शहरों में भी निश्चित रूप से होते होंगे, पर वे मीडिया तक नहीं पहुंच पाते, क्योंकि इससे स्कूल की बदनामी होती है या ऐसी छवि बन सकती है कि जर्मनी के स्कूल इस्लाम विरोधी हैं। उदाहरण के लिए नोएस जैसे ही एक दूसरे शहर हेरफ़ोर्ड के नोएस जैसे ही एक हाईस्कूल की शिक्षिका बिर्गित एबेल ने जर्मन दैनिक 'बिल्ड' को बताया कि उनके स्कूल के छात्र पहले कभी की अपेक्षा अब कहीं अधिक खुलकर उग्र इस्लामवाद के नारे लगाते हैं।
 
उग्र इस्लाम के प्रति छात्रों का खुला समर्थन : हेरफ़ोर्ड भी जर्मनी के नॉर्थ राइन-वेस्टफेलिया राज्य का एक शहर है। बिर्गित एबेल वहां के जिस हाईस्कूल में जर्मन भाषा और इतिहास पढ़ाती हैं, उसके बारे में दैनिक 'बिल्ड' से उन्होंने कहा कि 'उग्र इस्लाम के प्रति छात्रों का जैसा खुला समर्थन मैं आज देखती हूं, वैसा पहले कभी नहीं पाया था।' उनका कहना है कि हमास द्वारा इसराइल पर आतंकवादी हमले के बाद से उनके स्कूल में 'इस्लामी जगत के प्रति ऊंची आवाज़ में खुला समर्थन और अधिक कर्कश हो गया है। पहले ऐसा नहीं था।'
 
उनके स्कूल में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं की संख्या 800 है। बिर्गित एबेल ने 'बिल्ड' से कहा कि 'अधिकतर छात्रों को मालूम तो कुछ है नहीं, पर अपनी एक पक्की राय उन्होंने बना ली है। स्कूल के अहाते में वे 'हमास-हमास' चिल्लाते या तख्तियों पर 'फ्री पैलेस्टाइन' लिखकर घूमते-फिरते दिखते हैं।' बिर्गित एबेल जर्मनी की पर्यावरणवादी ग्रीन पार्टी और 'जर्मन कुर्द समुदाय' नाम की संस्था की सदस्य हैं इसलिए मुस्लिम छात्र उनका भी खुलकर अनादर करते हैं। उन्हें 'यहूदी हूर' जैसी गालियां सुनाते हैं।
 
शिक्षिकाओं के साथ छेड़खानी : 'बिल्ड' के साथ बातचीत में बिर्गित एबेल ने यह भी बताया कि वे अन्य स्कूलों की क़रीब 20 ऐसी महिला शिक्षिकाओं को भी निजी तौर पर जानती हैं जिनके साथ विदेशी पृष्ठभूमि वाले ऊंची कक्षाओं के छात्र भद्दी छेड़खानी करने और गंदी फ़ब्तियां कसने में रत्तीभर भी संकोच नहीं करते।
 
8.25 करोड़ की जनसंख्या वाले जर्मनी में मुस्लिम जनसंख्या 50 लाख से कुछ अधिक है। वे ही सबसे बड़ा विदेशी समुदाय हैं। लगभग सब द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त होने के बाद 1950 वाले दशक से जर्मनी में आना शुरू हुए। पहले काम-धंधे के लिए आते थे और अब मुख्यत: शरणार्थी बनकर आते हैं एवं देर-सवेर हत्या और बलात्कार जैसे गंभीर अपराध आदि करने से भी संकोच नहीं करते।
 
दिसंबर 2023 के अंत में जब जर्मन जनता क्रिसमस और नववर्ष मनाने की तैयारियों में व्यस्त थी, तब क़रीब 500 पुलिसकर्मी कोलोन शहर के जगप्रसिद्ध कैथीड्रील की सुरक्षा के लिए रात-दिन पहरे दे रहे थे। पता चला था कि इस्लामी आतंकवादी इस विशाल चर्च को कार से टकराकर उसमें रखे बमों से उड़ा देना चाहते हैं। 5 संदिग्धों को गिरफ्तार किया गया था, 1 अब भी गिरफ्तार है।
 
जर्मनी की घोर दक्षिणपंथी पार्टी AfD (जर्मनी के लिए विकल्प) की इन्हीं दिनों हुई एक गोपनीय बैठक में कहा गया कि यदि वह सत्ता में आई तो शरणार्थियों सहित उन सभी विदेशियों को देश से खदेड़ बाहर करेगी जिन्हें जर्मनी की नागरिकता भी मिल चुकी होगी। AfD जनमत सर्वेक्षणों में 18 प्रतिशत जनसमर्थन के साथ इस समय जर्मनी की तीसरी सबसे लोकप्रिय पार्टी है।
 
इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि जर्मनी बारूद के किस ढेर पर बैठा है?
 
(इस लेख में व्यक्त विचार/ विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/ विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है।)

वेबदुनिया पर पढ़ें

सम्बंधित जानकारी