पर्यावरणीय रक्षा एजेंसी (ईपीए) के प्रशासक स्कॉट प्रुएट ने व्हाइट हाउस में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि जैसा कि आप जानते हैं कि चीन को वर्ष 2030 तक इस समझौते के कार्यान्वयन के लिए कदम नहीं उठाने हैं। भारत को जब तक 2,500 अरब डॉलर की मदद नहीं मिल जाती, तब तक उसका कोई दायित्व नहीं है।
प्रुएट ने कहा कि जब रूस अपने लक्ष्य तय करता हैं तो वे अपनी बेसलाइन के तौर पर 1990 तय करते हैं, जो उन्हें और अधिक कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन जारी रखने की अनुमति देता है। पेरिस समझौता चीन और भारत जैसे देशों की जवाबदेही तय नहीं करता? इस समझौते पर 150 से ज्यादा देशों ने अपनी सहमति जताई है। प्रुएट ने कहा कि ट्रंप ने पेरिस समझौते से हटकर काफी साहसी निर्णय लिया है।
उन्होंने कहा कि ट्रंप ने पर्यावरणीय समझौतों और अंतरराष्ट्रीय चर्चाओं के सम्मान से पहले अमेरिका के हितों को तरजीह दी है। पेरिस समझौते से अलग होने का यह मतलब नहीं है कि इसे छोड़ दिया है। राष्ट्रपति ने शुक्रवार को कहा था कि पेरिस समझौता इस देश के लिए खराब समझौता है। इसका यह मतलब नहीं है कि हम चर्चा जारी नहीं रख रहे हैं। (भाषा)