दिमाग में छिपकर अटैक कर सकता है वायरस, 50 प्रतिशत तक रहता है ‘मौत का खतरा’
रविवार, 13 फ़रवरी 2022 (18:34 IST)
HIV का नया वेरिएंट सामने आने के बाद अब इबोला वायरस पर भी नई जानकारी सामने आई है। वैज्ञानिकों का कहना है अब तक इबोला को जितना खतरनाक समझा गया है, यह उससे भी ज्यादा खतरनाक हो सकता है।
यह वायरस इंसान के दिमाग में छिपकर रह सकता है और सालों बाद अपना असर दिखा सकता है। यानी इसके संक्रमण के सालों बाद भी इंसान की मौत हो सकती है।
यह दावा US आर्मी ने अपनी हालिया रिसर्च में किया है। वैज्ञानिकों का कहना है, अगर संक्रमण होने के बाद सबकुछ ठीक रहता है तो भी इबोला वायरस एक साल बाद अपना असर दिखा सकता है।
शोधकर्ताओं का कहना है, यह वायरस सालों तक मस्तिष्क में रहकर एक नए संक्रमण की वजह बन सकता है। इसलिए अलर्ट रहने की जरूरत है।
कैसे रिसर्च में आया सामने?
इबोला वायरस से रिकवर होने वाले मरीजों में जल्दी-जल्दी दोबारा इसका संक्रमण क्यों होता है, इसे समझने के लिए शोधकर्ताओं ने रिसर्च की।
इस वायरस का संक्रमण होने के बाद 50 फीसदी मरीजों की मौत हो जाती है। रिपोर्ट के मुताबिक, मौत का आंकड़ा 50 फीसदी से ज्यादा भी हो सकता है। यह सबसे खतरनाक वायरस में शामिल है। इसके ज्यादातर मामले सब-सहारा अफ्रीका में देखे जाते हैं।
इस रिसर्च की शुरुआत कैसे हुई, इस पर शोधकर्ताओं का कहना है, 2021 में अफ्रीका के गिनी में इबोला की महामारी फैली. इसकी शुरुआत एक ऐसे इंसान से हुई जिसके शरीर में इबोला वायरस 5 साल तक बना रहा था।
अफ्रीका के 50 फीसदी हिस्से में इस वायरस ने तबाही मचाई। वैज्ञानिकों ने इसे समझने की कोशिश की कि कैसे कोई वायरस शरीर में लम्बे समय तक बना रहता है और एक फिर संक्रमण की वजह बनता है।
रिसर्च को समझने के लिए पहले ही इबोला वायरस से संक्रमित हुए बंदरों के दिमाग की जांच की गई। रिसर्च में सामने आया कि दिमाग के किस हिस्से में वायरस छिप सकता है।
शोधकर्ता डॉ. केविन जेंग का कहना है, हमने पहली ऐसी स्टडी की है जो बताती है कि इबोला दिमाग में कहां छिप सकता है। इबोला के संक्रमण से रिकवर होने वाले हर 5 में से 1 बंदर में वायरस के कुछ अंश मिले हैं। यह ब्रेन के वेंट्रीकुलर सिस्टम में छिपा रह सकता है।
शोधकर्ता कहते हैं, रिसर्च के दौरान देखा गया कि दो बंदर ऐसे थे जिनकी इबोला का संक्रमण होने के लम्बे समय के बाद मौत हुई। मरने वाले बंदरों के दिमाग में इबोला के अंश मिले थे। इस तरह के री-इंफेक्शन के मामले खतरनाक साबित हो सकते हैं।