यूरोप में महंगाई की मार, बिजली और गैस संकट के डर से भरी गर्मी में 'ठिठुरे' यूरोपवासी

भीषण गर्मी, पानी की तंगी, मंहगाई और बिजली की कटौती से हर भारतीय भलीभांति परिचित है। यूरोपीय हमारी इन समस्याओं को हमारे पिछड़ेपन की देन बताया करते थे। यूरोपीय संघ के देशों का इन समस्याओं से दशकों से पाला नहीं पड़ा था। इस साल पड़ गया है। लोग यह सोचकर गर्मियों में ही ठिठुरने लगे हैं कि आगामी सर्दियां कैसी बीतेंगी!
 
पिछली सर्दियों में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन पर हमला क्या बोल दिया, 27 देशों वाले यूरोपीय संघ की नींद हराम कर दी है। रूस से वह प्रकृतिक गैस आनी लगभग बंद हो गई है, जिस से पूर्वी-पश्चिमी यूरोप के अधिकांश घरों में रसोइयां जलती हैं। सर्दियों में घर गर्म रहते हैं। अनेक बिजलीघरों के जनरेटर चलते हैं और धातु उद्योग के कारखानों में इस्पात ढलता है। रासायनिक खादों के उत्पादन में भी प्राकृतिक गैस लगती है।
 
कुछ ही महीनों में खाने-पीने की चीज़ों के ही नहीं, हर तरह की चीज़ों के चढ़ते भाव, देखते ही देखते, 10 प्रतिशत की सीमा को पार कर गए। मंहगाई का इतना त्वरित और व्यापक हमला यूरोप वालों ने 1970 वाले दशक के वैश्विक तेल-संकट के बाद से शायद नहीं देखा था। यूरोपीय देशों की जनता सबसे अधिक परेशान इस बात से है कि डीज़ल-पेट्रोल तो मंहगा हुआ ही, बिजली और गैस की दरें दो से तीन गुनी बढ़ गईं! कोई भारी जन-असंतोष फैलने से पहले ही सरकारों को निम्न आयवर्ग के लोगों के लिए नए-नए राहत पैकेज रचने पड़ रहे हैं।
 
यूरोपीय संघ की ऊर्जा आपात योजना : यूरोपीय संघ के ब्रसेल्स स्थित मुख्यालय में, 26 जून को, संघ के सदस्य देशों के प्रतिनिधियों की एक संकटकालीन बैठक हुई। उसमें एक आपात-योजना बनी, जिसमें कहा गया है कि  सभी 27 सदस्य देशों को, 1 अगस्त 2022 से 31 मार्च 2023 के बीच, गैस और बिजली के रूप में ऊर्जा की खपत को 15 प्रतिशत घटाना होगा। इस आदेश का पालन अभी तो स्वैच्छिक है, लेकिन इसे किसी भी समय बाध्यकारी भी बनाया जा सकता है। गैस की खपत में 15 प्रतिशत कमी का अर्थ है, कुल मिलाकर 45 अरब घनमीटर प्राकृतिक गैस की बचत, ताकि आगामी सर्दियों को जैसे-तैसे झेला जा सके। 
 
यदि ऊर्जा-संकट और अधिक विकराल हुआ, तो पूरे यूरोपीय संघ के लिए ख़तरे का अलार्म बजेगा। तब हर देश के नाम ऊर्जा की बचत के ऐसे ठोस लक्ष्य निर्धारित किए जाएंगे, जिनका पालन करना अनिवार्य होगा। साइप्रस, माल्टा और आयरलैंड जैसे केवल कुछेक ऐसे देश गैस की बचत लिए बाध्य नहीं किए जाएंगे, जिनकी संघ के किसी दूसरे सदस्य देश के साथ साझी गैस पाइपलाइन नहीं है।
 
यूरोपीय संघ की सरकार के सामान उसके कार्यकारी आयोग की अध्यक्ष, जर्मनी की उर्ज़ुला फ़ॉन देयर लाइयेन ने इस योजना की सराहना करते हुए कहा, 'रूस यदि गैस की आपूर्ति पूरी तरह बंद कर दे, तब भी आगामी सर्दियों से हम इस प्रकार निपट लेंगे।'  यूरोपीय संघ वाले देशों के गैस-भंडार इस समय केवल 65 प्रतिशत तक भरे हुए हैं। लक्ष्य है नवंबर आने तक 80 प्रतिशत तक भरा होना। यूरोप में सर्दियां बहुत लंबी, कड़ी और बर्फीली होती हैं। चलती भी हैं 7-8 महीनों तक।  
 
अधिकतम तापमान 19 डिग्री सेल्सियस : यूरोपीय संघ की इस आपात योजना में यह भी कहा गया है कि बिजली और गैस की बचत के लिए, पतझड़ शुरू होने के साथ हीं सार्वजनिक भवनों, कार्यालयों और कंपनियों आदि के भवनों को, पिछले वर्षों की अपेक्षा कम तापमान पर रखा जाए। इस योजना के एक प्रारूप में अधिकतम तापमान 19 डिग्री सेल्सियस रखने का सुझाव दिया गया था। जर्मनी, फ़िनलैंड और नीदरलैंड ने, यूक्रेन युद्ध शुरू होने के ठीक बाद ही, गैस की खफत घटानी शुरू कर दी थी और हर महीने औसतन 14-15 प्रतिशत गैस बचाई है। देखना है कि क्या वे और अन्य देश भी, अगली सर्दियों में भी बचत की यही लय बनाए रख पाएंगे। 
 
यूरोपीय संघ की ऊर्जा-बचत योजना 1 अगस्त से लागू हो गई है। सभी देश अपने-अपने यहां उसके परिपालन की तैयारियां करने लगे हैं। उदाहरण के लिए, स्पेन की सरकार ने आदेश दिया है कि सोमवार 11 अगस्त से वहां की दुकानें रात 10 बजे अपनी सजावटी खिड़कियों की बत्तियां बुझा दिया करें। लेकिन राजधानी मैड्रिड की क्षेत्रीय प्रशासनिक प्रमुख इसाबेल दीयाज़ अयूसो ने इसका विरोध करते हुए घोषित किया, 'मैड्रिड में बत्तियां नहीं बुझेंगी।' उन्होने तर्क दिया कि बत्तियां गुल होने पर लोग असुरक्षा महसूस करेंगे और पर्यटक भी भयभीत होंगे। अंधेरा होने से दुकानों में बिक्री घटेगी। समाज में ग़रीबी और उदासी बढ़ेगी।
 
रात में रहेंगी बत्तिया गुल : मैड्रिड की तुलना प्रायः न्यूयॉर्क से की जाती है। कहा जाता है कि न्यूयॉर्क की तरह माद्रिद भी कभी सोता नहीं। वह एक सुंदर, सुरक्षित शहर है, इसलिए रात में भी उसकी चमक-दमक बनी रहनी चाहिए। स्पेन का सरकारी आदेश यह भी कहता है कि रात 10 बजे के बाद किसी भी सार्वजनिक भवन को बाहर से जगमगाया नहीं जाए। सार्वजनिक उपयोग वाले सभी भवन, डिपार्टमेंट स्टोर, सिनेमा घर, होटल, रेलवे स्टेशनों की इमारतें और हवाई अड्डे सर्दियों में 19 डिग्री सेल्सियस से अधिक गरम, और गर्मियों में 27 डिग्री कम ठंडे नहीं होने चाहिए। वातानुकूलित (एयरकंडीशन्ड) दुकानों को, सितंबर बीतने से पहले, अपने आप बंद होने वाले दरवाज़े लगाने होने होंगे। ये सारे नियम 1 नवंबर 2023 तक बने रहेंगे।
 
जर्मनी में गैस-बिजली दो-तीन गुनी मंहगी : जनसंख्या, आर्थिक शक्ति और राजनीतिक रौबदाब की दृष्टि जर्मनी यूरोप का सबसे बड़ा देश है। जर्मनी की सरकार गैस की 15 नहीं, 20 प्रतिशत बचत चाहती है। जर्मनी में इसलिए भी बिजली और गैस अभी से लगभग डेढ़ से तीन गुनी मंहगी हो गई है, ताकि लोग हर स्तर पर बिजली और गैस की बचत करें। उदाहरण के लिए, मुझे बिजली के बिल के लिए अब तक हर महीने 556 यूरो (लगभग 45,600 रुपए) देने पड़ते थे। इस अगस्त महीने से 871 यूरो (लगभग 71,425 रुपए) देने पड़ेंगे, जो कि 56.65 प्रतिशत की वृद्धि के बराबर है। कुछ लोगों के मामले में यह वृद्धि और अधिक हो सकती है।
 
बिजली-गैस की बचत के उपायों को सोचना और लागू करना जर्मनी में राज्य सरकारों और स्थानीय नगर पालिकाओं की ज़िम्मेदारी है। राजधानी बर्लिन की उन लगभग सभी इमारतों को बाहर से जगमगाने वाली बत्तियां अभी से बंद हो गई हैं, जो शहर की पहचान के तौर पर प्रसिद्ध हैं। राष्ट्रपति भवन और संसद भवन को जगमगाने वाली बाहरी बत्तियों की ज्योति को बहुत घटा दिया गया है। लगभग 200 और ऐसे भवनों, स्मारकों व अन्य आकर्षणों की सूची बनाई जा रही है, जो रातों में जगमगाते नहीं दिखेंगें। हो सकता है कि दिसंबर में लगने वाले क्रिसमस के अनेक मेलों और बाज़ारों में बत्तियां जगमगाने के बदले इस वर्ष टिमटिमाती नज़र आएंगी। 
 
जहां कहीं भी संभव हो, बचत करनी होगी : बर्लिन, जर्मनी का सबसे बड़ा शहर होने के साथ-साथ एक राज्य भी है। बर्लिन की राज्य सरकार अपने प्रशासनिक कार्यालयों आदि में लगने वाली बिजली में कम से कम 10 प्रतिशत बचत करने की योजना बना रही है। जर्मनी की सभी राज्य सरकारें और नगरपालिकाएं अपने कार्यालयों आदि के अलावा सड़कों-स्मारकों, स्कूलों-कॉलेजों, पुस्तकालयों, खेल सुविधाओं, स्वीमिंग-पूलों इत्यादि में जहां कहीं भी संभव हो, रोशनी और तापमान कम से कम रखने के उपाय तलाश रही हैं। 
 
प्रशासनिक कर्मचारियों से कहा जा रहा है कि वे बिजली और गैस की बचत करना कतई भूलें नहीं। कार्यालयों में ही नहीं, अपने घरों में भी बचत करें। जनता से अपील की जा रही है कि हर व्यक्ति अपने घर में बचत करने पर ध्यान दे और यदि कोई सुझाव है, तो वह भी बताए।
पर्यटकों के आकर्षण बनेंगे अनाकर्षक : रोशनी और गर्माहट के बिना इस बार की सर्दियों में जर्मनी ही नहीं, पूरे यूरोप में पर्यटकों के चहेते अनेक आकर्षण महीनों तक अनाकर्षक बने रहेंगे। ऐसा इसलिए, क्योंकि भूमध्यरेखा (इक्वेटर) से बहुत अधिक उत्तर में होने के कारण यूरोप में सर्दियों में दिन बहुत छोटे और रातें बहुत लंबी होती हैं। नॉर्वे, स्वीडन और फ़िनलैंड में तो दिन मुश्किल से कुछेक घंटों का ही होता है। 
 
हर 21 दिसंबर को उत्तरी गोलार्ध में दिन सबसे छोटा और रात सबसे लंबी होती है। उस दिन, उदाहरण के लिए बर्लिन में, सूर्योदय सुबह सवा आठ बजे और सूर्यास्त तीसरे पहर तीन बज कर 50 मिनट पर ही हो जाएगा। यानी, सूर्य यदि पूरे दिन दिखा भी, तब भी केवल साढ़े सात घंटे ही दिखेगा। रात होगी साढ़े 16 घंटे लंबी। आम तौर पर बादलों, कुहरे या धुंध के कारण दिसंबर में सूर्य शायद ही दिखता है और कड़ाके की ठंड भी रहती है। ऐसे में बिजली और गैस की बचत करना टेढ़ी खीर ही है।
 
फ़्रांस में 'आम लामबंदी' अभियान : फ़्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल मैक्रों ने भी बिजली और गैस की बचत की एक योजना बनाई है। अपनी जनता से कहा है कि 'आम लामबंदी' के समान इस अभियान में सब को शामिल होना है। लोगों से अनुरोध किया है कि वे बत्तियां कम से कम जलाएं, कपड़े धोने की वाशिंग मशीन दिन में दो के बदले एक ही बार चलाएं। जहां भी, जिस किसी भी तरीके से सभी लोग ऊर्जा की बचत कर सकते हों, करें।
 
राष्ट्रपति मैक्रों ने कहा कि इस अभियान में सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को अच्छे उदाहरणों के साथ आगे-आगे चलना होगा। सरकार ऊर्जा के स्रोतों में विविधता लाने, नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों का तेज़ी से विस्तार करने और जर्मनी जैसे पड़ोसी देशों की सहायता के लिए अपनी ऊर्जा उलब्ध करने में भी पीछे नहीं रहेगी। 
 
जर्मनी के परमाणु बिजलीघर बंद हो चुके हैं : फ्रांस अपनी ज़रूरत की 20 प्रतिशत से भी कम गैस रूस से पाया करता था, जबकि जर्मनी 60 प्रतिशत से भी अधिक रूस पर निर्भर था। जर्मनी ने अपने लगभग सभी परमाणु बिजलीघर बंद कर दिए हैं। जनता यही चाहती थी। अंतिम तीन भी इस समय बंद होने की प्रक्रिया में हैं। जबकि फ्रांस अपनी 70 प्रतिशत बिजली अपने परमाणु बिजलीघरों से प्राप्त करता है। इसीलिए भी राष्ट्रपति मैक्रों ने जर्मनी की भी सहायता करने की बात कही।
 
स्पेन, पुर्तगाल और पूर्वी यूरोप के कुछ देश इस बात से खुश नहीं हैं कि गेहूं के साथ घुन की तरह उन्हें भी पीसा जा रहा है। पर प्रश्न क्योंकि पूरे यूरोपीय संघ की प्रतिष्ठा और पारस्परिक एकजुटता का भी है, इसलिए सभी देश अपना यथासंभव योगदान देने के लिए राज़ी हो गए हैं। सभी को कभी न कभी, किसी न किसी कारण से औरों के सद्भाव और सहयोग की भी ज़रूरत पड़ा ही करती है और आगे भी पड़ सकती है। किंतु सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि ऊर्जा संकट से सबसे अधिक प्रभावित जर्मनी की वह जनता कब तक शांतिपूर्ण और सहयोगी बनी रहेगी, जिसे कोरोना वायरस झूठा लगता है और उससे बचाव के टीके लगवाना आत्मनिर्णय की अपनी स्वतंत्रता का हनन दिखता है। कोरोना वायरस का संक्रमण भी एक बार फिर तेज़ी से बढ़ रहा है।

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