धर्मों के बीच समझ विकसित करने का समर्थन करता है भारत

शनिवार, 31 अक्टूबर 2015 (16:28 IST)
संयुक्त राष्ट्र। भारत ने संयुक्त राष्ट्र से कहा है कि वह नस्ल के आधार पर बहिष्कार और अन्य तमाम तरह की असहिष्णुता के सभी सिद्धांतों को खारिज करता है और वह लोगों एवं धर्मों के बीच समझ विकसित करने के प्रयास का समर्थन करता है।

संयुक्त राष्ट्र में भारतीय मिशन के प्रथम सचिव मयंक जोशी ने महासभा की तीसरी समिति में मानवाधिकार पर आयोजित एक सत्र में कहा क‍ि बहुधार्मिक, बहुजातीय, बहुसांस्कृतिक देश होने के नाते हमें हमारी ‘विविधता में एकता’ पर बहुत नाज है और हम राष्ट्रों, लोगों, धर्मों तथा संस्कृतियों के बीच समझ बढ़ाने के तमाम प्रयासों का समर्थन करते हैं।

उन्होंने कहा कि भारत असहिष्णुता, नकारात्मक विचारधाराओं, दोषारोपण और धर्म या मान्यता के आधार पर लोगों के खिलाफ भेदभाव एवं हिंसा से निपटने को लेकर महासचिव बान की मून की रिपोर्ट को लेकर गंभीर है।

उन्होंने शनिवार को कहा क‍ि नस्लवाद, नस्लीय भेदभाव, जीनोफोबिया (विदेशियों या अनजान लोगों से भय की प्रवृत्ति) और असहिष्णुता के संबंधित सिद्धांत को हम दृढ़ता से खारिज करते हैं। दादरी कांड, गोमांस और अन्य घटनाओं के बाद बढ़ती कथित असहिष्णुता के खिलाफ भारतीय कलाकारों, लेखकों और वैज्ञानिकों के विरोध जताने की पृष्ठभूमि में जोशी की यह टिप्पणी सामने आई है।

जोशी ने इस बात पर बल दिया कि मानवाधिकार के मुद्दे को अलग-थलग करके नहीं रखा जा सकता और न ही इसे राजनीतिक औजार के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। उन्होंने चयनात्मक नामकरण और देशों को शर्मसार करने के खिलाफ आगाह करते हुए लोगों और देशों के बीच बातचीत को बढ़ावा देने की जरूरत पर जोर दिया।

उन्होंने कहा क‍ि मानवाधिकार को निश्चित तौर पर राजनीतिक औजार के रूप में नहीं इस्तेमाल किया जाना चाहिए। चयनित नामकरण, देश को शर्मसार करना और अनुचित तरीके से निगरानी करना न केवल निष्पक्षता, तटस्थता और असहिष्णुता के खिलाफ है बल्कि इससे संबंधित देश से सहयोग भी प्रभावित होता है।

इस बात का उल्लेख करते हुए कि आतंकवाद लगातार गंभीर चुनौती बना हुआ है, उन्होंने कहा कि आतंकवाद और उसके स्वरूप की निंदा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है और उन्हें बिलकुल बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। (भाषा)

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