कोलकाता के दीन-दुखियों के साथ काम करने और मिशनरीज ऑफ चैरिटी बनाने के अपने करीब चार दशकों के दौरान उन्हें ‘सेंट ऑफ द गटर्स’ और ‘एंजिल ऑफ मर्सी’ की उपाधियों से सम्मानित किया गया। लेकिन एक और सोच थी। ऑस्ट्रेलिया की नारीवादी जर्मेन ग्रीयर ने मदर टेरेसा को ‘धार्मिक साम्राज्यवादी’ कहा था, जिन्होंने जीसस के नाम पर कमजोर लोगों को लूटा।
मदर टेरेसा के सबसे मुखर आलोचक क्रिस्टोफर हिचेन्स ने उन्हें ‘कट्टरपंथी, रढ़िवादी और धोखेबाज’ कहा, लेकिन टेरेसा की आलोचना से अधिक उन्हें पूजा ही गया। लाखों लोग उन्हें ईसाई परोपकार का प्रतिरूप कहते थे और भौतिकवादरोधी दुनिया का प्रतीक मानते थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सप्ताह की शुरुआत में कहा था कि मदर टेरेसा को संत की उपाधि दिए जाने पर प्रत्येक भारतीय का गौरवान्वित होना स्वाभाविक है।
ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने 1997 में मदर टेरेसा के निधन पर कहा था कि टेरेसा उन सभी लोगों के दिल में बनी रहेंगी, जिन्हें उन्होंने अपने नि:स्वार्थ प्रेम से अभिभूत किया। व्यक्तिगत रूप से टेरेसा की शख्सियत दुनिया को दिखाई देने वाली उनकी छवि से अधिक जटिल थी। आज आधिकारिक रूप से मदर टेरेसा को संत की उपाधि दिया जाना एक त्वरित प्रक्रिया का परिणाम है।
बचपन से वे कैथोलिक पूजा स्थलों में जाया करती थीं और अपना जीवन मिशनरी के कामों में लगाना चाहती थीं। तत्कालीन कलकत्ता में उनके सेवा कार्यों को लेकर उन्हें 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया। पुरस्कार प्राप्त करते हुए अपने भाषण में उन्होंने गरीबों की मदद करने के अपने तरीके का पुरजोर बचाव किया, जिसकी उन दिनों आलोचना होने लगी थी। जो लोग कहते थे कि जन्म को रोकना गरीबी से लड़ने का अहम तरीका है, उन्हें मदर टेरेसा जवाब देती थीं कि गर्भपात मां द्वारा की गई सीधी हत्या है। (भाषा)