Interview:अफगानिस्तान को तालिबान के हवाले करने में पाकिस्तान की चालाकी,पड़ोस में तालिबान नया खतरा: जी पार्थसारथी

विकास सिंह
सोमवार, 16 अगस्त 2021 (14:15 IST)
20 सालों के बाद तालिबान ने अफगानिस्तान पर फिर कब्जा जमा लिया है। तालिबान लड़ाकों ने राष्ट्रपति भवन और देश की संसद पर अपना कब्जा जमाकर वहां पर अपना झंडा फहरा दिया है। अफगानिस्तान पर तलिबान के कब्जे के बाद काबुल में भगदड़ के हालात हो गए है। काबुल एयरपोर्ट पर तालिबान लड़ाकों की अंधाधुंध फायरिंग में कई लोगों के मारे जाने की खबर है। दहशत से घिरी अफगानी जनता ने खुद को घरों में कैद कर लिया है और सरकारी कर्मचारियों में देश से भागने की होड़ लग गई है लिहाजा काबुल एयरपोर्ट पर हालात विकट हो गए है।
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तलिबान का अफगानिस्तान पर कब्जा भारत के लिहाज से बिल्कुल ठीक नहीं है। देश की उत्तरी सरहद पर चीन और पाकिस्तान तो पहले से ही घात लगाए बैठे थे। अशरफ गनी सरकार के रहते भारत अफगानिस्तान को लेकर निश्चिंत रहता था, लेकिन तालिबान के आने से अब इस क्षेत्र में भारत-विरोधी एक तीसरा मोर्चा भी खुल गया है।
 
अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद भारत  पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर ‘वेबदुनिया’ ने पाकिस्तान में भारतीय उच्चायुक्त और पीएमओ और विदेश मंत्रालय में प्रवक्ता जैसी अहम जिम्मेदारी संभाल चुके वरिष्ठ राजनयिक जी पार्थसारथी से खास बातचीत की।

‘वेबदुनिया’ से बातचीत में जी पार्थसारथी कहते हैं कि भारत को अब अफगानिस्तान के हालात पर पैनी नजर रखनी होगी और यह देखना होगा कि वहां सत्ता हस्तांतरण कैसे होगा। फिलहाल अफगानिस्तान में नेशनल रिकन्सिलेशन काउंसिल (National Reconciliation Council) बनाया गया है जिसमें पूर्व राष्ट्रपति और मौजूदा उपराष्ट्रपति वगैरह शामिल है।

जी पार्थसारथी कहते हैं कि दरअसल पाकिस्तान की चालाकी यह हैं कि अफगानिस्तान को तालिबान के हवाले करके इसे इस्लामिक संगठन बना दें लेकिन फिलहाल वह बनने वाला नहीं है क्योंकि यह लोग लोया जिरगा (राष्ट्रीय सभा) मांग रहे है जोकि संभव नहीं लगता है। दरअसल लोया जिरगा अफगानिस्तान की राष्ट्रीय सभा को कहा जाता है जिसमें तमाम कबायली समहूों के नेता एक साथ बैठते है। इसकी बैठक में देश के मामलों पर विचार-विमर्श कर फैसले किए जाते है। 

कंधार यात्री विमान अपहरण कांड के दौरान यात्रियों और विमान को अपहर्ताओं के चंगुल से छुड़वाने में अहम भूमिका निभाने वाले जी पार्थसारथी ‘वेबदुनिया’ से खास बातचीत में कहते हैं कि तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जा जमाने के बाद अब देखना होगा कि तालिबान का लीडर कौन होगा।

तालिबान में सबसे सीनियर और वरिष्ठ नेता मुल्ला बरादर फिलहाल कतर में है,ऐसे में तालिबान का अफगानिस्तान में नेता कौन होगा,कौन इसे लीड करेगा इसे देखना होगा और इस पर बहुत कुछ भविष्य निर्भर होगा।

अफगानिस्तान में नई सरकार में तालिबान की भूमिका को लेकर कहते हैं कि “अब देखना होगा कि अफगानिस्तान में जो नई सरकार बनती है वह अगर सिर्फ तालिबान की होती है तो तलिबान सिर्फ पश्तून है और अफगानिस्तान में कुल आबादी में पश्तून सिर्फ 45 फीसदी है। ऐसे में बाकी 55 फीसदी लोग शामिल नहीं होंगे तो ऐसे में सरकार कैसे चलएगी यह भी बहुत महत्वपर्ण है। 

अफगानिस्तान में तलिबान के उदय होने से चीन और पाकिस्तान के बाद क्या भारत के खिलाफ तीसरा मोर्चा खुल जाएगा,वेबदुनिया के इस सवाल पर पाकिस्तान में लंबे समय तक भारतीय उच्चायुक्त रह चुके जी पार्थसारथी कहते हैं कि “अफगानिस्तान भारत का पड़ोसी देश है और इसमें पाकिस्तान समर्थिक आतंकवाद भी आ जाता है। अफगानिस्तान में जो कुछ हो रहा है इसमें चीन और पाकिस्तान दोनों की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता है। 
 
अफगानिस्तान में तालिबान का उदय ऐसे समय हो रहा है जब भारत ईरान के चाबहार बंदरगाह से अफगानिस्तान के देलारम तक की सड़क परियोजना पर भी काम कर रहा है। अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे और भारत पर पड़ने वाले असर पर बात करते हुए जी पार्थसारथी कहते हैं कि “ईरान कट्टवाद सुन्नी पार्टियों की खिलाफ है और इसलिए तालिबान और ईरान के बीच संबंध कभी अच्छे नहीं रहे। अफगानिस्तान में जो कुछ हो रहा है वह ईरान भी देख रहा है और इसलिए भारत के विदेश मंत्री भी दो बार ईरान की यात्रा कर चुके है। अफगानिस्तान में तलिबान के कब्जे के बाद भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर की अमेरिका यात्रा और UNSC की भारत की अध्यक्षता करना भी काफी महत्वपूर्ण है। 

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