बहरीन, मिस्र, सउदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने कतर पर आतंकवादियों का समर्थन करने का अरोप लगाते हुए उससे सभी तरह के कूटनीतिक संबंध तोड़ दिए, लेकिन बताया जा रहा है कि कतर की ओर से ईरान की ओर झुकाव होने के कारण यह संबंध तोड़े गए हैं। कतर की ओर से इस्लामी समूहों का समर्थन और ईरान के साथ रिश्तों को लेकर खाड़ी अरब देशों के बीच अब दरार और गहरी हो गई है।
गैस समृद्ध राष्ट्र कतर में साल 2022 में फीफा विश्व कप होना है और यहीं अमेरिकी सेना का प्रमुख अड्डा है। तीन खाड़ी देशों और मिस्र द्वारा अपने साथ रिश्ते तोड़ने के फैसले की आलोचना करते हुए कतर ने कहा कि यह 'अन्यायपूर्ण' है और इसका उद्देश्य दोहा को 'राजनीतिक संरक्षणवाद' के तहत लाना है। कतर के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में सऊदी अरब, बहरीन, संयुक्त अरब अमीरात और मिस्र के अप्रत्याशित कदम का संदर्भ देते हुए कहा है, 'यह कदम अन्यायपूर्ण हैं और झूठे तथा बेबुनियाद दावों पर आधारित हैं।' बयान में आगे कहा गया है, 'इसका उद्देश्य साफ है, यह देश पर संरक्षणवाद थोपने के लिए है। यह कतर की एक देश के तौर पर संप्रभुता का उल्लंघन है।' हालांकि उसने पहले चरमपंथी समूहों का वित्तपोषण करने से इनकार किया था।
दूसरी ओर, सऊदी अरब जैसे सुन्नी राष्ट्र छद्म रूप से आतंकवाद के वित्तिय पोषक हैं, जो शियाओं का अस्तित्व ही खत्म करना चाहते हैं। सऊदी अरब ईरान को मुस्लिम राष्ट्र मानता ही नहीं है।
धार्मिक मतभेद के कारण सऊदी अरब और ईरान के बीच वैचारिक टकराव सबसे बुरे दौर में है। सऊदी अरब के सबसे बड़े धर्म गुरू मुफ्ती अब्दुल अजीज अल-शेख ने घोषणा कर दी कि ईरानी लोग मुस्लिम नहीं हैं। अब्दुल-अजीज सऊदी किंग द्वारा स्थापित इस्लामिक ऑर्गेनाइजेशन के चीफ हैं। उन्होंने कहा कि ईरानी लोग 'जोरोएस्ट्रिनिइजम' यानी पारसी धर्म के अनुयायी रहे हैं। उन्होंने कहा था, 'हमलोग को समझना चाहिए कि ईरानी लोग मुस्लिम नहीं हैं क्योंकि वे मेजाय (पारसी) के बच्चे हैं। इनकी मुस्लिमों और खासकर सुन्नियों से पुरानी दुश्मनी रही है।