सीरिया संकट, रूस और अमेरिका में ठनी

गुरुवार, 8 अक्टूबर 2015 (18:46 IST)
सीरिया दुनिया में ऐसे देश का पर्याय बन गया है जिसकी अशांति ने तीन वर्षीय अयलान कुर्दी जैसे बच्चों की भी जान ले ली। देश से चालीस लोगों के पलायन के बाद भी गृहयुद्ध का कोई चिन्ह नजर नहीं आता और इसमें ऐसे नए-नए देश जुड़ते जा रहे हैं जो कि काफी समय से परदे के पीछे से सक्रिय रहे हैं, लेकिन अब यह दुनिया के सामने आकर अपने हितों को बचाने के लिए सक्रिय हो गए।
 
ऐसे देशों में रूस भी शामिल है जिसने सीरिया के आतंकी संगठन आईएस के खिलाफ रॉकेटों का इस्तेमाल शुरू कर दिया है। हालांकि इस मामले पर रूस और अमेरिका के मतभेद खुलकर सामने आ गए हैं। 
 
रूस के रक्षामंत्री सर्गेई शोइगु का दावा है कि उनकी सेनाओं ने कैस्पियन सागर में अपने युद्धपोतों से सीरिया में इस्लामिक स्टेट के ठिकानों पर रॉकेट दागे हैं। इसके साथ ही यह भी दावा किया गया है कि चार युद्धपोतों से 11 ठिकानों को तबाह करने के लिए 26 मिसाइलें दागी गई हैं। रूस की ओर से कहा गया है कि सीरिया में उनकी सेनाओं का लक्ष्य 1500 किलोमीटर दूर था, लेकिन उसकी बमबारी ने सीरिया में 'आईएस के ठिकानों पर भारी तबाही' मचाई है।  
 
लेकिन अभी भी सीरिया संकट में नाटो देशों की ओर से रूस के इस दावे को शक की निगाह से देखा जा रहा है। ये देश रूसी सक्रियता को लेकर आश्वस्त नहीं हैं कि उसके हवाई हमलों का लक्ष्य आईएस के कब्जे वाले इलाके ही रहे हैं। अमेरिका और उसके सहयोगियों का दावा है कि रूस, सीरिया में अपने हवाई हमलों में ऐसे लोगों को निशाना बना रहा है, जिनका आईएस से कोई संबंध नहीं है। वरन रूसी हवाई हमलों का उद्देश्य उन लोगों को निशाना बनाना है जो कि राष्ट्रपति बशर अल असद के विरोधी हैं और अपनी कट्‍टरता में आईएस के सामने कहीं कम नहीं हैं।      
 
सीरियाई अधिकारियों की ओर से भी कहा जा रहा है कि रूसी मदद से उनके सरकारी बलों ने विद्रोहियों के खिलाफ एक बड़ा अभियान छेड़ा है। इस बीच तुर्की ने दावा किया है कि रूसी विमानों द्वारा अपने वायुक्षेत्र का दो बार उल्लंघन किया जिस पर उसने रूस को कड़ी चेतावनी दी थी। दूसरी ओर नाटो देशों ने रूस को चेतावनी दी की है वह सीरिया में 'सरकार के विरोधियों' और नागरिकों पर हवाई हमले बंद करे। 
 
नाटो देशों की ओर से कहा जा रहा है कि रूस खुद को इस्लामिक स्टेट कहने वाले कटट्‍रपंथी संगठन के ठिकानों को निशाना नहीं बना रहा है लेकिन रूस का कहना है कि वह 'आईएस' ठिकानों पर ही हमला कर रहा है। हालांकि रूस ने आधिकारिक तौर पर नौसेना का इस्तेमाल करने की संभावना जताई है और कहा है कि उसके युद्धपोत तैयार हैं, लेकिन कट्‍टरपंथी सीरिया के अंदर तक छिपे हुए हैं। इस कारण से उन पर कोई कार्रवाई कर पाना संभव नहीं है। एक रूसी एजेंसी का कहना है कि पूर्वी भूमध्यसागर की तरफ से दो रूसी युद्धपोत भी सक्रिय हो चुके हैं। 
 
रूसी सक्रियता से तुर्की भी आशंकित है और उसका दावा है कि रूसी विमान सीरियाई सीमा के पास उनके देश के हवाई क्षेत्र में घुसपैठ करने में लगे हैं। तुर्की ने रूस को चेतावनी दी है कि अगर फिर से तुर्की के वायु क्षेत्र का उल्लंघन हुआ तो रूस को इसके परिणाम भुगतने होंगे। इस मामले को लेकर तुर्की के विदेश मंत्री ने नाटो देशों के विदेश मंत्रियों से बात की है।
 
तुर्की के प्रधानमंत्री अहमत दावुतलू ने कहा है कि 'तुर्की की सेना को साफ शब्दों में यह निर्देश' दिया गया है कि अगर कोई पक्षी भी बिना इजाजत के हमारी सीमा में घुसता है तो उसे रोक लिया जाए।' पर ऐसा नहीं लगता कि दोनों देशों के बीच हिंसक संघर्ष की शुरुआत होगी।
 
सीरिया संकट को सुलझाने के लिए दुनिया के बहुत सारे देश सक्रिय हैं जिनकी प्रतिबद्धता दो खेमों में बंटी हुई है। इनमें से कुछ देश जहां सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद के हितों की रक्षा में लगी हैं तो दूसरी ओर वे ताकतें हैं जो कि असद के खिलाफ युद्ध छेड़ने वालों की पक्षधर हैं।
 
इस संघर्ष में रूस की सारी ताकत असद सरकार को बचाने में लगी हुई है क्योंकि रूस के बहुत सारे हित असद के सत्ता में होने पर ही पूरे हो सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र में असद के खिलाफ जितने भी प्रस्ताव आए सभी पर वीटो करने का जिम्मा रूस पर ही रहा। यह बात भी कम महत्वपूर्ण नहीं है कि रूस ने कभी भी सीरियाई सेना को हथियार देना बंद नहीं किया है। 
 
रूस के हर हालत में सीरिया की असद सरकार की मदद करने का एक और भी कारण है। सीरिया ने मॉस्को की काला सागर पर से उड़ानों के लिए अपना एक मात्र नौ‍सैनिक अड्‍डा पोर्ट टार्टस में है, को रूस ने लीज पर हासिल कर रखा है। यह रूसी की काला सागर के ऊपर की टोडी उड़ानों में मदद करता है। इसी तरह असद के शिया अलावाइत समुदाय के गढ़ पोर्ट लटाकिया में रूस का एक हवाई ठिकाना है। इसलिए सीरियाई सरकार पर आरोप लगाया जा रहा है कि रूसी सेना पश्चिमी देशों के समर्थित समूहों पर हमला कर रही है।    
 
खाड़ी देशों में ईरान शिया मुस्लिमों का सबसे बड़ा देश है और यह राष्ट्रपति असद और इसकी अलवाइत कबीले के लोगों की बहुमत वाली सरकार को बनाए रखने के लिए अरबों डॉलर खर्च कर रहा है। ईरान सीरियाई सरकार को रियायती दरों पर हथियार, सैन्य सलाहकार, पैसा, तेल मुहैया करा रहा है।
 
असद अरब देशों में ईरान के सबसे करीबी दोस्त हैं और लेबनानी शिया इस्लामी आंदोलन हिजबुल्लाह तक ईरानी हथियारों को पहुंचाने के लिए सीरिया मुख्य रास्ता रहा है। असद की मदद के लिए हिजबुल्लाह ने अपने लड़ाकों को भी सीरिया भेजा। इतना ही नहीं, ईरान और इराक के शिया लड़ाके भी सीरियाई बलों का साथ देते रहे हैं। 
 
सीरिया में चल रही इस जोर आजमाइश का दूसरा केन्द्र अमेरिका है जो कि देश में चल रहे गृहयुद्ध के लिए असद सरकार को दोषी मानता है। इसलिए उसके सभी समर्थकों की मांग है कि बातचीत से इस मामले को सुलझाने से पहले असद कुर्सी छोड़ दें।
 
अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा सीरिया के मुख्य विपक्ष‍ी गठबंधन 'नेशनल कोअलिशन' (गठबंधन) का पक्षधर है। अमेरिका की ओर से कथित तौर पर 'उदारवादी' कहे जाने असद विरोधियों को हथियार भी उपलब्ध कराता है। सितंबर, 2014 में जिहादी समूहों के खिलाफ बने गठबंधन के एक सहयोगी के तौर पर अमेरिका इस्लामी स्टेट, अन्य जिहादी संगठनों पर हवाई बमबारी कर रहा है, लेकिन सीरिया में उसका सीधा हस्तक्षेप नहीं कर रहा है। अमेरिका ने सीरिया में विद्रोहियों को हथियार, ट्रेनिंग देकर आईएस से मुकाबले की योजना बनाई थी लेकिन इसे अमली जामा नहीं पहनाया जा सका।  
 
सीरिया को लेकर विभिन्न पक्ष गुत्थमगुत्‍था हो रहे हैं, लेकिन इसका कोई ठोस नतीजा नहीं निकल पा रहा है क्योंकि यह संघर्ष से जुड़े दोनों पक्षों की शह और मात का अस्थायी खेल बन गया है। जिसका सीरियाई नागरिक सबसे बड़े शिकार बने हैं और उन्हें लाखों की संख्या में अपने असितत्व को बचाने के लिए सारी दुनिया में भटकना पड़ रहा है। 

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