महिलाएं उनके लिए सिर्फ ‘सेक्स ऑब्जेक्ट’ थीं, इसलिए इस्‍लाम में आया हिजाब: तस्‍लीमा नसरीन

गुरुवार, 17 फ़रवरी 2022 (12:02 IST)
फुटबॉलर पॉल पोग्बा के बाद अब हिजाब मामले में बांग्‍ला मूल की लेखि‍का तस्लीमा नसरीन ने एक इंटरव्‍यू में अपनी राय दी है। इस टि‍प्‍पणि‍यों के बाद अब कर्नाटक से शुरू हुआ हिजाब मामला अंतरराष्ट्रीय हो गया है।

बता दें कि तस्‍लीमा नसरीन कई मुद्दों पर खुलकर अपनी राय जाहिर करती हैं, खासतौर से वे इस्‍लामिक कुरीतियों के खि‍लाफ आवाज उठाती रहीं हैं, इसलिए अक्‍सर मुस्‍लिम कंटरपंथि‍यों के निशाने पर रहीं हैं।

वहीं फि‍लहाल देश में हिजाब मसला थमता नजर नहीं आ रहा है। बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने भी शिक्षण संस्थानों में हिजाब पहनने को लेकर टिप्पणी की है।

इंडिया टुडे टीवी को दिए गए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि हिजाब, बुर्का और नकाब अत्याचार के परिचायक हैं।
शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर रोक लगाने के खिलाफ याचिका पर कर्नाटक हाई कोर्ट सुनवाई कर रहा है। स्कूल और कॉलेज में यूनिफॉर्म ड्रेस कोड को लेकर तस्लीमा नसरीन ने कहा, मुझे लगता है कि शिक्षा का अधिकार ही धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है।

उन्होंने कहा, 'कुछ मुसलमान सोचते हैं कि हिजाब बहुत जरूरी है और कुछ सोचते हैं कि यह गैरजरूरी चीज है। लेकिन सातवीं शताब्दी में नारी विरोधी लोग इस हिजाब को लेकर आए थे, क्योंकि वे महिलाओं को सेक्स ऑब्जेक्ट से ज्यादा कुछ नहीं मानते थे।'

उन्होंने कहा, 'उन लोगों को लगता था कि कोई महिला की तरफ तभी देखेगा, जब उसको शारीरिक जरूरतें होंगी। इसलिए महिलाओं को बुर्का और हिजाब पहनना चाहिए। उनको पुरुषों से खुद को छिपाकर रखना चाहिए।'
 उन्होंने कहा, 'हमारे आज के समाज में हमने सीखा है कि पुरुष और महिलाएं बराबर हैं। इसलिए हिजाब और नकाब महिलाओं पर अत्याचार की निशानी है।'

हिजाब मामले में हाई कोर्ट में आज भी सुनवाई होनी है। वहीं कल की सुनवाई में याचिकाकर्ता के वकील ने चूड़ी, बिंदी और पगड़ी को लेकर दलील दी।

उन्होंने कहा कि अगर चूड़ी पहने हिंदू लड़कियों, क्रॉस पहनने वाली ईसाई लड़कियों को स्कूल से बाहर नहीं किया जाता है तो मुस्लिम लड़कियों को क्यों बाहर निकाला जाता है।

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