नई दिल्ली। भारत-पाक सीमा पर युद्ध जैसा माहौल और सुरक्षा बलों की गतिविधियों के चलते आतंकियों के स्लीपर सेल्स से जुड़े एजेंट्स और इन्हें सुरक्षित रास्तों से भारत तक लाने वाले गाइड भी डर के मारे भाग गए हैं। सीमावर्ती क्षेत्रों में सक्रिय होने से पहले सुरक्षा बलों और खुफिया एजेंसियों के राडार पर मौजूद स्लीपर सेल्स और उनके गाइड अपनी जान बचाने के लिए भूमिगत हो गए हैं।
इस स्थिति का यह नतीजा भी सामने आया है कि सीमा पर सक्रिय रहने वाले तस्कर और घुसपैठ में मदद करने वाले ऊपरी तौर पर सक्रिय कार्यकर्ताओं ने शीतनिद्रा में जाने में ही अपनी भलाई समझी है। कुछ समय पहले तक तस्करी और अन्य अपराधियों से जुड़े आतंकियों को सीमा के दोनों ओर लाने-ले जाने का काम ये करते थे। खुफिया एजेंसियों के सूत्रों के अनुसार पहले ही कई लोग उनके राडार पर थे। उन पर लगातार नजर रखी जा रही थी।
सैन्य और खुफिया बलों का मानना है कि इस बीच सीमा पर बने हालात के कारण इन ओवरग्राउंड वर्करों और गाइड्स की भी धरपकड़ की जानी थी। लेकिन लगता है कि इन लोगों को इसकी भनक लग गई है। इनके ठिकानों पर टीमें भी गईं लेकिन कोई भी नहीं पकड़ा गया। पलायन की आड़ में सभी अंडरग्राउंड हो गए हैं। जम्मू में पौनी चक्क में 2008 में आतंकी मुठभेड़, रेलवे स्टेशन पर 2002 में आतंकी हमला, हीरानगर पुलिस थाने में 2012 में पुलिस थाने में हमला, राजबाग पुलिस थाने पर 2015 में आतंकी हमलावरों को इन गाइड ने ही पनाह दी थी।
सीमा से घुसपैठ के बाद इन गाइडों का काम जम्मू-श्रीनगर हाईवे पर मौजूद सैन्य ठिकानों तक इन्हें पहुंचाना था। सफलतापूर्वक इन्हें हाईवे तक पहुंचाया गया और इन हमलों में कई लोग और पुलिसकर्मी शहीद हुए। स्लीपर सेल भी सीमा पर लगातार काम कर रहे थे। कई लोगों को पूछताछ के लिए पकड़ा भी गया लेकिन सबूत नहीं होने के कारण उन पर केवल नजर रखी जा रही थी। सीमा पर युद्ध जैसे हालात के कारण इनका कोई अता-पता नहीं चल रहा है।