चंद्रमा पर हुआ था ज्वालामुखी विस्फोट, चीनी अंतरिक्ष मिशन से हुई पुष्टि

रविवार, 8 सितम्बर 2024 (22:41 IST)
Volcanic eruption happened on the moon : चीनी अंतरिक्ष यान द्वारा एकत्र किए गए साक्ष्यों से पता चला है कि चंद्रमा पर सबसे हालिया ज्वालामुखी विस्फोट 12 करोड़ वर्ष पहले हुआ था, हालांकि पिछले कुछ वर्षों तक वैज्ञानिकों का मानना ​​था कि चंद्रमा पर ज्वालामुखी गतिविधियां लगभग 200 करोड़ वर्ष पहले ही समाप्त हो गई थीं।
 
'साइंस’ नामक पत्रिका में प्रकाशित यह निष्कर्ष 2020 में चीन के चांग'ए-5 अंतरिक्ष यान द्वारा पृथ्वी पर लाई गई चंद्रमा की चट्टान और मिट्टी के विश्लेषण से निकाले गए हैं। हालांकि इन परिणामों का चंद्र ज्वालामुखी के स्वीकृत इतिहास के साथ सामंजस्य बिठाना मुश्किल है, लेकिन यह संभव है कि चंद्रमा के आंतरिक भाग के कुछ क्षेत्रों में अधिक रेडियोधर्मी तत्व थे, जिनसे ज्वालामुखी के लिए जिम्मेदार गर्मी उत्पन्न होती है।
 
जिस क्षेत्र में चांग'ए-5 उतरा था, उसे 'ओशनस प्रोसेलारम' कहा जाता है। संभवतः यही वह क्षेत्र है जहां की चट्टानों में ऊष्मा उत्पादन करने वाले ए तत्व अधिक थे। सभी उपलब्ध साक्ष्यों से पता चलता है कि शुक्र ग्रह पर वर्तमान में ज्वालामुखी सक्रिय हैं। मंगल ग्रह पर हम इन प्रवाहों पर 'इंपेक्ट क्रेटर्स' की संख्या की गणना करके बड़े लावा प्रवाह के निर्माण की आयु निर्धारित कर सकते हैं।
 
यह क्रेटर-गणना तकनीक इस तथ्य पर निर्भर करती है कि क्रेटर ग्रहों की सतहों पर बेतरतीब और समान रूप से बनते हैं, इसलिए अत्यधिक क्रेटर वाले भूभागों को अधिक पुराना माना जाता है। परिणाम बताते हैं कि मंगल (जो पृथ्वी के आधे आकार का है) का ज्वालामुखी हर कुछ लाख वर्षों में सक्रिय होता है।
 
यह अपेक्षित भी है, क्योंकि छोटे पिंडों की तुलना में बड़े पिंड गर्मी को बेहतर तरीके से संरक्षित करते हैं। इस आधार पर बुध (जो पृथ्वी के आकार का एक तिहाई है) और हमारे चंद्रमा (जो पृथ्वी के आकार का एक चौथाई है) को लगभग 200 करोड़ वर्षों से ज्वालामुखीय रूप से मृत (निष्क्रिय) होना चाहिए था।
 
यही बात ‘आयो’ (बृहस्पति का पांचवा चंद्रमा) के बारे में भी सच है (जो आकार में हमारे चंद्रमा के समान है), हालांकि बृहस्पति के साथ गुरुत्वाकर्षण से उत्पन्न ज्वारीय बल आयो को एक अतिरिक्त ऊष्मा स्रोत प्रदान करते हैं। परिणामस्वरूप आयो ज्वालामुखी रूप से बहुत सक्रिय है।
 
चंद्रमा के अंधेरे क्षेत्र
चंद्रमा पर अधिकांश विस्फोट क्षुद्रग्रहों के प्रभाव से चंद्रमा के इतिहास में प्रारंभिक काल में बने विशाल गड्ढों के किनारों के पास हुए। लावा ने इन घाटियों के अंदरूनी हिस्सों को भर दिया, जिससे चंद्रमा के निकटवर्ती भाग पर अंधेरे क्षेत्र बन गए। छह अपोलो मिशन और तीन सोवियत रोबोटिक जांच द्वारा इन क्षेत्रों से लाए गए नमूनों की संरचना और आयु का विश्लेषण इस विश्वास के अनुरूप था कि चंद्रमा पर हाल ही में भूवैज्ञानिक रूप से कोई ज्वालामुखी गतिविधि नहीं हुई थी।
 
यह समझ 2009 में मिशन के प्रक्षेपण के बाद 'अमेरिकी लूनर रिकॉनिस्सेंस ऑर्बिटर मिशन' से चंद्रमा की सतह की बहुत स्पष्ट तस्वीरें उपलब्ध होने तक बनी रही। यह बताया गया कि चंद्रमा पर वायुमंडल नहीं होने के कारण वहां विस्फोट पृथ्वी पर होने वाले विस्फोटों से काफी भिन्न होंगे। चांग'ए-5 एक बहुत बड़े लावा प्रवाह से नमूने लेकर आया था जो पहले से ही क्रेटर-काउंटिंग से ज्ञात था।
 
लावा के कई टुकड़ों का प्रारंभिक विश्लेषण लंबे समय से स्वीकृत सिद्धांत के अनुरूप था कि चंद्रमा पर ज्वालामुखी गतिविधि 200 करोड़ साल पहले बंद हो गई थी। हालांकि चीनी नमूनों की बारीकी से जांच (जैसा साइंस पत्रिका में बताया गया है) कुछ सबसे छोटे टुकड़ों पर केंद्रित थी। अधिकांश चट्टानें उल्कापिंड के प्रभाव से टूटी और पिघलकर बूंदों में बदल गईं। इन 3,000 बूंदों में से तीन की पहचान उनके विस्तृत रसायन विज्ञान के आधार पर ज्वालामुखीय मूल के रूप में की गई है तथा वे केवल 12 करोड़ वर्ष पुरानी हैं।
 
चंद्र विस्फोट
उदाहरण के लिए चंद्र विस्फोटों में ऊंचे लावा फव्वारे शामिल होने चाहिए थे, जैसे कि आमतौर पर हवाई में फटते हुए देखे जाते हैं। जबकि इनमें से अधिकांश बूंदें लावा प्रवाह में जमा हो गई होंगी, कुछ चंद्रमा की सतह के अन्य हिस्सों में कई किलोमीटर दूर छिटक गई होंगी।
 
चांग'ए-5 के नमूने में पहचानी गई तीन 'ज्वालामुखी बूंदें' संभवतः उसी वेंट से नहीं निकली थीं, जिससे पृथ्वी पर आने वाली चट्टान और मिट्टी का बड़ा हिस्सा निकला था। इससे यह स्पष्ट होता है कि ए बूंदें चांग'ए-5 के जमीन पर उतरने के स्थल पर लावा प्रवाह की तुलना में बहुत नई क्यों हैं।
 
ये तीन कांच जैसी बूंदें चंद्रमा पर असामान्य रूप से हाल ही में हुई ज्वालामुखी गतिविधि के लिए हमारे पास मौजूद पहला भौतिक साक्ष्य हैं। नए परिणामों से पता चलता है कि ज्वालामुखी गतिविधि इतनी हाल ही में घटित हुई है, इसके लिए कुछ क्षेत्रों में ऊष्मा उत्पन्न करने वाले रेडियोधर्मी तत्वों की सांद्रता अन्य क्षेत्रों की तुलना में कहीं अधिक रही होगी। इसलिए इन निष्कर्षों से चंद्रमा के विकास के बारे में हमारी समझ में बड़ा बदलाव हो सकता है। (द कन्वरसेशन)
Edited By : Chetan Gour

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