एक लेखक के लिए शब्द, अक्षर, वाक्य, कॉमा, मात्रा, अल्प विराम और पूर्ण विराम ही सबकुछ हैं। अगर वो भाषा के इस परिवार के साथ न रहे तो शायद मर जाए। इसलिए कई लेखकों ने अपने जीवन के अंत तक लिखा। कई अपनी जिंदगी खत्म होने तक लिखते रहे। कई ऐसे लेखक हुए हैं, जिन्होंने तब तक लिखा जब तक उनकी देह जर्जर होकर झर नहीं गई।
इन दिनों इंटरनेट पर लेखक सलमान रुश्दी की एक तस्वीर वायरल हो रही है। इस तस्वीर में वे एक चश्मा पहने हुए हैं, लेकिन एक ग्लास का रंग काला और दूसरे का रंग ट्रांसपरेंट है। दरअसल, ये तस्वीर सलमान रुश्दी ने खुद अपने ट्विटर अकाउंट पर शेयर की है। जिसके कैप्शन में उन्होंने लिखा है... This photo seems to have vanished from my tweets. Here it is again, just for the record. (लगता है यह तस्वीर मेरे ट्वीट से गायब हो गई थी। यहां यह एक बार फिर से है, सिर्फ रिकॉर्ड के लिए।)
पिछले साल हुआ था रुश्दी पर हमला
भारतीय मूल के ब्रिटिश लेखक सलमान रुश्दी पर बीते साल 12 अगस्त, 2022 को चाकू से हमला हुआ था। इस वक्त वे न्यूयार्क में इंटरव्यू दे रहे थे। इस हमले में उनकी जान बाल-बाल बच गई। हालांकि इस हमले में उन्होंने अपनी एक आंख की रोशनी हमेशा के लिए खो दी। उनका एक हाथ और गर्दन भी डैमेज हुई थी। लेकिन वे दोबारा लौटे हैं अपनी एक आंख के साथ। शायद, एक आंख से वे अब कुछ ज्यादा दर्ज कर सके। वे अपनी नई किताब के साथ लौटे हैं। जिसका नाम है 'विक्ट्री सिटी'। दरअसल, रुश्दी पर उनके उपन्यास 'द सैनेटिक वर्सेज' के लिए हमला हुआ था। इस उपन्यास को कट्टरपंथी ईशनिंदा के तौर पर देखते हैं। 'द सैटेनिक वर्सेज़' 1988 में प्रकाशित हुई थी। जिसके बाद दुनियाभर में इस किताब की चर्चा थी।
विक्ट्री सिटी के साथ लौटे रुश्दी
'विक्ट्री सिटी' नाम से हाल ही में आया सलमान रुश्दी का यह उपन्यास मूल रूप से संस्कृत में लिखे गए एक ऐतिहासिक महाकाव्य का अनुवाद बताया जा रहा है। इस उपन्यास में एक अनाथ लड़की पम्पा कम्पाना की कहानी है। यह लड़की जादुई शक्तियों के साथ पैदा हुई है और उस पर एक देवी की कृपा है। किताब में 14 वीं शताब्दी की कहानी दर्ज की गई है जो एक ऐसी महिला के इर्दगिर्द है जिसने एक शहर पर शासन करने के लिए पितृसत्तात्मक या पुरुषप्रधान व्यवस्था को चुनौती दी है।
बेहद दिलचस्प और कमाल की बात है कि सलमान रुश्दी पर उनकी नॉवेल 'द सैनेटिक वर्सेज' की वजह से हमला हुआ था जिसकी वजह से वे कई महीनों से न्यूयॉर्क में इलाज करा रहे थे। जबकि अब उन्होंने अपनी इस नई नॉवेल 'विक्ट्री सिटी' से साहित्य की दुनिया में वापसी की है। बता दें कि करीब 33 साल पहले सलमान रुश्दी पर ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह रुहोल्लाह खैमैनी ने उनकी 'द सेटेनिक वर्सेस' को लेकर उनके खिलाफ फतवा जारी किया था। इसमें उन्होंने उनका सिर कलम करने की बात कही थी। इस किताब को ईशनिंदा के तौर पर देखा गया था। रुश्दी मुस्लिम-कश्मीरी परिवार में भारत में जन्मे थे। चूंकि, उन पर फतवा जारी था, इसलिए उन्हें 9 साल ब्रिटिश पुलिस की सुरक्षा में गुजारने पड़े थे।
वेलकम बैक सलमान रुश्दी
बहरहाल, अब कुछ महीनों के बाद एक नई कृति के साथ सलमान रुश्दी का लौटना साहित्य जगत के लिए एक बेहद सुखद बात है। अपने काम की वजह से कट्टरपंथियों का शिकार होना, अपनी एक आंख गवां देना और फिर अपने उसी काम के भरोसे पर एक बार फिर से लौटना हर उस व्यक्ति के लिए आस्था जगाने जैसा है तो किताबें लिखता और जो किताबें पढ़ता है। वेलकम बैक सलमान रुश्दी।