यह तो हुई नार्मल दिनों की बात, जबकि बारिश और सर्दी अधिक थी। इसके बाद बात आती है जुमे की नामज की। इसी हादिस में आगे कहा गया कि आज जुमे की नमा में ‘हैया अलस्सलाह’ (आओ नमाज की तरफ) नहीं कहेंगे। कहेंगे ‘अस्सलाह फ़िर्रिहाल’ (नमाज अपने घरों में पढ़ लो)। अर्थात नमाज अपने कयामगाहो में अदा करो। हजरत मोहम्मद साहब सर्दी की रातों में भी मुअज़्ज़िन को हुक्म देते थे कि, लोगों से अपने घरों में नमाज अदा करने का एलान करो।- सहीह बुखारी शरीफ हदीस नं. 668. में इसका उल्लेख मिलता है।
यह भी कहा जाता है कि अल्लाह के नबी ने एक हदिस में कहा, तुम्हें मालूम हो कि किसी शहर में बवा (महामारी) फैली हुई है तो तुम वहां न जाओ। और अगर तुम जिस शहर में रहते हो और उस शहर में महामारी हो तो भी तुम उस शहर को छोड़कर न जाओ। आपको यदि ऐसी बीमारी हो जाए जिससे दूसरे इंसानों को खतरा है तो तुम खुद को बाकी लोगों से अलग कर लो।