यदि आप सोचते हैं कि आईटी सेक्टर अच्छा वेतन देने की खान है तो भूल जाइए। देश के 110 तकनीकी स्कूलों में किए गए सर्वे में सामने आया है कि केवल भारत में केवल ढाई प्रतिशत स्नातक इंजीनियर ही ऐसे हैं, जो सात लाख रुपए या ज्यादा सालाना वेतन पा रहे हैं।
जिस तेजी से सूचना-प्रौद्योगिकी का क्षेत्र फल-फूल रहा है, उस तेजी से इसमें वेतन नहीं बढ़ रहा है।
अच्छा पद और वेतन की चाह में देश के लाखों युवा हर साल आईटी की ओर खिंचे चले आ रहे हैं, लेकिन मनचाहा वेतन न मिलने से उनके हाथ सिर्फ निराशा ही लग रही है। इसका दुखदायी पहलू यह है कि कम वेतन मिलने के कारण 40 फीसदी युवा पहले साल में ही नौकरी छोड़ चुके हैं। यदि इसी गति से युवा इस क्षेत्र को बाय-बाय कहते रहेंगे तो आईटी का भविष्य क्या होगा।
यह सर्वे कैरियरनेट कन्सल्टिंग द्वारा बंगलोर, नई दिल्ली, चेन्नई, गुवाहाटी, हमीरपुर, बीआईटीएस पलानी समेत देश की 30 आईटी कंपनियों में कार्यरत 1500 इंजीनियरों और छात्रों से बातचीत और उनकी आकांक्षाओं को लेकर किया गया है।
मनमाफिक वेतन नहीं : सर्वे के अनुसार दो से चार लाख रुपए सालाना वेतन पाने वाले इंजीनियरों की तादाद सबसे ज्यादा है। सर्वे रिपोर्ट कहती है कि देश में ऐसे युवाओं की संख्या 73 प्रतिशत के आसपास है। केवल 10.2 प्रतिशत इंजीनियरों को जहाँ पाँच लाख रुपए सालाना मिल रहा है, वहीं 17.3 फीसदी युवा ऐसे हैं, जिन्हें मनपसंद पद और वेतन मिला है।
उत्पाद कंपनियाँ आगे : बंगलोर में यह सर्वे आरवीएसई, बीएमएससीई, यूवीसीई, पीईएसआईटी और एमएस रमैह इंजीनियरिंग कॉलेज में किया गया। इसमें सामने आया कि आईटी उत्पाद क्षेत्र की कंपनियाँ जहाँ पाँच से नौ लाख रुपए सालाना वेतन दे रही हैं, वहीं आईटी सेवा क्षेत्र की कंपनियों में 3 से 3.5 लाख और सेमी कंडक्टर कंपनियों में 4.5 लाख रुपए सालाना के आसपास वेतन मिल रहा है।
तरीका यह भी : कैरियरनेट कन्सल्टिंग के सह संस्थापक ऋषि दास कहते हैं कि 85 प्रतिशत लोगों को वेतन कैम्पस प्लेसमेंट फार्म सीटीसी (कॉस्ट टू कंपनी) के रूप में ऑफर किया जाता है। इसका फायदा कंपनियों को ज्यादा होता है। हमने जिन कंपनियों से बात की उनमें से 24 प्रतिशत ने कहा कि वे अपने कर्मचारियों को 50 हजार से 2 लाख रुपए ज्वाइनिंग या साइनिंग बोनस के रूप में देते हैं, लेकिन वह भी उनके सीटीसी में ही शामिल होता है। केवल ललचाने के लिए यह अलग से दर्शाया जाता है।