फेसबुक जल्द ही ऐसा फीचर लाने जा रहा है, जिससे लोग दिमाग से ही कम्प्यूटर्स को कंट्रोल कर सकेंगे।
फेसबुक के सीईओ मार्क जकरबर्ग ने फेसबुक की सालाना डिवेलपर्स कॉन्फ्रेंस इस फीचर के बारे में जानकारी दी। मार्क जुकरबर्ग ने कहा कि उनके इंजीनियर्स इंसानों और कम्प्यूटर्स के बीच सीधे संवाद के लिए नया इंटरफेस बनाने पर काम कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि 'हम डायरेक्ट ब्रेन इंटरफेस पर काम कर रहे हैं जिससे आप सिर्फ अपने दिमाग की मदद से आपसी कम्युनिकेट कर सकेंगे। जकरबर्ग ने बताया कि कंपनी उन तरीकों पर अध्ययन कर रही है जिनसे लोग अपने विचारों की मदद से ही कंप्यूटर्स को कंट्रोल कर सकेंगे।
टैलोपैथिक टेक्नोलॉजी का प्रयोग : फेसबुक के इस ऐलान से यह कयास लगाए जाने लगे हैं कि फेसबुक टैलोपैथिक टेक्नोलॉजी प्रयोग करने की सोच रही है। फेसबुक का कहना है कि वह 'साइलेंट स्पीच' सॉफ्टवेयर डेवलप कर रही है जिससे लोग प्रति मिनट करीब 100 शब्द टाइप कर पाएंगे। यह प्रोजेक्ट 6 महीने पहले शुरू हुआ। 60 से ज्यादा वैज्ञानिकों, इंजीनियर्स और सिस्टम इंटिग्रेटर्स की टीम इस पर काम कर रही है।
ब्रेन कंप्यूटर इंटरफेस टेक्नोलॉजी में इलेक्ट्रोड्स लगाने पड़ते हैं मगर फेसबुक का कहना है वह इस काम के लिए ऑप्टिकल इमेजिंग इस्तेमाल करना चाहता है ताकि सर्जरी करने की जरूरत न पड़े। इस तरह की टेक्नोलॉजी की मदद से लोग सोचने भर से टेक्स्ट मैसेज और ई-मेल्स भेज पाएंगे। उन्हें ऐसा करने के लिए स्मार्टफोन की टचस्क्रीन या कंप्यूटर के की-बोर्ड को छूने की जरूरत नहीं होगी। वे अपने काम को जारी रख सकते हैं।
कंपनी ने इसे डायरेक्ट ब्रेन इंटरफेस का नाम दिया है। कंपनी के मुताबिक यह टेक्नॉलजी उन शब्दों को डीकोड करेगी, जिन्हें आप अपने दिमाग के स्पीच सेंटर पर भेजते हैं। जिस तरह से आप बहुत से फोटो खींचते हैं मगर शेयर कुछ को ही करते हैं। इसी तरह से आपके दिमाग मे कई ख्याल आते हैं मगर शेयर आप कुछ को ही करते हैं। इसी तरह से उन्हीं कमांड्स को लिया जाएगा जो आप इरादतन देंगे।
फेसबुक ने पिछले पिछले वर्ष बिल्डिंग 8 नाम से रिसर्च यूनिट लांच की थी जो हार्डवेयर प्रोडक्ट्स पर काम कर रही है। जनवरी में फेसबुक ने न्यूरल इमेजिंग और ब्रेन इंटरफेस इंजिनियर्स को अपनी बिल्डिंग 8 टीम के लिए हायर करना शुरू किया था। यह टीम ऐसे सेंसर्स डिवेलप कर रही है जो स्किन के जरिए लोगों की बात समझ सकते हैं। कंपनी के मुताबिक जिस तरह से हमारे कान वाइब्रेशंस को समझी जा सकने वाली ध्वनियों में बदल देते हैं, ये सेंसर्स उसी सिद्धांत पर काम करते हैं।