इन दिनों मंदिर, उपाश्रय, स्थानक तथा समवशरण परिसर में अधिकतम समय तक रहना जरूरी माना जाता है। पूजन, आरती, समागम, उपवास, त्याग-तपस्या में अधिक से अधिक समय व्यतीत किया जाता है और दैनिक क्रियाओं से दूर रहने का प्रयास किया जाता है। संयम और विवेक का निरंतर प्रयोग, अभ्यास चलता रहता है। इन दिनों उपवास, बेला, तेला, अठ्ठाई, मासखमण जैसी लंबी बिना कुछ खाए, बिना कुछ पिए, निर्जला तपस्या करने वाले लोग सराहना प्राप्त करते हैं। इन्हीं 8 दिनों के पर्व में दौरान क्षमा, अहिंसा और मैत्री का पर्व संवत्सरी आता है।