भगवान की आरती करने का सही और वैज्ञानिक तरीका, मिलेंगे कई फायदे

कृष्णा गुरुजी

मंगलवार, 22 जुलाई 2025 (18:43 IST)
Scientific method of Aarti: श्रावण माह में शिवालयों और घर-घर में शिव आरती की गूंज सुनाई देती है। जगह-जगह रुद्राभिषेक के पश्चात आरती होती है। परंतु, एक सवाल अक्सर मन में उठता है कि आरती करते समय हाथ किस क्रम में घुमाने चाहिए? क्या कोई सही तरीका है? कलयुग में किसी भी देवी-देवता की आरती करते समय केवल दीप घुमाना ही पर्याप्त नहीं, बल्कि उसके पीछे गहरा आध्यात्मिक विज्ञान छिपा है।
 
आरती का अर्थ है परमात्मा के समक्ष अपनी ऊर्जा समर्पित करना और उनके तेज को अपने भीतर आकर्षित करना। जब आप थाल घुमाते हैं, तो वह महज परंपरा नहीं, बल्कि शरीर के तीन प्रमुख चक्रों – आज्ञा, हृदय और नाभि चक्र को ऊर्जावान करने की विधि है। 
 
आरती करने का सही तरीका : जब भी आपको किसी भी भगवान की आरती करने का सौभाग्य मिले चाहे वह शिव, विष्णु, या गणेश ही क्यों न हों, आरती इस प्रकार करें... 
दायें हाथ से इस क्रम में थाल घुमाएं
इस क्रम से थाल घुमाने पर, थाल की गति से हाथ में ‘ॐ’ (ओंकार) की आकृति बनती है। जब आरती करते समय ‘ॐ’ की आकृति थाल से बनती है, तो उससे तीनों चक्रों में ऊर्जा का प्रवाह होता है। यह न केवल भगवान के प्रति समर्पण है, बल्कि आत्मिक और शारीरिक ऊर्जा का जागरण भी है।
 
शास्त्रों से संकेत : शिव महापुराण (रुद्र संहिता) में भी उल्लेख है कि आरती चक्र स्वरूप होनी चाहिए, जिससे ऊर्जा का वृत्ताकार प्रवाह बना रहे। स्कंद पुराण में कहा गया है : 'आरत्या च प्रदक्षिणा देवं तन्मयः स्याद् भवेद् ध्रुवम्।' अर्थात, आरती करते समय घूर्णन (वृत्ताकार) से देवता में मन स्थिर होता है और भक्त के भीतर दिव्यता उतरती है। अत: श्रावण माह में शिव आराधना या किसी भी देवता की आरती करते समय हाथों की गति का विज्ञान समझें। केवल थाल घुमाना ही नहीं, बल्कि चक्रों को उर्जित करना ही सच्ची आरती है। (यह लेखक के अपने विचार हैं, वेबदुनिया का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं है)
Edited by: Vrijendra Singh Jhala 
 

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