वर्ष 2022 में 4 अगस्त, गुरुवार को जैन धर्म का सबसे खास पर्व मोक्ष सप्तमी मनाया जा रहा है। इसे मुकुट सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है। इसी दिन जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ (Lord Parshwanath) को मोक्ष प्राप्त हुआ था। अत: जैन धर्म के अनुसार यह दिन बहुत ही खास माना जाता है।
जैन धर्म के अनुसार प्रतिवर्ष मोक्ष सप्तमी के दिन भगवान पार्श्वनाथ का मोक्ष कल्याणक दिवस (moksha kalyanak day) मनाया जाता है। श्रावण शुक्ल सप्तमी के दिन दिगंबर तथा श्वेतांबर जैन मंदिरों एवं स्थानकों में तेईसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और शांतिधारा के पश्चात निर्वाण लाडू चढ़ाया जाता है।
जैन धर्म के पुराणों के अनुसार जिसका मोक्ष हो जाता है, उसका मनुष्य भव में जन्म लेना सार्थक हो जाता है। जब तक संसार है तब तक चिंता रहती है, हमें अपनी आत्मा को परमात्मा बनाने के लिए मोहरूपी शत्रु का नाश करना पड़ता है, तब मोक्ष प्राप्त होता है। अत: हमें सभी छोटों और बड़ों के प्रति मन में सम्मान तथा विनय भाव धारण करना चाहिए, क्योंकि विनय ही मोक्ष का द्वार है।
इस दिन जहां 23वें जैन तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ (23rd tirthankar lord parshvanath) के मोक्ष कल्याणक के उपलक्ष्य में जयकारों एवं मंत्रोच्चार के साथ भगवान का अभिषेक, विश्व की मंगल कामना एवं सुख-समृद्धि के लिए शांतिधारा, सामूहिक पूजा की जाती है। निर्वाण कांड के सामूहिक उच्चारण के बाद निर्वाण लाडू चढ़ाया जाता है तथा भगवान पार्श्वनाथ की आरती की जाती है। वहीं मोक्ष/ मुकुट सप्तमी के दिन छोटी-छोटी बालिकाएं एवं कुंवारी कन्याएं पूरे दिन का निर्जला उपवास करती है।
इस दिन देव-शास्त्र-गुरु की सामूहिक भक्ति करके आत्म चिंतन करने के साथ ही श्री जी पूजन, स्वाध्याय, मनन-चिंतन, सामूहिक प्रतिक्रमण आदि में दिन बिताया जाता हैं तथा सायंकाल घोड़ी-बग्घी में बैठाकर उन्हें घुमाया जाता है तथा अगले दिन उनका पारण कराया जाता है।
जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ हैं। उनका जन्म आज से लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व पौष कृष्ण एकादशी के दिन वाराणसी में हुआ था। पिता अश्वसेन वाराणसी के राजा थे तथा माता का नाम 'वामा' था। तीर्थंकर बनने से पहले पार्श्वनाथ को नौ पूर्व जन्म लेने पड़े थे।
पहले जन्म में ब्राह्मण, दूसरे में हाथी, तीसरे में स्वर्ग के देवता, चौथे में राजा, पांचवें में देव, छठवें जन्म में चक्रवर्ती सम्राट और सातवें जन्म में देवता, आठ में राजा और नौवें जन्म में राजा इंद्र (स्वर्ग) तत्पश्चात दसवें जन्म में उन्हें तीर्थंकर बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।
अत: पूर्व के जन्मों से संचित पुण्यों के कारण और दसवें जन्म के तप के फलस्वरूप में उन्हें तीर्थंकर बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। उन्होंने 30 वर्ष की आयु में गृह त्यागा और संन्यासी हो गए। मात्र 83 दिन तक कठोर तपस्या करने के बाद 84वें दिन उन्हें कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई तथा श्रावण शुक्ल सप्तमी के दिन सम्मेदशिखरजी में निर्वाण (Parshvanath ji Moksh Kalyanak Diwas) प्राप्त हुआ था।
अत: इस दिन जैन तीर्थक्षेत्र सम्मेदशिखरजी में भगवान पार्श्वनाथ की पूजा-अर्चना, निर्वाण कांड पाठ आदि के पश्चात निर्वाण लाडू चढ़ाया जाता है। जिस प्रकार यह लाडू रस भरी बूंदी से निर्मित किया जाता है, उसी प्रकार अंतरंग से आत्मा की प्रीति रस से भरी हो जाए तो परमात्मा बनने में देर नहीं लगती।
श्री पार्श्वनाथ चालीसा : Bhagvan Parshwanath Chalisa
दोहा
शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन करूं प्रणाम।
उपाध्याय आचार्य का ले सुखकारी नाम।
सर्व साधु और सरस्वती, जिन मंदिर सुखकार।
अहिच्छत्र और पार्श्व को, मन मंदिर में धार।|
।।चौपाई।।
पार्श्वनाथ जगत हितकारी, हो स्वामी तुम व्रत के धारी।
सुर नर असुर करें तुम सेवा, तुम ही सब देवन के देवा।
तुमसे करम शत्रु भी हारा, तुम कीना जग का निस्तारा।
अश्वसेन के राजदुलारे, वामा की आंखों के तारे।
काशीजी के स्वामी कहाए, सारी परजा मौज उड़ाए।
इक दिन सब मित्रों को लेके, सैर करन को वन में पहुंचे।
हाथी पर कसकर अम्बारी, इक जंगल में गई सवारी।
एक तपस्वी देख वहां पर, उससे बोले वचन सुनाकर।
तपसी! तुम क्यों पाप कमाते, इस लक्कड़ में जीव जलाते।
तपसी तभी कुदाल उठाया, उस लक्कड़ को चीर गिराया।
निकले नाग-नागनी कारे, मरने के थे निकट बिचारे।
रहम प्रभु के दिल में आया, तभी मंत्र नवकार सुनाया।
मरकर वो पाताल सिधाए, पद्मावती धरणेन्द्र कहाए।
तपसी मरकर देव कहाया, नाम कमठ ग्रंथों में गाया।
एक समय श्री पारस स्वामी, राज छोड़कर वन की ठानी।
तप करते थे ध्यान लगाए, इक दिन कमठ वहां पर आए।
फौरन ही प्रभु को पहिचाना, बदला लेना दिल में ठाना।
बहुत अधिक बारिश बरसाई, बादल गरजे बिजली गिराई।
बहुत अधिक पत्थर बरसाए, स्वामी तन को नहीं हिलाए।
पद्मावती धरणेन्द्र भी आए, प्रभु की सेवा में चित लाए।
धरणेन्द्र ने फन फैलाया, प्रभु के सिर पर छत्र बनाया।
पद्मावती ने फन फैलाया, उस पर स्वामी को बैठाया।
कर्मनाश प्रभु ज्ञान उपाया, समोशरण देवेन्द्र रचाया।
यही जगह अहिच्छत्र कहाए, पात्र केशरी जहां पर आए।
शिष्य पांच सौ संग विद्वाना, जिनको जाने सकल जहाना।
पार्श्वनाथ का दर्शन पाया, सबने जैन धरम अपनाया।
अहिच्छत्र श्री सुन्दर नगरी, जहां सुखी थी परजा सगरी।
राजा श्री वसुपाल कहाए, वो इक जिन मंदिर बनवाए।
प्रतिमा पर पालिश करवाया, फौरन इक मिस्त्री बुलवाया।
वह मिस्तरी मांस था खाता, इससे पालिश था गिर जाता।
मुनि ने उसे उपाय बताया, पारस दर्शन व्रत दिलवाया।
मिस्त्री ने व्रत पालन कीना, फौरन ही रंग चढ़ा नवीना।
गदर सतावन का किस्सा है, इक माली का यों लिक्खा है।
वह माली प्रतिमा को लेकर, झट छुप गया कुए के अंदर।
उस पानी का अतिशय भारी, दूर होय सारी बीमारी।
जो अहिच्छत्र हृदय से ध्वावे, सो नर उत्तम पदवी वावे।
पुत्र संपदा की बढ़ती हो, पापों की इकदम घटती हो।
है तहसील आंवला भारी, स्टेशन पर मिले सवारी।
रामनगर इक ग्राम बराबर, जिसको जाने सब नारी-नर।
चालीसे को चन्द्र बनाए, हाथ जोड़कर शीश नवाए।
सोरठा
नित चालीसहिं बार, पाठ करे चालीस दिन।
खेय सुगंध अपार, अहिच्छत्र में आय के।
होय कुबेर समान, जन्म दरिद्री होय जो।
जिसके नहिं संतान, नाम वंश जग में चले।
मोक्ष सप्तमी का विशेष मंत्र-
'ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय नमो नम:'
108 बार इस मंत्र का जाप करने से जीवन के कष्टों से मुक्ति मिलती है।