मैं हूँ निरा अबोध... अज्ञानी... फिर भी आपकी भक्ति की शक्ति जबरदस्ती मेरे स्वर को मुखरित कर रही है। आपकी स्तवना करने के लिए! फिर चाहे क्यों न मैं सुज्ञजनों के लिए हास्यास्पद बनूँ! अंबुआ की डाली पर कली खिली कि वह खामोश बैठी कोयल भी क्या कुहूक-कुहूक का शोर नहीं मचा देती?