जब शिशुपाल, शाल्व और पौण्ड्रक आदि राजा बैरभाव से ही खाते, पीते, सोते, उठते, बैठते हर वक्त श्री हरि की चाल, उनकी चितवन आदि का चिन्तन करने के कारण मुक्त हो गए, तो फिर जिनका चित्त श्री कृष्ण में अनन्य भाव से लग रहा है, उन विरक्त भक्तों के मुक्त होने में तो संदेह ही क्या है?