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श्री हनुमद अष्टकम्
Webdunia
गुरुवार, 30 सितम्बर 2021 (14:58 IST)
हनुमानजी पर एक तो हनुमान अष्टक तुलसीदासजी ने अवधी भाषा में लिखा है। इसे संकटमोचन हनुमान अष्टक कहते हैं। परंतु यहां पर संस्कृत में लिखे गए 2 श्री हनुमदष्टकम् को पढ़ें। कहते हैं कि इसे पढ़ने से चमत्कारिक लाभ मिलता है।
|| श्री हनुमदष्टकम् ||
|| Shri Hanumad Ashtakam ||
श्रीरघुराजपदाब्जनिकेतन पंकजलोचन मंगलराशे
चंडमहाभुजदंड सुरारिविखंडनपंडित पाहि दयालो ।
पातकिनं च समुद्धर मां महतां हि सतामपि मानमुदारं
त्वां भजतो मम देहि दयाघन हे हनुमन् स्वपदांबुजदास्यम् ॥ 1 ॥
संसृतितापमहानलदग्धतनूरुहमर्मतनोरतिवेलं
पुत्रधनस्वजनात्मगृहादिषु सक्तमतेरतिकिल्बिषमूर्तेः ।
केनचिदप्यमलेन पुराकृतपुण्यसुपुंजलवेन विभो वै
त्वां भजतो मम देहि दयाघन हे हनुमन् स्वपदांबुजदास्यम् ॥ 2 ॥
संसृतिकूपमनल्पमघोरनिदाघनिदानमजस्रमशेषं
प्राप्य सुदुःखसहस्रभुजंगविषैकसमाकुलसर्वतनोर्मे ।
घोरमहाकृपणापदमेव गतस्य हरे पतितस्य भवाब्धौ
त्वां भजतो मम देहि दयाघन हे हनुमन् स्वपदांबुजदास्यम् ॥ 3 ॥
संसृतिसिंधुविशालकरालमहाबलकालझषग्रसनार्तं
व्यग्रसमग्रधियं कृपणं च महामदनक्रसुचक्रहृतासुम् ।
कालमहारसनोर्मिनिपीडितमुद्धर दीनमनन्यगतिं मां
त्वां भजतो मम देहि दयाघन हे हनुमन् स्वपदांबुजदास्यम् ॥ 4 ॥
संसृतिघोरमहागहने चरतो मणिरंजितपुण्यसुमूर्तेः
मन्मथभीकरघोरमहोग्रमृगप्रवरार्दितगात्रसुसंधेः ।
मत्सरतापविशेषनिपीडितबाह्यमतेश्च कथं चिदमेयं
त्वां भजतो मम देहि दयाघन हे हनुमन् स्वपदांबुजदास्यम् ॥ 5 ॥
संसृतिवृक्षमनेकशताघनिदानमनंतविकर्मसुशाखं
दुःखफलं करणादिपलाशमनंगसुपुष्पमचिंत्यसुमूलम् ।
तं ह्यधिरुह्य हरे पतितं शरणागतमेव विमोचय मूढं
त्वां भजतो मम देहि दयाघन हे हनुमन् स्वपदांबुजदास्यम् ॥ 6 ॥
संसृतिपन्नगवक्त्रभयंकरदंष्ट्रमहाविषदग्धशरीरं
प्राणविनिर्गमभीतिसमाकुलमंदमनाथमतीव विषण्णम् ।
मोहमहाकुहरे पतितं दययोद्धर मामजितेंद्रियकामं
त्वां भजतो मम देहि दयाघन हे हनुमन् स्वपदांबुजदास्यम् ॥ 7 ॥
इंद्रियनामकचोरगणैर्हृततत्त्वविवेकमहाधनराशिं
संसृतिजालनिपातितमेव महाबलिभिश्च विखंडितकायम् ।
त्वत्पदपद्ममनुत्तममाश्रितमाशु कपीश्वर पाहि कृपालो
त्वां भजतो मम देहि दयाघन हे हनुमन् स्वपदांबुजदास्यम् ॥ 8 ॥
ब्रह्ममरुद्गणरुद्रमहेंद्रकिरीटसुकोटिलसत्पदपीठं
दाशरथिं जपति क्षितिमंडल एष निधाय सदैव हृदब्जे ।
तस्य हनूमत एव शिवंकरमष्टकमेतदनिष्टहरं वै
यः सततं हि पठेत्स नरो लभतेऽच्युतरामपदाब्जनिवासम् ॥ 9 ॥
इति श्री मधुसूदनाश्रम शिष्याऽच्युतविरचितं श्रीमद्दनुमदष्टकम् ।
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|| श्री हनुमदष्टकम् ||
वैशाखमास कृष्णायां दशमी मन्दवासरे ।
पूर्वभाद्रासु जाताय मङ्गलं श्री हनूमते ॥१॥
गुरुगौरवपूर्णाय फलापूपप्रियाय च ।
नानामाणिक्यहस्ताय मङ्गलं श्री हनूमते ॥२॥
सुवर्चलाकलत्राय चतुर्भुजधराय च
उष्ट्रारूढाय वीराय मङ्गलं श्री हनूमते ॥३॥
दिव्यमङ्गलदेहाय पीताम्बरधराय च ।
तप्तकाञ्चनवर्णाय मङ्गलं श्री हनूमते ॥४॥
भक्तरक्षणशीलाय जानकीशोकहारिणे ।
ज्वलत्पावकनेत्राय मङ्गलं श्री हनूमते ॥५॥
पम्पातीरविहाराय सौमित्रीप्राणदायिने ।
सृष्टिकारणभूताय मङ्गलं श्री हनूमते ॥६॥
रंभावनविहाराय सुपद्मातटवासिने ।
सर्वलोकैकण्ठाय मङ्गलं श्री हनूमते ॥७ ।
पञ्चाननाय भीमाय कालनेमिहराय च ।
कौण्डिन्यगोत्रजाताय मङ्गलं श्री हनूमत ॥८॥
|| इति श्री हनुमदष्टकम् ||
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