1. प्रदोष काल: भगवान शिव का वार सोमवार, तिथि चतुर्दशी, त्योहार शिवरात्रि और महाशिव रात्रि लेकिन 24 घंटे में से एक समय भगवान शिव का समय माना जाता है और वह समय है प्रदोषकाल। शास्त्रानुसार प्रदोषकाल सूर्यास्त से 2 घड़ी (48 मिनट) तक रहता है। कुछ विद्वान मतांतर से इसे सूर्यास्त से 2 घड़ी पूर्व व सूर्यास्त से 2 घड़ी पश्चात् तक भी मान्यता देते हैं। इसी के साथ संधिकाल प्रारंभ होता है।
2. प्रदोषकाल का प्रभाव: पुराणों में उल्लेखित है कि सूर्यास्त से दिनअस्त तक का समय भगवान 'शिव' का समय होता है जबकि वे अपने तीसरे नेत्र से त्रिलोक्य (तीनों लोक) को देख रहे होते हैं और वे अपने नंदी गणों के साथ भ्रमण कर रहे होते हैं। इस काल में भूतों के स्वामी भगवान रुद्र का जो अपराधी होता है वह कठोर दंड पाता है। इस काल को धरधरी का काल कहते हैं जबकि राक्षसादि प्रेत योनि की आत्माएं सक्रिय रहती है। इस समय जो पिशाचों जैसा आचरण करते हैं, वे नरकगामी होते हैं।
4. निषेध : इस वक्त भोजन, पानी, संभोग, यात्रा, बहस और हर तरह की वार्तालाप करने की मनाही है। इस काल में नकारात्मक बातों और विचारों से बचकर रहना चाहिए। इसी के साथ इस समय देहलीज पर खड़े नहीं होते हैं। यह संध्यावंदन का समय होता है।
5. क्या करें : ऐसे में यह वक्त ईश्वर भक्ति का वक्त है। इस काल में संध्यावंदन या भगवत् पूजन, ध्यान, मंत्र जाप आदि कार्य करना चाहिए।
created - AJ