कोई न सिखाए तो खुद ही सीखना

NDND
हर कोई विम्बलडन खेलने और उसे जीतने का सपना देखता है। मैं खुश हूँ क्योंकि मेरे करियर में यह सपना बहुत जल्दी ही सच हो गया। कई सालों तक लगातार मेहनत करने के बाद इस तरह की सफलता मिलने पर बहुत ज्यादा खुशी होती है।

दोस्तो,

आपमें से भी कई बच्चे अलग-अलग खेल खेलते होंगे। क्रिकेट तो खेलते ही होंगे इसके साथ ही हॉकी, टेनिस और फुटबॉल, कैरम और दूसरे गेम भी खेलते होंगे। बचपन में कोई-न-कोई खेल खेलने से हम कई बातें सीखते हैं। खेल से जीवन में अनुशासन आता है। हम मेहनत करना सीखते हैं और जीवन में कभी भी मुश्किलों में हार नहीं मानते हैं। पर हाँ, खेल को स्पोर्टसमैन स्पिरिट से खेलना चाहिए।

मुझे भी बचपन से ही टेनिस प्लेयर बनने का शौक लग गया था। मैं जब 6 साल की थी तभी से इस खेल के साथ मेरा जुड़ाव हो गया था। मुझे यह खेल बहुत ही अच्छा लगता था और मैं स्टेफी ग्राफ की तरह बनना चाहती थी। माँ और बाबा शुरू में चाहते थे कि मैं भी पूरा दिन पढ़ाई में लगाऊँ और खेल से दूर रहूँ। पर जब उन्होंने देखा कि मुझे टेनिस खेलना ज्यादा अच्छा लगता है और मैं इस खेल को पूरी जान लगाकर खेलती हूँ तो उन्होंने मुझे हौसला दिया। बाबा ने खुद मुझे कोचिंग दी। बाबा मुझे एक कोच के पास ले गए। शुरुआत में कोच ने देखा कि मेरी उम्र बहुत ही कम है और इसलिए उन्होंने मुझे सिखाने से मना कर दिया पर बाद में जब उन्होंने मेरा खेल देखा तो वे मुझे टेनिस सिखाने के लिए तैयार हो गए। तो दोस्तो अगर आपको जीवन में कोई कुछ न भी सिखाए तो कभी भी निराश नहीं होना। खुद में सीखने की लगन हमेशा होना चाहिए तो आप सफलता पा ही लेते हो।

बचपन की एक और मजेदार बात यह है कि मैं खेल में बहुत ज्यादा समय देती थी और इसलिए स्कूल जाने का समय ही नहीं मिल पाता
आप चाहे लड़का हो या लड़की कोई न कोई खेल जरूर खेलना। अब तो हमने 'चक दे इंडिया' फिल्म भी देखी है जिसमें लड़कियाँ जबरदस्त हॉकी खेलती है तो कोई किसी से पीछे नहीं है। हमें दूसरों की बातों की बजाय खुद के काम पर ध्यान देना चाहिए
था। ऐसे में मेरे माता-पिता और दोस्त मेरा बहुत ध्यान रखते थे। वे मुझे नोट्स लाकर देते थे और मैं पढ़ाई कर पाती थी। जब में दसवीं क्लासमें थी तो मुझे पढ़ने का बिलकुल भी समय नहीं मिलता था क्योंकि इस समय मेरी टेनिस ट्रेनिंग सुबह साढ़े पाँच बजे से लेकर शाम को 7 बजे तक चलती थी पर ऐसे समय में भी मैंने खूब पढ़ाई की और 63 प्रतिशत अंकों के साथ पास हुई। आपको एक खास बात यह भी बताना हैकि लड़कियाँ अगर कोई भी खेल खेलती हैं तो बहुत सी दिक्कतें आती हैं। लोग कहते हैं कि लड़कियों का खेलना ठीक नहीं है। मेरे साथ भी ऐसा हुआ था पर मेरे माता-पिता ने देखा कि टेनिस मेरी जिंदगी है तो उन्होंने लोगों की बातें सुनना बंद कर दिया।

आप चाहे लड़का हो या लड़की कोई न कोई खेल जरूर खेलना। अब तो हमने 'चक दे इंडिया' फिल्म भी देखी है जिसमें लड़कियाँ जबरदस्त हॉकी खेलती है तो कोई किसी से पीछे नहीं है। हमें दूसरों की बातों की बजाय खुद के काम पर ध्यान देना चाहिए। तो जीत आपकी ही होगी। और हाँ मुझे तो फिल्में देखना बहुत पसंद हैं। बचपन में सिर्फ पढ़ना ही नहीं चाहिए बल्कि खेलना और अच्छी फिल्में देखना भी बहुत जरूरी है। मुझे स्विमिंग और क्रिकेट भी अच्छा खेल लगता है। मैं घर पर होती हूँ तो गाने सुनती है और खूब मस्ती करती हूँ। मस्ती तो करना चाहिए पर दूसरों की बात भी सुननी चाहिए। तो आप भी सुनना। खेल कोई भी खेला पर इस तरह खेलना की नाम रौशन हो अपना, अपने माता-पिता का और अपने देश का भी।

- सानिया मिर्जा