प्यारे बच्चों, क्या तुम सांझी पर्व के बारे में जानते हो, जो पितृ पक्ष के दिनों में मनाया जाता है। ......... क्या कहा, नहीं....।
कोई बात नहीं, मैं तुम्हें बताती हूं, सांझी क्या है? कुंआरी कन्याएं इसका पूजन क्यों करती हैं?
दरअसल, सांझी 'संध्या' शब्द से बना है। जो 'सांझ' से अपभ्रंश होकर 'सांझी' बना।
वैसे तो इन दिनों संध्या के समय तुमने अपने घर या आस-पड़ोस में देखा होगा कि कई छोटी लड़कियां घर की दीवार पर पीली मिट्टी और गोबर से कुछ आकृतियां बनाती हैं, उसका श्रृंगार करती हैं तथा फूल-पत्तियां आदि से उनकी सजावट करती हैं। फिर उसकी पूजा-आरती करके प्रसाद भी बांटती हैं और भजन व लोकगीत गाती हैं, यही सांझी है।
कहा जाता है कि जो भी लड़की पितृ पक्ष के दिनों में सच्चे मन से 'सांझी' की पूजा करती है, उसे बहुत ही संपन्न और सुखी ससुराल मिलता है।
सोलह दिनों तक मनाया जाने वाला श्राद्ध पर्व समाप्त होते ही नवरात्रि के प्रथम दिन सांझी को दीवार से उतार कर नदी में बहा दिया जाता है। अपने सुखी जीवन के लिए ही सभी कुंआरी कन्याएं इन दिनों में सांझी का पूजन कर उनका आशीर्वाद लेती है।