खुद बनाओ अपना स्टाइल

ND

मेरा बचपन
जिंदगी में बड़ा आदमी बनना कोई बड़ी बात नहीं है। बड़ी बात तो इसमें है कि हम कितने अच्छे इंसान बन पाते हैं।

प्यारे दोस्तो,
मैं भी उसी प्रदेश के कुछ शहरों के गलियों और कूचों से वाकिफ हूँ जहाँ आपका सबसे प्यारा अखबार 'नईदुनिया' आता है और जहाँ उसके साथ आती है आपकी प्यारी पत्रिका 'स्पेक्ट्रम'। आज आप लोगों से बात करने का मौका मिल रहा है तो मुझे बहुत अच्छा लग रहा है।

दरअसल हम बड़े हो जाएँ तो भी हमारे भीतर एक बच्चा रहता है जो हमारी अच्छाई का प्रतीक होता है। आप भी अपनी अंदर की अच्छी बातों को बनाए रखना। दोस्तों मेरे बचपन में मुझे अपनी पढ़ाई पूरी करने के पीछे बहुत सी जगहों पर भटकना पड़ा और इसलिए मुझे कई जगह की चीजें देखने को मिलीं। हर नए शहर से मैंने कुछ न कुछ बात सीखी। शहरों की तहजीब, बोलने के तरीके और उनके प्यारे-प्यारे लोगों की जिंदगी के अनुभव मेरे लिए इस भटकाव के दौरान हाथ आए मोती हैं।
  मैं आपको बताऊँ डॉन फिल्म में अमिताभ बच्चन का एक सीन है जब वह होटल से बाहर निकलता है और एक खास अंदाज में चलकर बाहर आता है। यह अंदाज मैंने मध्यप्रदेश के एक होटल में देखा कि एक आदमी बिलकुल इसी अंदाज में बाहर निकला था      


मेरे गीतों में ये जो पंछी, नदिया, तारों-सितारों की बातें आपको मिलती हैं वह जिंदगी में मैंने महसूस करने के बाद ही लिखा है। किसी रात आप अंधेरे में छत पर जाएँ तो देखेंगे कि आपके लिए पूरी दुनिया आसमान में छिपी बैठी है। दुनिया में कितनी ही सुंदर चीजें हैं जो खुद कहीं जाने पर ही देखने को मिलती हैं। मेरा जन्म ग्वालियर में हुआ था। परन्तु इसके बाद में लखनऊ और अलीगढ़ जैसे शहरों में टुकड़ों-टुकड़ों में शिक्षा हुई। भोपाल शहर मुझे बहुत पसंद है और वहाँ मेरे जो बचपन के दोस्त हैं उन्हें तो आज भी मैं बहुत याद करता हूँ।

मैंने जिंदगी में बहुत अच्छे दोस्त पाए। जिन दिनों में फिल्मों में काम पाने के लिए संघर्ष कर रहा था उन दिनों मेरे पास पैसे नहीं हुआ करते थे। ऐसे में मुझे खर्च के लिए दोस्तों से पैसे मिलते थे। सच में ऐसे दोस्त जिसे मिलते हैं वह बड़ा किस्मत वाला होता है। आप भी अच्छे दोस्त बनाना। जिंदगी में अच्छा दोस्त मिल जाए तो समझो खुदा मिल गया। तो स्कूल में और स्कूल के बाहर भी अच्छे दोस्त बनाए जा सकते हैं। यह भले ही इंटरनेट और कम्प्यूटर का जमाना है पर आप अपने दोस्तों को चिट्ठी लिखोगे तो उसका मजा ही कुछ और होगा।

मुझे लोग कहते हैं कि मैं गीत लिखना, संवाद लिखना, अच्छी कहानी लिखना और अपने भाषण लिखने जैसे काम कैसे कर लेता हूँ। इसका जवाब तो बड़ा आसान है। मैं खूब पढ़ता हूँ। जिंदगी से सीखता हूँ। हर दिन नई तैयारी से काम करता हूँ। चीजों को गहरे तक सोचता हूँ। और इस तरह मैं सारे काम कर पाता हूँ। हमारे आसपास की चीजों को अगर हम ठीक से देखते हैं तो वे भी हमारे बहुत काम आती हैं।

मैं आपको बताऊँ डॉन फिल्म में अमिताभ बच्चन का एक सीन है जब वह होटल से बाहर निकलता है और एक खास अंदाज में चलकर बाहर आता है। यह अंदाज मैंने मध्यप्रदेश के एक होटल में देखा कि एक आदमी बिलकुल इसी अंदाज में बाहर निकला था और फिर यह सीन फिल्म में फिट हो गया। तो देखिए हमारा दिमाग कम्प्यूटर होता है और इसमें इनपुट जितना अच्छा होगा आउटपुट उतना अच्छा मिलेगा।

एक बात यह भी कहूँगा कि स्कूल के दिनों में बहुत अच्छा वक्ता था और मैंने कई डिबेट कॉम्पीटिशन जीती थीं। इनमें जीतने के बाद मुझे एक नई हिम्मत मिलती थी। मैं थोड़ा बड़ा होने पर शायरी भी करने लगा था और लोग अपने पत्र लिखवाने मेरे पास आते थे। मुझे पत्र लिखना मजेदार काम लगता था और शायद इसी तरह मैं लिखने लगा। आज मैं कई फिल्मों के गीत लिखता हूँ और जिंदगी को अपने तरीके से जीता हूँ। आप भी अपना स्टाइल खुद बनाना। किसी की नकल मत उतारो। अपनी बात बेझिझक कहो और आगे बढ़ते जाओ। मेरी दुआ है कि तुम सभी को तरक्की मिले।

तुम्हारा

जावेद अख्तर

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