मेहनत करने वालों के साथ रहता है ईश्वर

मेरा बचपन
दोस्तो,

ND
मैं आपका दोस्त हूँ एआर रहमान। संगीत की दुनिया में जो नयापन है मैं उसे खोजता हूँ और संगीत की दुनिया में खो जाना मुझे पसंद है। आपको भी उधम करने के नए तरीके खोजने में मजा आता है और आप भी अपनी ही दुनिया में खोए रहते हो तो आप सभी और मैं एक जैसे हुए। और जब दो एक जैसे लोग मिल जाएँ तो बातचीत करने में मजा आता है।

दोस्तो, मेरे घर पर संगीत की परंपरा थी। पहले हमारे पुरखे 'हरिकथा' किया करते थे। पिताजी, आरके शेखर, एक जाने-माने संगीतकार थे और घर में बहुत से वाद्य-यंत्र रखे रहते थे। इसलिए मैं बचपन से ही वाद्य-यंत्रों से खेलते-खेलते संगीत से जुड़ गया। अगर आपके पिताजी या दादाजी भी इस तरह की कोई चीज जानते हो तो आपको उनसे सीखना चाहिए।

उन दिनों पिताजी सिंगापुर से यूनीवॉक्स और क्लेवॉयलिन (आज के जमाने के मुताबिक सिंथेसाइजर) लाए थे और इन दोनों ही वाद्यों की मधुरता मेरे मन में बैठ गई। छुटपन में कोई भी चीज हमें जल्दी अच्छी लगती है और तब सीखने में भी सुविधा रहती है। शुरुआत में यह महँगे वाद्य थे इसलिए मुझे इन्हें हाथ नहीं लगाने दिया जाता था। चार साल की उम्र में ही मैं उस वाद्य के सफेद और काले बटन (की) से खेलने लगा।
  मेरे घर पर संगीत की परंपरा थी। पहले हमारे पुरखे 'हरिकथा' किया करते थे। पिताजी, आरके शेखर, एक जाने-माने संगीतकार थे और घर में बहुत से वाद्य-यंत्र रखे रहते थे। इसलिए मैं बचपन से ही वाद्य-यंत्रों से खेलते-खेलते संगीत से जुड़ गया।      


मैं पिताजी को देखता था कि वो काम के लिए दिन-रात मेहनत करते थे। दुर्भाग्य से जब मैं 9 साल का हुआ तो पिताजी चल बसे। इसलिए 11 साल की उम्र तक मुझे भी घर के लिए पैसे कमाने की जरुरत हुई और मैंने काम भी किया। मैंने कुछ नाटकों में काम करके भी घर के लिए छोटी-मोटी कमाई की। दक्षिण के प्रसिद्ध संगीतकार और मेरे गुरु इलयाराजा के ग्रुप में भी मैंने सिंथेसाइजर बजाया और पैसे कमाए। मुझे एक बात से चिढ़ होती थी कि भगवान हमारे दुःखों को देखते हुए हमारी कोई मदद नहीं कर रहा है।

यहीं से मैंने ईश्वर को मानना छोड़ दिया था। कुछ समय बीता और एक बार मेरी बहन बहुत बीमार हो गई। हमने बहुत से डॉक्टरों को दिखाया पर उसकी हालत में कोई सुधार ही नहीं हो रहा था। हम सारी कोशिशें करके देख चुके थे। तभी एक पीर बाबा पीर करीममुल्ला शाह कादरी ने बहन के सर पर हाथ रखा और उसके लिए दुआ की। बहन ठीक हो गई। पीर बाबा ने मुझे समझाया कि पूरी दुनिया ईश्वर की वजह से ही चल रही है। वह हमें दुःख देता है तो सुख भी वही देता है। इस तरह ईश्वर में मेरा भरोसा लौटा।

कुछ दिन बाद माँ मुझे एक ज्योतिषी के पास ले गई और उन्होंने मुझे दिलीपकुमार की जगह नया नाम दिया अब्दुल रहमान शॉर्ट में एआर रहमान। यह जो आर लगा वह पिताजी की याद दिलाता है। ज्योतिषी का कहना था कि इस नाम से मैं बहुत बड़ा आदमी बनूँगा। जब कोई हमारे बारे में ऐसा कहता है तो हम ज्यादा मेहनत करते हैं और उनकी बात सही करके दिखाते हैं। मैंने भी ऐसा ही किया। बाद में नौशाद अली की सलाह पर एआर का मतलब अल्लाह रक्खा हो गया।

बाद के सालों में मैंने लंदन के ट्रिनिटी कॉलेज ऑफ म्यूजिक से स्कॉलरशिप प्राप्त की और वहाँ से म्यूजिक की शिक्षा लेकर भारत लौटा। एक बात मेरे साथ रही कि किसी भी मुश्किल में खुद को संगीत से अलग नहीं होने दिया। पर यह भी सच है कि हम कितनी ही अच्छी शिक्षा पा लें पर अगर माता-पिता की दुआएँ हमारे साथ नहीं हैं तो हमें तरक्की नहीं मिलती।

इसलिए कभी भी माँ-बाबा का दिल नहीं दुखाना। आप भी उनकी हर बात मानना। उनके साथ रहना और हाँ ईश्वर में भी यकीन बनाए रखना। आज जब भी मैं परेशान होता हूँ तो ईश्वर को याद करता हूँ। वह हर मुश्किल आसान कर देता है। आप भी ऐसा ही करना। परीक्षा में कोई सवाल न आए तो मन से ईश्वर को याद करना। सवाल की मुश्किल आसान हो जाएगी पर मेहनत करते रहना। ईश्वर उन्हीं की मदद करता है तो मेहनत करते हैं।

तुम्हारा
-एआर रहमा