आंच आने न देना...

तुम न समझो देश की
स्वाधीनता यूं ही मिली ह
हर कली इस बाग की
कुछ खून पीकर ही खिली है
किसी भी सियार को खाने न देना।
देश पर स्वाधीनता पर
तुम आंच आने न देना
जिन शहीदों के लहू से
लहलहाया है चमन अपना
उस वतन के लाड़लों की
याद मुरझाने न देना
देश पर स्वाधीनता पर
तुम आंच आने न देना।

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