तुम न समझो देश की स्वाधीनता यूं ही मिली है। हर कली इस बाग की कुछ खून पीकर ही खिली है किसी भी सियार को खाने न देना। देश पर स्वाधीनता पर तुम आंच आने न देना जिन शहीदों के लहू से लहलहाया है चमन अपना उस वतन के लाड़लों की याद मुरझाने न देना देश पर स्वाधीनता पर तुम आंच आने न देना।